इस समय विश्व का अधिकांश भाग हिंसा, संकट, सत्ता संघर्ष, साम्प्रदायिक व जातीय हिंसा तथा तानाशाही आदि के जाल में बुरी तरह उलझा हुआ है। परिणाम स्वरूप अनेक देशों में आम लोगों के जान माल पर घोर संकट आया हुआ है। मानवाधिकारों का घोर हनन हो रहा है। लाखों लोग विस्थापित होकर अपने घरों से बेघर होने के लिए मजबूर हैं। ऐसे कई देशों में बच्चों व महिलाओं की स्थिति खास तौर पर अत्यंत दयनीय है। सीरिया, यमन व अफगानिस्तान जैसे देश तो लगभग पूरी तरह तबाह हो चुके हैं। ऐसे में किस देश की आम जनता पर क्या गुजर रही है इसकी सही जानकारी जुटा पाना भी एक बड़ी चुनौती बन गया है। ले देकर मीडिया ही एक ऐसा स्रोत है जिससे किसी भी घटना अथवा विषय की सही जानकारी हासिल होने की उम्मीद लगाई जा सकती है। परन्तु दुर्भाग्यवश संकटग्रस्त विभिन्न देशों का मीडिया भी अपनी निष्पक्षता व विश्वसनीयता खो चुका है या खोता जा रहा है।
विश्व में बढ़ते जा रही पूर्वाग्रही व पक्षपातपूर्ण पत्रकारिता का आलम यह है कि अनेक पक्ष के लोगों ने अपनी मनमानी डफली बजाने के लिए अपने कई निजी टीवी चैनल शुरू कर दिए हैं तथा अपने प्रवक्ता रुपी कई अखबार व पत्रिकाएं प्रकाशित कर रहे हैं। इसके अतिरिक्त सत्ता का गुणगान करने व पूर्वाग्रही विचार रखने वाले अनेक कथित लेखकों को भी मैदान में उतारा गया है जो सत्ता के गुणगान करने तथा सत्ता के आलोचकों पर हमलावर होने जैसी अपनी सरकारी जिम्मेदारी निभा रहे हैं। इसी प्रकार मुख्य धारा के कई टीवी चैनल्स के अनेक एंकर टीवी पर युद्धोन्माद फैलाने व साम्प्रदायिकता परोसने के विशेषज्ञ बन गए हैं। झूठी खबरें तक प्रकाशित करना इनके लिए साधारण सी बात है। पत्रकारिता पर छाते जा रहे इस गंभीर संकट का एक दुष्प्रभाव यह भी पड़ रहा है कि ईमानदार, अच्छे, ज्ञानवान व पत्रकारिता के मापदंडों पर खरे उतरने वाले अनेक ऐसे पत्रकार जो अपने मीडिया संस्थान के स्वामी के साथ अपने जमीर का सौदा नहीं कर सके और पत्रकारिता को व्यवसायिकता पर तरजीह देने का साहस किया ऐसे अनेक पत्रकार बड़े बड़े चाटुकार व सत्ता की गोद में खेलने वाले मीडिया संस्थानों से नाता तोड़ कर अपना स्वतंत्र अस्तित्व बनाए हुए हैं और पत्रकारिता जैसे पवित्र व जिम्मेदाराना पेशे की अस्मिता की रक्षा करने में लगे हैं।
मीडिया पर छाए अनिश्चितता के इस दौर में भी राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय स्तर के कुछ मीडिया संस्थान ऐसे भी हैं जो पत्रकारिता की अपनी जिम्मेदारियों को बखूबी निभा रहे हैं। यदि आज के दौर में इस तरह के जिम्मेदार मीडिया हॉउस न हों तो कोई भी ऐसा दूसरा स्रोत नहीं जो हमें संवेदनशील स्थानों की सही जानकरी दे सके। ऐसे ही एक कर्तव्यनिष्ठ मीडिया घराने का नाम है बीबीसी। 1922 में सर्वप्रथम ब्रिटिश ब्रॉडकास्टिंग कंपनी के नाम से स्थापित तथा अपनी स्थापना के मात्र 5 वर्षों बाद अर्थात 1927 में ब्रिटिश ब्रॉडकास्टिंग कापोर्रेशन के नाम से जाना जाने वाला मीडिया संस्थान अपनी स्थापना के समय से ही अपनी विश्वसनीयता, निर्भीकता तथा बेबाकी के लिए पूरे विश्व में प्रसिद्ध रहा है। बीबीसी सबसे तेज की नीति पर चलने के बजाए सबसे विश्वसनीय होने की नीति पर चलता रहा है। जनभागीदारी के आधार पर चलने वाला यह संस्थान हमेशा ही दबाव मुक्त रहा है।
बेशक निष्पक्ष और बेलाग लपेट की पत्रकारिता करने की जितनी कुबार्नी बी बी सी को देनी पड़ी है उतनी किसी दूसरे मीडिया घराने के लोगों को नहीं देनी पड़ीं। आज भी बीबीसी सीरिया, अफगानिस्तान, इराक, फिलिस्तीन, पाकिस्तान, म्यांमार, यमन, कश्मीर तथा ब्लूचिस्तान जैसे संवेदनशील इलाकों की रिपोर्टिंग पूरी ईमानदारी व जिम्मेदारी के साथ करने का प्रयास कर रहा है। हालांकि बीबीसी को पत्रकारिता के वास्तविक सिद्धांतों पर चलने का खमियाजा भी भुगतना पड़ रहा है। अकेले अफगानिस्तान में ही 1990 से शुरू हुए गृह युद्ध में अब तक बीबीसी के पांच पत्रकारों की हत्या हो चुकी है।
दरअसल जिस पक्ष को निष्पक्ष व जिम्मेदार पत्रकारिता नहीं भाती वही पक्ष बीबीसी का बैरी हो जाता है। उदाहरण के तौर पर पिछले दिनों अफगानिस्तान पर एक विस्तृत रिपोर्टिंग करते हुए बीबीसी ने यह दावा किया कि अफगानिस्तान में पिछले महीने एक हजार तालिबानी लड़ाके मारे गए। परन्तु तालिबान और अफगान सरकार दोनों ने ही मारे गए लोगों के बीबीसी के आंकड़ों की वैधता पर सवाल उठाए। तालिबान ने कहा कि वो पिछले महीने एक हजार लड़ाकों के मारे जाने के बीबीसी के दावों को पूरी तरह खारिज करता है और इसे निराधार मानता है। जबकि अफगानिस्तान के रक्षा मंत्रालय ने कहा है कि बीबीसी के इस शोध की गंभीरतापूर्वक समीक्षा किए जाने की जरूरत है और गंभीर रिसर्च के साथ जमीनी हकीकतों को रिपोर्ट में शामिल किया जाना चाहिए।
जबकि बीबीसी का कहना है कि वह अपने पत्रकारिता के सिद्धांतों पर खड़ी है। इसी प्रकार सीरिया में एक दोहरे हवाई हमले को लेकर रूस को कटघरे में खड़ा करने की भूमिका बीबीसी ने बड़ी ही जिम्मेदारी से निभाई। इनदिनों कश्मीर में धारा 370 की समाप्ति के बाद राज्य में पैदा हालात की रिपोर्टिंग भी बीबीसी द्वारा बड़े ही बेबाक तरीके से की जा रही है। कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि चाटुकार व दलाल मीडिया के वर्तमान दौर में नि:संदेह बी बी सी निष्पक्ष व निर्भीक पत्रकारिता का आज भी सर्वोच्च स्वर है।
तनवीर जाफरी
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