Potato Farming: बैंगनी रंग के आलू की नई किस्म 90 दिन में पक कर होगी तैयार

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Potato Farming: बैंगनी रंग के आलू की नई किस्म 90 दिन में पक कर होगी तैयार

Aalu ki kheti: चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय में आयोजित 41वीं अखिल भारतीय समन्वित आलू अनुसंधान परियोजना की तीन दिवसीय कार्यशाला के अंतिम दिन आलू की दो नई किस्मों को देश के विभिन्न क्षेत्रों में खेती के लिए जारी करने की अनुशंसा की गई। उपरोक्त परियोजना के अंतर्गत एम.एस.पी/16-307 और कुफरी सुखयाति शामिल है। यह दोनों अधिक पैदावार देने वाली किस्में हैं तथा इनकी भंडारण क्षमता भी अधिक है। एम.एस.पी/16-307 किस्म की विशेषता है कि इसके आलू व गुद्दा बैंगनी रंग के हैं और यह 90 दिन में खुदाई हेतु तैयार हो जाती है, जबकि कुफरी सुख्यति किस्म मात्र 75 दिन में खुदाई के लिए तैयार हो जाती है। आलू की इन दो नई किस्मों को देश के उत्तरी, मध्य और पूर्वी मैदानी इलाकों के लिए जारी करने की सिफारिश की गई है। Potato Farming

समापन सत्र की अध्यक्षता भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के सहायक महानिदेशक (फूल-सब्जी-मसाले और औषधीय पौधे) डॉ. सुधाकर पांडे ने की, जबकि हकृवि के अनुसंधान निदेशक डॉ. जीतराम शर्मा सह-अध्यक्ष के रूप में उपस्थित रहे। सहायक महानिदेशक (फूल-सब्जी-मसाले और औषधीय पौधे) डॉ. सुधाकर पांडे ने वैज्ञानिकों को संबोधित करते हुए भारत में आलू प्रसंस्करण में भारतीय किस्मों की हिस्सेदारी बढ़ाने पर जोर दिया। अनुसंधान निदेशक डॉ. जीतराम शर्मा ने बदलते परिदृश्य में फसल सुधार, फसल सुरक्षा और सत्यापन व रिलीज के लिए फसल उत्पादन के तहत विभिन्न प्रौद्योगिकियों के बहु-स्थान मूल्यांकन में उपरोक्त परियोजना को महत्वपूर्ण बताया। Potato Farming

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उन्होंने बायो-फोर्टिफाइड व पोषण की दृष्टि से बेहतर आलू की किस्मों का विकास करने पर बल दिया। देश के विभिन्न राज्यों के 25 अखिल भारतीय समन्वित आलू अनुसंधान परियोजना केंद्रों से आए वैज्ञानिकों ने आलू की पैदावार बढ़ाने, उन्नत किस्में, भंडारण, खाद्य सुरक्षा सहित नवाचारों से संबंधित विषयों पर मंथन किया। गौरतलब है कि आलू के कंद भूमि के अंदर पाए जाते है, जिस वजह से इसकी खेती के लिए भूमि कार्बनिक तत्व से भरपूर और उचित जल निकासी वाली होनी चाहिए। भारत में आलू की खेती रबी की फसल के साथ की जाती है। किसान भाई आलू की खेती कर अच्छी कमाई कर सकते है। Potato Farming

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सामान्य तापमान के दौरान मिलता है अच्छा उत्पादन

अधिक गर्म जलवायु में भी इसके फल खराब हो जाते है। जिस वजह से इसके पौधों को हल्की बारिश की आवश्यकता होती है। आलू के अच्छे उत्पादन के लिए सामान्य तापमान की आवश्यकता होती है, अधिक तथा कम तापमान इसके पौधों को हानि पहुँचाता है। इसके पौधे अधिकतम 25 डिग्री तथा न्यूनतम 15 डिग्री तापमान को ही सहन कर सकते है। इससे अधिक का तापमान पौधों के लिए हानिकारक होता है।

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पुरानी गोबर की खाद बेहतर उत्पादन में सहायक

 आलू की खेती भुरभुरी मिट्टी में की जाती है। इसके लिए सबसे पहले खेत में मिट्टी पलटने वाले हलो से गहरी जुताई कर दी जाती है। जुताई के बाद खेत को कुछ दिनों के लिए ऐसे ही खुला छोड़ दिया जाता है। इसके बाद खेत में प्राकृतिक खाद के रूप में 15 गाड़ी पुरानी गोबर की खाद या वर्मी कम्पोस्ट को डालकर उसकी फिर से जुताई कर दी जाती है। इससे खेत की मिट्टी में गोबर की खाद अच्छे से मिल जाती है। इसके बाद खेत में पानी लगाकर पलेव कर दिया जाता है, पलेव के बाद जब खेत की मिट्टी ऊपर से सूखी दिखाई देने लगती है। इसके बाद रोटावेटर लगाकर खेत की मिट्टी को भुरभुरा कर दिया जाता है, मिट्टी के भुरभुरा होने के पश्चात पाटा लगाकर खेत को समतल कर दिया जाता है। इसके बाद खेत में पौधों की रोपाई के लिए मेड़ को तैयार कर लिया जाता है।

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आलू की रोपाई का सही समय व तरीका

आलू के बीजों की रोपाई आलू के रूप में की जाती है। इसके लिए छोटे आलू के कंदो को खेत में लगाया जाता है। कंदो की रोपाई के पहले उन्हें इंडोफिल की उचित मात्रा को पानी में डालकर मिला लिया जाता है,जिसके बाद कंद को इस घोल में 15 मिनट तक रखा जाता है। इसके बाद इन कंदो की रोपाई की जाती है। एक हेक्टेयर के खेत में तकरीबन 15 से 30 क्विंटल कंदो की आवश्यकता होती है। कंदो की रोपाई के लिए समतल भूमि में एक फीट की दूरी रखते हुए मेड़ो को तैयार कर लिया जाता है, तथा प्रत्येक मेडोंÞ की चौड़ाई एक फीट तक रखी जाती है । इसके बाद इन कंदो को 20 से 25 सेंटीमीटर की दूरी रखते हुए 5 से 7 सेंटीमीटर की गहराई में लगाया जाता है। आलू की खेती भी रबी की फसल के साथ की जाती है,इसलिए इसके पौधों की रोपाई सर्दियों के मौसम में की जाती है। अक्टूबर और नवंबर माह के मध्य इसके कंदो की रोपाई करना उचित माना जाता है।

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पोषक तत्त्वों से भरपूर होता है आलू

आलू का सेवन शरीर के लिए लाभदायक होता है, किन्तु इसके अधिक सेवन से शरीर में चर्बी बढ़ने जैसी समस्या हो सकती है। आलू में अनेक प्रकार के पोषक तत्व विटामिन सी, बी, मैंगनीज, कैल्शियम, फासफोरस और आयरन पाया जाता है। इसके साथ ही इसमें पानी की मात्रा भी सबसे अधिक होती है। सब्जी के अलावा आलू के इस्तेमाल से अनेक प्रकार की खाने की चीजे बनाई जाती हैं, जिसमे उत्तरी भारत में समोसा आलू की टिक्की हर किसी की पहली पसंद है। इसके आलावा वड़ापाव, आलू भरी कचौड़ी, चिप्स, टिक्की और चोखा, फ्रेंच फ्राइज,पापड़, चाट शामिल है।