हो जाए सावधान! यह खबर आपके लिए, गैस पर खाना पकाने से सेहत को हो सकते हैं ये नुक्सान

Gas Stove

रसोई गैस का विकल्प तलाशना होगा

हमें यह जानकर बड़ी हैरानी होगी कि रसोई गैस हमारी सेहत (Gas Stove) के लिए बेहद जोखिमभरी है। दरअसल, आॅस्ट्रेलिया की न्यू साउथ वेल्स यूनिवर्सिटी में हुए एक अध्ययन में यह जानकारी सामने आई है। यह सर्वविदित है कि आज हमारे घरों में अधिकतर लोग खाना पकाने के लिए एलपीजी यानी लिक्विड पेट्रोलियम गैस का इस्तेमाल करते हैं। लेकिन अध्ययन में शोधकर्ताओं ने कहा है कि अब एलपीजी गैस का विकल्प तलाशने का समय आ गया है। आज से पहले यही कहा जाता रहा है कि कोयला और लकड़ी को ईंधन के रूप में इस्तेमाल करने पर इनसे निकलने वाला धुआं सांस संबंधी बीमारियों को न्यौता देने का कार्य करता है।

लेकिन ताजा रिसर्च अब यह कहती है कि एलपीजी गैस पर भी खाना बनाना अपनी सेहत के साथ खिलवाड़ करने से कम नहीं है। उल्लेखनीय है कि एलपीजी को लोकप्रिय रूप से खाना पकाने के लिए इस्तेमाल किया जाता रहा है। आज तक यही माना जाता रहा है कि यह गैस साफ तरीके से जलती है और हवा को प्रदूषित नहीं करती है। लेकिन अब यह धारणा बदलने वाली है। एलपीजी न सिर्फ हमारी सेहत के लिए बल्कि पर्यावरण के लिए भी बेहद हानिकारक है।

शोधकतार्ओं का बताना है कि जब हम गैस जलाते हैं तो असल में हम मीथेन गैस को जला रहे होते हैं, जिससे जहरीले यौगिक बनते हैं। बता दें कि रसोई गैस में मीथेन मुख्य अवयव होता है, जो जलने पर ऊष्मा यानी गर्मी पैदा करता है। इससे नाइट्रोजन और आॅक्सीजन मिलकर नाइट्रो-आॅक्साइड बनते हैं, जो जहरीले कण हैं। इससे दमा समेत कई स्वास्थ्य समस्याएं हो सकती हैं। वैज्ञानिकों के मुताबिक, इस गैस से निकलने वाले जहरीले कण न सिर्फ फेफड़ों के लिए तमाम दिक्कतें पैदा करते हैं, बल्कि रक्तप्रवाह में भी मिल सकते हैं। इससे दिल की बीमारी, कैंसर और अल्जाइमर जैसी खतरनाक बीमारियों का खतरा पैदा हो सकता है। आपको बता दें कि मीथेन सबसे खतरनाक ग्रीनहाउस गैस है। जो कार्बन डाई आॅक्साइड से 25 गुना ज्यादा गर्मी अपने अंदर कैद करती है।

शोधकर्ताओं ने चेताया ये नुक्सान हो सकते है…|Gas Stove

  • जब हम गैस चूल्हा जलाते हैं तो असल में हम जीवाश्म ईंधन ही जला रहे हैं जिससे कार्बन मोनो आॅक्साइड और फारमैल्डीहाइड भी बन सकते हैं।
  •  कार्बन मोनो आॅक्साइड के उत्सर्जन से हवा में आॅक्सीजन कम होती है और खून मे भी आॅक्सीजन नष्ट होती है।
  • इससे हमें सिर दर्द और चक्कर आने जैसी समस्याएं हो सकती हैं।

जीवाश्म ईंधन क्या हैं?| Gas Stove

  • दरअसल, जीवाश्म ईंधन को बनाने में लाखों साल लगते हैं।
  •  इस प्रकार इन्हें अक्सर गैर-अक्षय ऊर्जा के रूप में जाना जाता है।
  • ये ईंधन सदियों से पशुओं और पौधों के मृत अवशेषों में स्वाभाविक रूप से होने वाले परिवर्तनों से उत्पन्न होते हैं।

