बैंकिंग क्षेत्र सजग और मजबूत

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बैंकिंग क्षेत्र सजग और मजबूत

अमरीका में बैंकिंग क्षेत्र में संकट और इसके चलते अमरीकी बैंकों के शेयरों में (Banking) गिरावट के मद्देनजर प्रधानमंत्री मोदी और भारतीय रिजर्व बैंक के गर्वनर शक्तिकांत दास इस दावे को दोहरा रहे हैं कि भारतीय बैंकिंग प्रणाली सुदृढ़ है, भारत में विभिन्न कारकों के चलते बैंकों का लाभ बढ़ता जा रहा है जिसमें बेहतर वसूली और कडी निगरानी के चलते सरकारी और निजी दोनों बैंकों की स्थिति में सुधार आया है। वस्तुत: छोटे बैंक भी अपने आपरेशन में सक्रिय हैं। बैंकिंग क्षेत्र इसलिए भी उत्साहित है कि अजय बंगा विश्व बैंक के अध्यक्ष बनने जा रहे हैं। आईसीआरए के वित्तीय क्षेत्र के वरिष्ठ उपाध्यक्ष और सह प्रमुख अनिल गुप्ता का कहना है कि वर्तमान में अमरीकी बैंकों की तुलना में भारतीय बैंक मजबूती दिखा रहे हैं और वे विनियामक द्वारा उनके वर्तमान पूंजी स्तर, स्वस्थ परिसंपत्ति गुणवत्ता और कड़ी निगरानी बनाए रखने के चलते ऐसा कर पा रहे हैं।

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वस्तुत: पिछले तीन वर्षों में दो बड़े बैंकों की विफलता के बाद भारत ने जमा पर (Banking) बीमा कवर की सीमा 1 लाख रुपये से बढ़ाकर 5 लाख रुपये प्रति खाता कर दिया है। भारतीय ऋण दाता अमरीकी बैंकिंग क्षेत्र में उथल- पुथल से पैदा होने वाले प्रभावों को सहने में सक्षम हैं। हाल ही में यूबीएस ने स्विस बैंक के्रडिट सुशी का अधिग्रहण किया। इस संबंध में वैश्विक रेटिंग एजेंसी एसवी ग्लोबल का कहना है कि सुदृढ़ वित्त पोषण प्रोफाइल, उच्च बचत दर और सरकार का समर्थन आदि ऐसे कारक हैं जो वित्तीय संस्थानों को सहायता करते हैं और उसी के आधार पर हम उनकी रेटिंग करते हैं। भारतीय बैंकों के पास अपने घाटे को कम करने के लिए सरकारी प्रतिभूति पोर्टफोलियो के रूप में पर्याप्त बफर है क्योंकि ब्याज दर में वृद्धि हो रही है। 24 मार्च 2023 की स्थिति के अनुसार बैंक ऋण 136.8 करोड़ रुपये है जो एक वर्ष पूर्व की तुलना में 17.8 लाख करोड़ अधिक है। जैसा कि सभी जानते हैं कि अर्थव्यवस्था में मुद्रा स्फीति पर अंकुश लगाने के लिए भारतीय रिजर्व बैंक ने रेपो रेट में पिछले वर्ष मई से 250 मूलांक की वृद्धि की है।

बैंक लाभ चालू वित्त वर्ष के पहले नौ माहों में बढ़कर 70167 करोड़ रुपये हुआ

विशेषज्ञों ने कहा कि भारतीय बैंकों के वर्तमान पंूजी स्तर, स्वस्थ (Banking) परिसंपत्ति गुणवत्ता को देखते हुए वे किसी भी प्रकार के तनाव और दबाव को झेलने की बेहतर स्थिति में है इसलिए इस माह रेपो रेट में कोई वृद्धि नहीं की गई है। खुशी की बात यह है कि भारतीय बैंकों द्वारा कुल दिए गए ऋण के अनुपात में सकल गैर-निष्पादनकारी संपत्तियों में गिरावट आ रही है। सितंबर 2018 में ऐसी गैर-निष्पादनकारी संपत्तियां 16.8 प्रतिशत थीं और मार्च 2022 में यह 5.9 प्रतिशत थीं और दिसंबर 2022 में यह 5.53 प्रतिशत रह गई।

