घने जंगलों में मिलती है ‘भुटकी’ नाम की अनोखी सब्जी, भालुओं की है पहली पसंद, कीमत सुनकर खिसक जाएगी पैरों की जमीन

Bhutki Sabzi
घने जंगलों में मिलती है ‘भुटकी’ नाम की अनोखी सब्जी, भालुओं की है पहली पसंद, कीमत सुनकर खिसक जाएगी पैरों की जमीन

Bhutki Sabzi: अनु। नेपाल और भारत के बिहार राज्य के सीमावर्ती घने जंगलों में एक बेहद खास और दुर्लभ सब्जी पाई जाती है, जिसे स्थानीय लोग ‘भुटकी’ या ‘फुटकी’ के नाम से जानते हैं। यह सब्जी मशरूम की एक खास प्रजाति मानी जाती है, जो मिट्टी के अंदर दीमक के टीलों के पास बरसात के मौसम में प्राकृतिक रूप से उग आती है। स्वाद, पौष्टिकता और खास खुशबू के कारण यह स्थानीय जनजातियों के भोजन का महत्वपूर्ण हिस्सा बन चुकी है।

कौन खाते हैं यह सब्जी?

भुटकी का उपयोग मुख्य रूप से उरांव और थारू जनजाति के लोग करते हैं, जो नेपाल के तराई इलाकों और बिहार के पश्चिम चंपारण जिले के वनवर्ती क्षेत्रों में बसे हैं। पीढ़ियों से यह आदिवासी समुदाय इस सब्जी का सेवन करते आ रहे हैं। उनके लिए यह सिर्फ एक स्वादिष्ट व्यंजन नहीं, बल्कि प्राकृतिक पोषण का स्रोत है।

भालुओं की पसंदीदा सब्जी

जंगल में पाए जाने वाले भालू इस सब्जी को बड़े चाव से खाते हैं। यह देखा गया है कि जहां-जहां भुटकी अधिक मात्रा में उगती है, भालू उन क्षेत्रों को अपनी गुफा बनाने के लिए चुन लेते हैं। जानवरों की पसंद भी इस सब्जी की खासियत को दर्शाती है।

बरसात में उगती है, दीमक के टीलों के पास

भुटकी मुख्य रूप से मानसून के मौसम में उगती है। यह दीमक के टीलों और जली हुई मिट्टी के पास उगती है। एक दिलचस्प तथ्य यह भी है कि यह जंगल की आग से बनी राख वाली मिट्टी में पनपती है, इसलिए इसका ऊपरी रंग अक्सर काला होता है। लेकिन जब इसे धोया जाता है, तो यह अंदर से सफेद निकलती है।

इकट्ठा करना बेहद जोखिम भरा

चूंकि भुटकी घने जंगलों में उगती है, जहां जंगली जानवरों की भरमार होती है, इसलिए इसे इकट्ठा करना काफी मुश्किल और जोखिम भरा काम होता है। यही कारण है कि इसे जंगल की अमूल्य संपत्ति माना जाता है। साथ ही, वन अधिनियम के अनुसार जंगल से इस तरह की चीजें लाना कानूनी अपराध भी है, लेकिन फिर भी कुछ स्थानीय लोग इसे छिपकर इकट्ठा करते हैं।

बाजार में ऊंचे दामों पर होती है बिक्री

इस अनोखी सब्जी की डिमांड बहुत ज़्यादा और उपलब्धता बहुत कम होती है। यही वजह है कि इसे जब बाजार में बेचा जाता है, तो 500 से 1000 रुपये प्रति किलो तक की कीमत वसूल की जाती है। कई बार कुछ व्यापारी इसे और भी ऊंचे दामों पर बेचते हैं क्योंकि यह बहुत जल्दी खराब भी हो जाती है और इसे संग्रह करना भी कठिन होता है।

सफाई में लगती है मेहनत

चूंकि यह मिट्टी के अंदर उगती है, इसलिए इसे पकाने से पहले इसकी सफाई सबसे ज़रूरी होती है। जंगल की राख और मिट्टी की परत इसके ऊपर जम जाती है। आदिवासी समुदाय के लोग इसे कई बार धोते हैं, तब जाकर यह पूरी तरह तैयार होती है खाने के लिए। गलत तरीके से साफ की गई भुटकी से पेट की समस्या भी हो सकती है, इसलिए इसमें विशेष सावधानी बरती जाती है।

पोषण से भरपूर, औषधीय गुणों वाली सब्जी

स्थानीय लोगों का मानना है कि भुटकी सिर्फ स्वाद में ही नहीं, बल्कि सेहत के लिए भी बेहद फायदेमंद है। इसमें पाए जाने वाले प्राकृतिक तत्व शरीर की प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाते हैं और पाचन तंत्र को मजबूत करते हैं। हालांकि, इस पर वैज्ञानिक शोध की बहुत अधिक आवश्यकता है, लेकिन स्थानीय अनुभवों और पारंपरिक ज्ञान के अनुसार, यह शरीर को ठंडक भी देती है और कमजोरी दूर करने में मदद करती है।

आदिवासी जीवन का हिस्सा

भुटकी सिर्फ एक सब्जी नहीं, बल्कि आदिवासी संस्कृति और परंपरा का हिस्सा है। इसे जंगल की धरोहर माना जाता है और खास अवसरों पर पकाया जाता है। इसके सेवन से न सिर्फ स्वाद का आनंद मिलता है, बल्कि प्रकृति से गहरा जुड़ाव भी महसूस होता है।

भविष्य में संभावनाएं

यदि इस सब्जी पर वैज्ञानिक शोध किया जाए, तो यह देश और दुनिया के लिए एक नया सुपरफूड बन सकती है। इसकी खेती अगर नियंत्रित परिस्थितियों में की जाए तो इससे स्थानीय समुदायों की आजीविका में बड़ा बदलाव आ सकता है। साथ ही, जंगलों की जैव विविधता को संरक्षित रखने में भी मदद मिल सकती है।

जंगल की अनकही कहानी

भुटकी जैसी सब्जियां यह साबित करती हैं कि प्राकृतिक जंगलों के अंदर अनगिनत रहस्य और औषधीय खजाने छिपे हुए हैं। जरूरत है उन्हें समझने, उनका सम्मान करने और वैज्ञानिक दृष्टिकोण से उनका उपयोग करने की। भुटकी न केवल स्वादिष्ट है, बल्कि यह हमें हमारी जड़ों से जोड़ने का एक जरिया भी बन सकती है।