डाकू जगजीवन की रक्तरंजित होली की यादें आज भी जहन ताजा

चंबल घाटी में 17 साल पहले हुई थी घटना

इटावा (एजेंसी)। दशकों तक दुर्दांत दस्यु गिरोहों के आतंक का गवाह बनी चंबल घाटी में करीब 17 साल पहले होली के रोज हुए नरसंहार की याद कर आज भी बुजुर्ग सिहर उठते हैं। करीब आठ लाख रुपए के इनामी डाकू जगजीवन परिहार ने इटावा जिले में बिठोली इलाके के चौरेला ग्राम पंचायत के तीन गांवों में खूनी होली खेली थी। कभी चौरेला और उसके आसपास के गांव डाकू जगजीवन के आतंक से डरे सहमे रहा करते थे, लेकिन अब इन गांवों में खुशहाली लौट आई है।

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2006 में होली के दिन डाकू जगजीवन परिहार ने अपने गैंग के साथ चौरेला और उससे सटे हुए कई गांवों में धावा बोला। सबसे पहले अपने गांव चौरेला में जनवेद सिंह परिहार को बुलाकर होली वाले स्थान पर जिंदा जला दिया। डाकू गैंग इसके बाद ललूपुरा गांव पहुंचा जहां करन सिंह को घर से बुलाकर तालाब के पास गोली मारकर मौत के घाट उतारा दिया। दो हत्या के बाद गैंग ने पुरा रामप्रसाद गांव में धावा बोला। सोते समय दलित जाति के एक शख्स को मौत के घाट उतार दिया।

गांव के बुजुर्ग प्रेम सिंह परिहार खूनी होली कांड की याद ताजा करते हुए बताते हैं कि उस कांड के बाद पूरा गांव खाली हो गया था। गांव में सुरक्षा के लिए पुलिस की बड़ी तादाद में तैनाती की गई थी, लेकिन जब जगजीवन मारा गया उसके बाद गांव के हालात सामान्य हुए।

डाकू जगजीवन के गैंग के खात्मे के बाद गांव ले रहे हैं चैन की सांस

चौरेला गांव के गिरेंद्र सिंह परिहार बताते हैं कि जिस वक्त जगजीवन परिहार ने गांव में खूनी होली खेली थी। हालात बहुत ही खराब हो गए थे, लेकिन अब सूरत और सीरत पूरी तरह से बदल चुकी है। डाकू जगजीवन के गैंग समेत मारे जाने के बाद तो गांव में कहीं ना कहीं खुशहाली देखी जा रही है जो लोग पलायन कर गए थे वह वापस गांव में लौट आए हैं। रामबरन परिहार बताते हैं कि गोलीकांड के बाद गांव छोड़ कर जा चुके लोग गांव में वापस आ गए हैं। करीब 80 फीसदी गांव वाले वापस लौट आए हैं। गांव अब पूरी तरह से आबाद हो चुका है। गांव वालों के मन में पहले जैसा कोई भी खौफ नहीं रहा है अब गांव वाले बड़ी आराम से होली खेलते हैं।

खूनी होली के समय कक्षा 12 में पढ़ने वाला दीपेंद्र प्रताप सिंह आज सैनिक बन चुका है। दीपेंद्र की फिलहाल तैनाती राजस्थान के जैसलमेर में है और होली के लिये गांव में आया हुआ है। उन्होंने बताया कि खूनी होली कांड के दूसरे दिन पुलिस गांव तक पहुंच सकी थी। इसके पीछे क्वारी नदी पर पुल का ना बना होना मुख्य वजह माना गया। जगजीवन परिहार इसी स्कूल में पढ़ कर स्कूल चपरासी बना लेकिन निजी विवादो के कारण डाकू बन गया। इस गांव में करीब 250 मकान थे जिनमें 100 मकान खंडहर हो गए है। एक समय तो गांव के हालात ऐसे हो गये थे कि बुजुर्ग और महिला और बच्चो के अलावा कोई आदमी गांव में रहना मुनासिब नहीं समझता था। गांव में कोई बारात लाने के लिए तैयार नहीं होता था। पांच साल तक इस गांव में कोई भी बारात नहीं आई।

16 मार्च 2006 को हुआ था गोलीकांड

यह गोली कांड 16 मार्च 2006 को इटावा जिले के बिठौली थाना क्षेत्र के अंतर्गत चौरैला गांव में हुआ था। तब कुख्यात दस्यु सरगना जगजीवन परिहार ने मुखबिरी के शक में होली के दिन अपने गांव चौरैला में खूनी होली खेली थी। जगजीवन ने अपनी ही जाति के जनवेद सिंह को जिंदा होली में जला दिया और उसे जलाने के बाद ललुपुरा गांव में चढाई कर दी थी। वहां करन सिंह को बातचीत के नाम पर गांव में बने तालाब के पास बुलाया और मौत के घाट उतार दिया था। इतने में भी डाकुओं को सुकुन नहीं मिला तो पुरा रामप्रसाद में सो रहे दलित महेश को गोली मार कर मौत की नींद सुला दिया था। इन सभी को मुखबिरी के शक में डाकुओं ने मौत के घाट उतार दिया था।

जिस दिन यह गोलीकांड हुआ, प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव अपने गांव सैफई में होली खेलने के लिए आये हुए थे जिस कारण अधिकाधिक पुलिस बल सैफई ड्यूटी में लगा हुआ था। इस कांड की खबर मिलते ही आला अफसर इटावा छोड़ कर दूरस्थ चौरैला, ललुपुरा और पुरा रामप्रसाद गांव में आ पहुंचे थे। डाकू जगजीवन परिहार का आतंक इस कदर था उसके खाते में सैकड़ों अपहरण और लगभग 50 हत्याएं दर्ज हुई।

डाकू जगजीवन परिहार के आतंक से निपटने के लिए पुलिस ने योजना बनाई और तीनों राज्यों उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश और राजस्थान की पुलिस ने मिलकर 14 मार्च 2007 को जगजीवन परिहार व उसकी गैंग के पांच डाकुओं को 18 घंटे तक चली मुठभेड़ में मार गिराया। इस मुठभेड़ में एक पुलिस अधिकारी भी शहीद हुआ था और लगभग आधा दर्जन पुलिसकर्मी घायल हुए थे।

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