वस्तुत: सरकारी क्षेत्र के सभी बैंक लाभ में है और 2021-22 में उनका समग्र लाभ 66543 करोड़ रुपये था जो चालू वित्त वर्ष के पहले नौ माहों में बढ़कर 70167 करोड़ रुपये हो गया है। यह बात वित्त राज्य मंत्री ने लोक सभा में एक प्रश्न के लिखित उत्तर में बताई। उन्होंने कहा कि सरकार द्वारा पिछले आठ वर्षों में बैंकिंग क्षेत्र में सुधार के लिए अनेक कदम उठाए गए हैं जैसे ऋण अनुशासन जिम्मेदारी से ऋण देने, बैंकिंग प्रशासन में सुधार, प्रौद्योगिकी का प्रयोग, बैंकों का एकीकरण और निवेशकों का विश्वास बनाए रखने के लिए कदम उठाना आदि।

इस बीच वित्त मंत्रालय ने सरकारी बैकों से कहा है कि वे शीर्ष कारपोरेट ऋण खातों पर कड़ी निगरानी रखें और एक ऐसी योजना प्रस्तुत करें कि मुख्य क्षेत्रों में व्यापारिक जोखिमों से किस तरह से निपटा जाए। अतीत में भारतीय बैंकों को ऋणग्रस्त कंपनियों को ऋण देने से संकट का सामना करना पड़ता था। बैंकों से यह भी कहा गया है कि वे अपनी व्यापारिक बहियों के बारे में मार्क टू मार्केट प्रभाव पर भी निगरानी रखें क्योंकि ब्याज दरें बढ़ रही हैं और अपनी नकदी या तरलता बनाए रखें। यह बताता है कि सरकार बैंकों का लाभ बढ़ाने के लिए कड़ी निगरानी के माध्यम से अशोध्य ऋणों को रोकने के लिए कृत संकल्प है। इसके अलावा अवसंरचना पर बढ़ते व्यय, परियोजनाओं के त्वरित कार्यान्वयन और सुधारों के जारी रखने से बैंकिंग क्षेत्र को और बढ़ावा मिलेगा।

भारत में डिजिटल माध्यमों से ऋण वितरण में पांच गुना वृद्धि हुई

ये सभी कारक सकारात्मक वृद्धि का संकेत देते हैं क्योंकि बढ़ते व्यवसाय (Banking) से बैंकों की ऋण आवश्यकताएं बढ़ेंगी। प्रौद्योगिकी की प्रगति से बैंकों को अपनी कार्य कुशलता बनाए रखने में सहायता मिली है। इससे भी लाभ में वृद्धि होगी। हाल के वर्षों में भारत में फिनटेक और माइक्रो फाइनेसिंग में वृद्धि हुई है। भारत में वित्तीय वर्ष 2018 में डिजिटल रिवेन्यू 75 बिलियन अमरीकी डालर था और वित्तीय वर्ष 2023 तक इसके 1 ट्रिलियन अमरीकी डालर तक पहुंचने की संभावना है। भारत में डिजिटल माध्यमों से ऋण वितरण में पांच गुना वृद्धि हुई है। इसके अलावा कमजोर बैंकों के सुदृढ़Þ बैंकों के साथ विलय से भी बैंकिंग क्षेत्र को बढ़ावा मिला है। धनी लोगों द्वारा बैंकों की राशि में हेराफेरी करने के घोटालों के बावजूद यह भी सच है कि बैंकों की पहुंच बढ़ी है तथा छोटे व्यापारी और विनिमार्ताओं को ऋण मिला है। उदाहरण के लिए मुद्रा ऋण बहुत कम ब्याज दरों पर छोटे उद्यमियों को दिए जा रहे हैं।