मुख्य रूप से तीन प्रकार के जीवाश्म ईंधन हैं

कोयला जो एक ठोस जीवाश्म ईंधन है, तेल जो तरल जीवाश्म ईंधन है और प्राकृतिक गैस जो गैसीय जीवाश्म ईंधन है। इनका प्रयोग रोजाना के कार्यों जैसे कि बिजली उत्पन्न करना।  घर या आॅफिस के कमरों को गर्म करना। अपना वाहन चलाने आदि के लिए किया जाता है।

ईंधनों पर निर्भर| Gas Stove

  • हम इन सभी कार्यों के लिए इन ईंधनों पर निर्भर हैं।
  • इन ईंधनों के इस्तेमाल से हमारा जीवन सरल और आरामदायक बन गया है।
  • लेकिन इन ईंधनों में इनके अपने नकारात्मक पहलू भी है।
  • इन ईंधनों की आपूर्ति सीमित है और मांग अधिक है। यही कारण है कि इनकी कीमत उच्च है।
  • इसके अलावा इन्हें उत्पन्न होने में शताब्दियों का समय लगता है और ये लगभग गैर-नवीकरणीय होते हैं।
  •  ये तेजी से घट रहे हैं।

जलने पर कार्बन डाइआॅक्साइड गैस को छोड़ते हैं

जीवाश्म ईंधनों के साथ एक अन्य मुख्य समस्या यह है कि वे जलने पर कार्बन डाइआॅक्साइड गैस को छोड़ते हैं और यह वातावरण में प्रदूषण का स्तर बढ़ाती है। जीवाश्म ईंधन का बढ़ता उपयोग ग्लोबल वार्मिंग का एक प्रमुख कारण है। दुनिया भर के जीवाश्म ईंधन के प्रमुख उत्पादकों में चीन, सऊदी अरब, अमेरिका, रूस, कनाडा और इंडोनेशिया शामिल हैं।

सेहत के लिए नुकसानदेह | Gas Stove

रसोई गैस हमारी सेहत के लिए कितनी नुकसानदेह है, इसका अंदाजा इससे बखूबी लगाया जा सकता है कि इंवायरमेंट साइंस और टेक्नोलॉजी जर्नल में छपे अध्ययन में पाया गया कि अमेरिका में बच्चों में दमा होने के मामले 12.7 फीसदी, यानी हर आठ में से एक मामले में वजह रसोई गैस से हुआ उत्सर्जन है। वहीं, 2022 में हुए एक अध्ययन में में कहा गया था कि अमेरिका में रसोई गैस से जितना कार्बन उत्सर्जन होता है वह पांच लाख कारों से होने वाले उत्सर्जन के बराबर है। अगर हम भारत की वस्तुस्थिति की बात करें तो भारत, दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा एलपीजी उपभोक्ता देश है। यहां 2021 तक करीब 28 करोड़ एलपीजी कनेक्शन थे।

इनमें हर साल 15 फीसदी की बढ़ोतरी हो रही है। पेट्रोलियम मंत्रालय के अनुमान के मुताबिक, 2040 तक एलपीजी उपभोग बढ़कर 4.06 करोड़ टन पहुंच जाएगा। बता दें कि भारत में एलपीजी में प्रोपेन गैस का प्रयोग होता है। इसके जलने से खतरनाक बेंजीन गैस निकलती है। लिहाजा, हमें ऐसा विकल्प तलाशने की आवश्यकता हैं, जो ज्यादा सुरक्षित हो और पर्यावरण के भी अनुकूल हो। अब इलेक्ट्रिसिटी की ओर बढ़ना ज्यादा कारगर साबित हो सकता है। सोलर ऊर्जा भी बेहतर विकल्प हो सकती है। गौरतलब है कि अध्ययन में यह सलाह दी गई है कि एलपीजी की जगह इंडक्शन या बिजली के चूल्हों का इस्तेमाल करें। इसे कुकिंग गैस के सबसे सक्षम विकल्प के रूप में देखा जा रहा है।

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