Joe Biden in Israel: दुनिया के सबसे ज्यादा सुरक्षा घेरे में रहने वाले अमेरिका के राष्ट्रपति का युद्धग्रस्त इजराइल में जाना कोई आम बात नहीं है। इसके पीछे कोई बड़ा और विशेष मकसद है। अमेरिका कोई भी ऐसा जोखिम नहीं लेता जिसमें उसका फायदा न हो। सन् 1973 में अरब देशों ने इजराइल पर हमले किए। इस दौरान अमेरिका और कुछ अन्य देश खुलकर इजराइल के समर्थन में आए। अरब देशों ने प्रतिक्रिया स्वरूप अमेरिका पर तेल प्रतिबंध लगा दिए, जिससे अमेरिका को महसूस हुआ कि फिलिस्तीनी राज्य की मांग का स्थायी समाधान अमेरिका के हित में है। Israel News
लेकिन ओस्लो के समझौते के बाद अमेरिका ने फिलिस्तीन राज्य के मामले को ठंडे बस्ते में डाल दिया था। इजराइल भी इस मामले को दबाकर रखना चाहता था। इसी कारण सन् 2014 के बाद से इजराइल ने कभी भी फिलिस्तीन से बातचीत नहीं की। हमास इस बात से खफा था उसे लगता था कि दुनिया का ध्यान फिलिस्तीन मुद्दे की तरफ खिंचने का एकमात्र मार्ग युद्ध है और इसके लिए उसने एक बड़े फिलिस्तीनी युवा वर्ग को अपने पक्ष में कर लिया। हमास को लगता था कि दुनिया के दबाव में इजराइल इतना उग्र रूख नहीं अपनाएगा। यही गलती हमास को भारी पड़ी।
अमेरिका ने इजराइल को खुला समर्थन दे दिया। दूसरी तरफ अमेरिका ने अपने विदेश मंत्री ब्लिंकन को इजराइल भेजकर युद्ध को तीव्र होने से रोका क्योंकि इजराइल गाजा पर जमीनी मार करने के लिए सेना भेज रहा था। तीसरा अमेरिका ने गाजा के निवासियों को सुरक्षित बाहर निकलने का समय और रास्ता दिलाया। इन प्रयासों से अमेरिका ने एक रणनीति के तहत ईरान को सीधे युद्ध में कूदने से रोक लिया। अब अमेरिकी राष्ट्रपति ने इजराइल में आकर जहां इजराइल को खुश कर लिया वहीं अरब देशों को भी यह संदेश देने की कोशिश की कि उसके प्रयासों से फिलिस्तीनी नागरिकों की सुरक्षा सुनिश्चित हुई है।
अमेरिका का यह प्रयास बेशक इजराइल-फिलिस्तीन मसले को पहले की तरह लटकाने का हो लेकिन इजराइल की यह कोशिश होगी कि हमास का नामोनिशान मिट जाए और भविष्य में कोई भी हमास जैसा दुस्साहस न कर सके। लेकिन फिलिस्तीनी नेता यासिर अराफात की कही बात को याद रखना चाहिए।
उन्होंने कहा था कि फिलिस्तीनी वो नहीं है जो म्यूजियम में एक निशानी या यादगार बनकर रह जाएंगे। जब तक फिलिस्तीन का स्थाई हल नहीं होता कोई भी टालमटोल की नीति मध्यपूर्व में स्थायी शांति बहाल नहीं कर सकती। अमेरिका समेत अन्य देशों को भी अपने स्वार्थों से ऊपर उठकर न केवल मध्य पूर्व बल्कि विश्व शांति के लिए टालमटोल की नीति को छोड़कर सार्थक प्रयास करने चाहिए। Israel News
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