यद्यपि निजीकरण सफल रहा है किंतु सरकारी क्षेत्र के बैंकों को प्रचालनात्मक स्वायत्तता और प्रशासनिक स्वायत्तता दी जानी चाहिए। ये सरकारी बैंक बोर्ड द्वारा प्रशासित हों और उन पर भारतीय रिजर्व बैंक का विनियमन हो। भारतीय रिजर्व बैंक ने इंडियन बैंक एसोसिएशन से ये बदलाव करने की सिफारिश की है। सरकारी क्षेत्र के बैंकों के अशोध्य ऋणों के संबंध में सुधार की आवश्यकता है। नेशनल एसेट््स रिकंस्ट्रक्शन कंपनी के गठन के बाद आगामी वर्षों में इस समस्या का समाधान होने की संभावना है। ऋणदाताओं को ऐसे मामलों को अंतरित करने के लिए सहमत होना होगा और ऐसा करना उनके हित में भी होगा क्योंकि अशोध्य ऋणों के संभावित के्रताओं के संबंध में बैंकों को सिर्फ एक ऐसे ऋण लेने वाले के साथ संव्यवहार करना आसान होगा और इससे समस्याओं के समाधान को बढ़ावा मिलेगा।

सहकारी तथा क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों को अपनी वित्तीय स्थिति में सुधार करना होगा

डिजिटलीकरण के मोर्चे पर भारत पिछले दो तीन वर्षों से तेजी से आगे बढ़ रहा है। (Banking) भारत में भुगतान और वित्तीय सेवा उत्पादों के वितरण के संबंध में अनेक वित्तीय प्रौद्योगिकी कंपनियां हैं। एक सफल नया प्रयोग यूनिफाइड पेमेंट इंटरफेस या यूपीआई है जिसे नेशनल पेमेंट कारपोरेशन आॅफ इंडिया ने विकसित किया है और जिसे भारत के केन्द्रीय बैंक द्वारा विनियमित किया जा रहा है। यह एक रीयल टाइम पेमेंट प्रणाली है जो विभिन्न बैंकों के बीच धन राशि के अंतरण में मोबाइल प्रयोक्ताओं को अुनमति दे रहा है। वर्तमान में प्रमुख बैंकों का 70 प्रतिशत लेनदेन डिजिटल चैनलों द्वारा किया जा रहा है। बैंकों और फिनटेक कंपनियों के बीच सहयोग से आगामी वर्षों में इस संबंध में कुछ नए प्रयोग देखने को मिलेंगे क्योंकि आर्टिफिशयल इंटेलीजेंस और डाटा अनेलिसिस में प्रगति के साथ इस क्षेत्र में भी प्रगति होगी।

भारतीय बैंकों की मजबूती अर्थव्यवस्था के लिए एक शुभ संकेत है। बैंकों को ग्रामीण क्षेत्रों में अपनी पहुंच बढ़ानी होगी तथा छोटे तथा मध्यम किसानों तथा व्यापारियों की सहायता करनी होगी ताकि उनकी आय बढ़ सके। इसके अलावा सहकारी बैंकों तथा क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों को अपनी वित्तीय स्थिति में सुधार करना होगा और जनता के बीच व्यापक स्तर पर अपनी पहुंच बनानी होगी। नि:संदेह बैंकों द्वारा वित्त पोषण ग्रामीण जनसंख्या को अपने व्यवसाय को बेहतर ढंग से विस्तार करने में मदद करेगा और इससे शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों के बीच की खाई भी कम होगी।

धुर्जति मुखर्जी वरिष्ठ लेखक एवं स्वतंत्र टिप्पणीकार (यह लेखक के अपने विचार हैं)

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