ग्रेटा थनबर्ग की चिंता व गुस्सा

greta thunberg her tension and anger

स्वीडन की 16 वर्षीय युवती ग्रेटा थनबर्ग ने जिस भावुकता व गुस्से से विश्व के अग्रणी देशों को जलवायु संबंधी नसीहत दी है, उसे नजरअंदाज करना गलत होगा। थनबर्ग ने संयुक्त राष्ट्र में जलवायु परिवर्तन संबंधी शिखर सम्मेलन में भाषण देते हुए विश्व के राजनेताओं पर नई पीढ़ी के साथ धोखा करने का आरोप लगाया है। थनबर्ग के तीखे शब्द भले ही उनके जोशीले स्वभाव व उम्र की पैदाइश लगती है किंतु इस बात में कोई संदेह नहीं कि यूरोप की युवा पीढ़ी विकास और विनाश के बीच की कड़ी से बेहद चिंतित है। इस वर्ष कई देशों में लाखों युवाआें ने जलवायु परिवर्तन की चिंता को लेकर कदम नहीं उठाए जाने पर रोष प्रकट किया है। विकसित देशों की जलवायु नीतियों की नाकारात्मक भूमिका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि अमेरिका का इस संयुक्त राष्ट्र के मौजूदा सम्मेलन में शामिल होने की रूचि नहीं थी। राष्टÑपति डोनाल्ड ट्रम्प बिना किसी घोषणा के अचानक ही कार्यक्रम में पहुंचे।

थनबर्ग के भाषण में दर्द इस कारण भी झलक रहा था कि विकसित और विकासशील देश कोई ठोस निर्णय लेने की हिम्मत नहीं कर रहे। विकसित देश ग्रीन हाऊस गैसों के उत्सर्जन का आरोप विकासशील देश के सिर मढ़कर अपनी जिम्मेदारी से भाग रहे हैं। यह वास्तविक्ता है कि विकास और प्रदूषण एक सिक्के के दो पहलू बन गए हैं। जब उद्योग स्थापित होते हैं तब हवा, पानी, धरती प्रदूषित होती है। तापमान में निरंतर विस्तार हो रहा है। बढ़ रही जनसंख्या की आवश्यकताएं पूरी करने के लिए ग्रीन हाऊस गैसों का उत्सर्जन बढ़ रहा है। एसी स्टेटस सिंबल बन गए हैं जिसने महानगरों को तपती भट्टी बना दिया है। विकास का सीधा संबंध रोजगार के साथ है। विकास और वातावरण संतुलन बनाने के लिए तकनीक को विकसित करना होगा।

भारत में आर्थिक मंदी के दौरान आटो उद्योग ठप्प पड़ा है। जलवायु परिवर्तन को रोकने के लिए कदम उठाने होंगे। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने संयुक्त राष्ट्र में अपने भाषण के दौरान कहा कि अब समय बातें करने का नहीं बल्कि काम करने का है। अब यह देखना है कि विकसित और विकासशील देश टाइम पास करते हैं या युवा पीढ़ी के दर्द को समझते हुए मनुष्य की जीवन शैली बदलने की चुनौतियों से निपटने का साहस दिखाते हैं।

 

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