आंखों में रोशनी पाकर, मरीज दवा नहीं बल्कि सम्मान और अपनापन लेकर लौटे
34th Yaad-e-Murshid Eye Camp: सरसा (सच कहूँ/ राजेश बैनीवाल)। सुबह के ठीक आठ बज रहे थे। हल्की-हल्की धुंध पूरे शहर को अपनी चादर में समेटे हुए थी। ठंडे मौसम के बीच शाह सतनाम जी स्पैशलिटी अस्पताल के मुख्य द्वार पर हलचल तेज हो रही थी। कारण था- 34वां याद-ए-मुर्शिद परम पिता शाह सतनाम जी महाराज नेत्र जांच एवं नि:शुल्क ऑपरेशन शिविर, जिसका आज तीसरा दिन था। हाथों में पर्चियां, आंखों में उम्मीद और चेहरे पर हल्की घबराहट लिए बुजुर्ग, महिलाएं और जरूरतमंद मरीज एक-एक कर अस्पताल में प्रवेश कर रहे थे। हर चेहरा किसी न किसी कहानी को समेटे हुए था—दर्द, संघर्ष और अब एक नई उम्मीद की कहानी। अस्पताल परिसर में प्रवेश करते ही स्वयंसेवकों की मुस्कान और सुव्यवस्था ने मरीजों को सुकून का एहसास कराया। Sirsa News

पंजीकरण काउंटर से लेकर जांच कक्ष तक हर जगह सेवा भाव झलक रहा था। यह नेत्र जांच एवं नि:शुल्क ऑपरेशन शिविर केवल इलाज तक सीमित नहीं था, बल्कि यह मानवता, करुणा और सेवा भाव की जीवंत मिसाल बन गया। यहां आने वाला हर मरीज सिर्फ दवा नहीं, बल्कि सम्मान और अपनापन भी लेकर लौटा। यह शिविर उन सैकड़ों लोगों के लिए यादगार बन गया, जिनकी दुनिया में फिर से उजाला लौटा। किसी के लिए यह खेतों में फिर से काम करने की आजादी थी, तो किसी के लिए अपने परिवार का चेहरा साफ देख पाने की खुशी।

खेतों से अस्पताल तक का सफर | Sirsa News
इसी तरह गांव रामसरा से आए 62 वर्षीय दुन्नीराम का ऑपरेशन भी सुबह ही हो चुका था। वे एक सेवादार के सहारे धीरे-धीरे जनरल वार्ड की ओर बढ़ रहे थे। दुन्नीराम बताते हैं, पिछले दो साल से आंखों की रोशनी कम होती जा रही थी। खेत में काम करना मुश्किल हो गया था। परिवार की हालत ऐसी नहीं थी कि महंगे इलाज का खर्च उठा सकें। जब उन्हें इस शिविर की जानकारी मिली, तो मानो अंधेरे में एक दीपक जल उठा। पंजीकरण के दौरान स्वयंसेवकों ने न केवल उनका नाम दर्ज किया, बल्कि पूरे धैर्य और सम्मान के साथ उन्हें जांच कक्ष तक ले गए। ऑपरेशन के बाद दुन्नीराम की आवाज में राहत थी बाले-अब ऑपरेशन हो गया है। मेरी धुंधली जिंदगी में फिर से रंग भरने लगे हैं।

सेवा में जुटे सैकड़ों हाथ
इस विशाल आयोजन को सफल बनाने में डॉक्टरों, नर्सों और पैरामेडिकल स्टाफ की भूमिका बेहद अहम रही। सीताराम इन्सां, रमेश नागपाल इन्सां (जगरांव) और जितेंद्र कुमार जैसे अनुभवी सेवादारों ने बताया कि वे इससे पहले भी कई शिविरों में सेवा दे चुके हैं। यह हमारा 33वां कैंप है। मरीजों की सेवा करके, उनके चेहरे पर खुशी देखकर लगता है कि हमारी मेहनत सफल हो गई, उन्होंने कहा। उनका मानना है कि सेवा का असली सुख तभी मिलता है, जब किसी की जिंदगी में बदलाव लाया जा सके।

व्यवस्था, अनुशासन और अपनापन
शिविर में आने वाले मरीजों के लिए भोजन, पीने का स्वच्छ पानी और ठहरने की पूरी व्यवस्था की गई थी। दूर-दराज से आए लोग बिना किसी चिंता के इलाज करा सकें, इसका विशेष ध्यान रखा गया। अस्पताल परिसर में अनुशासन और स्वच्छता देखते ही बनती थी। स्वयंसेवक पूरे दिन सक्रिय रहे—कभी किसी बुजुर्ग को सहारा देते, तो कभी मरीजों को सही काउंटर तक पहुंचाते। हर काम में अपनापन और सेवा भाव साफ नजर आता था। जिन आंखों में कल तक अंधेरा था, उनमें अब रोशनी और उम्मीद की चमक दिख रही थी।

दूर-दराज से आई उम्मीद की किरण | Sirsa News
बिहार से आए नवल किशोर इन्सां ऑपरेशन के बाद बैठे थे। उन्होंने बताया कि उनके क्षेत्र में आंखों के इलाज की बेहतर सुविधाएं उपलब्ध नहीं हैं। हमारे यहां इतने अच्छे प्रबंध नहीं हैं। आंखों की समस्या बढ़ती जा रही थी, लेकिन इलाज को लेकर भरोसा नहीं बन पा रहा था, नवल किशोर ने कहा। उन्होंने बताया कि उनके ब्लॉक के सेवादारों से उन्हें जानकारी मिली कि डेरा सच्चा सौदा, सरसा में नि:शुल्क नेत्र जांच और ऑपरेशन शिविर लग रहा है।

पूज्य गुरुजी के आशीर्वाद से आंखों का हुआ सफल ऑपरेशन
गोरखपुर उत्तर प्रदेश से अपने भाई दिलीप इन्सां के साथ आए अच्छे लाल भी थे जो बताने लगे कि हम 10 तारीख को ही सरसा पहुंच गए थे। पूज्य गुरुजी के आशीर्वाद से आज ऑपरेशन सफलतापूर्वक हो गया, कहते हुए उनकी आंखों में संतोष साफ झलक रहा था। दिलीप इन्सां ने बताया कि उन्हें गांव के प्रेमी सेवक ने डेरा सच्चा सौदा, सरसा में नि:शुल्क नेत्र जांच और ऑपरेशन शिविर के बारे में जानकारी दी। Sirsa News















