गुरु पूर्णिमा पर पूज्य गुरु जी ने साध-संगत को दिया बड़ा संदेश, रूहानी वचनों को सुनने के लिए उमड़े डेरा श्रद्धालु

saint Dr MSG

बरनावा। पूज्य गुरु संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां के पावन सान्निध्य में डेरा सच्चा सौदा की करोड़ों साध-संगत ने देश-दुनिया में गुरू पूर्णिमा पर्व धूमधाम और हर्षोल्लास से मनाया। इस शुभ अवसर पर पूज्य गुरु जी ने फरमाया कि प्यारी साध-संगत जीओ, आप सबको गुरू पूर्णिमा की बहुत-बहुत बधाई हो, बहुत-बहुत आशीर्वाद। गुरू शब्द अपने आप में बहुत बड़ा शब्द है। ‘गु’ का मतलब अंधकार होता है और ‘रू’ का मतलब प्रकाश, जो अज्ञानता रूपी अंधकार में ज्ञान का दीपक जला दे और बदले में किसी से कुछ ना ले, वही सच्चा गुरू होता है। गुरू की जरूरत हमेशा से थी, है और हमेशा रहेगी। खास करके रूहानियत, सूफियत, आत्मा-परमात्मा की जहां चर्चा होती है, उसके लिए गुरू तो अति जरूरी है। अगर वैसे देखा जाए, समाज में हमेशा से गुरू, उस्ताद की जरूरत पड़ती है।

जब बच्चे का जन्म होता है तो उसका पहला गुरू, उस्ताद उसकी माँ होती है। खिलाना, पिलाना, नहाना, पहनाना, यहां तक कि मल मूत्र भी साफ करना। माँ जैसा गुरू दुनियावी तौर पर दूसरा नहीं होता। फिर बारी आती है बच्चा चलना सीखता है। बहन-भाई, बाप गुरू का रूप धारण करना शुरू कर देते हैं। आप अपने बच्चे को दुनियावी शिक्षा देते हैं। बाप अपने बच्चे को दुनियावी शिक्षा देता है। दुनिया में कैसे रहना है? क्या करना है, क्या नहीं करना चाहिए? अपना अनुभव उसकी झोली में डालते हैं, अगर कोई लेना चाहे तो। क्योंकि ये कलियुग का दौर है, यहां बच्चे की अपनी गृहस्थी हुई नहीं कि माँ-बाप के अनुभव को ठोकर मार देता है, इसलिए अनाथ आश्रम बनते जा रहे हैं और भरते जा रहे हैं। लेकिन बात गुरू की, तो वो गुरू बाप भी होता है जो शिक्षा देता है, आगे बढ़ाता है। फिर कॉलेज, युनिवर्सिटी और आगे से आगे गुरू बदलते जाते हैं और इन्सान दुनियावी शिक्षा में ट्रेंड होता जाता है।

रूहानी, सूफी गुरू सर्वोत्तम

पूज्य गुरु जी ने फरमाया कि क्या आपने कोई ऐसा स्कूल, कॉलेज देखा है, जहां सिर्फ किताबें हों? आप एडमिशन करवाएं, कोई बताने वाला ना हो और आप जाएं, किताबें पढ़ लें और पास हो जाएं। क्या कभी सुना है कोई ऐसा स्कूल? नहीं सुना। जरा सोचिए, दुनियावी शिक्षा के लिए भी टीचर, मास्टर, लेक्चरार अति जरूरी है। दुनियावी शिक्षा, जो कि सामने है, डॉक्टर हैं, दुकानदार हैं, व्यापारी हैं, नौकरी पेशा हैं, तो सामने की शिक्षा है। लेकिन एक ऐसी शिक्षा, जो रूहानी है, आत्मिक ज्ञान, आत्मा का परमात्मा से मिलन कैसे हो? वो तो बाहर दिखता नहीं।

तो आप ये कैसे कह सकते हैं कि उसके लिए गुरू की जरूरत नहीं। जब दुनियावी ज्ञान के लिए जरूरत है तो उसके लिए (भगवान को पाने के लिए) भी गुरू की जरूरत बहुत ज्यादा है। आप यार, दोस्त, मित्र भी कहीं-न-कहीं छोटे-मोटे ज्ञान के लिए एक-दूसरे के गुरू का काम कर जाते हैं। आपको नॉलेज है दोस्तों को देते हैं, दोस्त अपनी नॉलेज आपको देता है, तो कहने का मतलब जो ज्ञान दे दे वो गुरू दुनिया में माना जाता है। लेकिन सर्वोत्तम स्थान रूहानी, सूफी गुरू का होता है।

सूफी, रूहानी इसलिए क्योंकि वो समाज में रहकर समाज को बदलता है, प्रैक्टिकल लाइफ में ज्यादा यकीन रखता है। पिछले इतिहास में जितने संत, पीर-पैगम्बर उनकी पाक पवित्र बाणी हुई, पवित्र ग्रन्थ हुए, उन सबको पढ़ता है, सुनता है, उनसे ज्ञान हासिल करता है, लेकिन यहीं बस नहीं करता, फिर वो खुद प्रैक्टिकल मैथड आॅफ मेडिटेशन खुद अनुभव करता है। फिर वो गुरू को उसका गुरू जब ये सोचता है, जब ये देखता है कि हाँ, अब ये परिपूर्ण हो गया है, परफैक्ट हो गया, ये आगे दूसरों को भी रास्ता दिखा सकता है तो गुरू फिर समाज में से विकार हटाने के लिए यानि नशा, वेश्यावृत्ति, माँसाहार, बुराइयां, जितनी भी बुराइयां समाज में हैं सबको हटाने के लिए वो गुरू का मन्त्र देता है, जो उसने खुद अभ्यास किया होता है।

परमात्मा का नाम है ‘गुरूमंत्र’

पूज्य गुरु जी ने फरमाया कि गुरूमंत्र, गुरू का मन्त्र नहीं होता। गुरूमंत्र यानि गुरू के पास वो शब्द, वो मैथड़, वो युक्ति जो परमात्मा का नाम होता है, बाइनेम गुरू गॉड को पुकारता है। क्योंकि उसको उसका गुरू बताता है कि ऐसे पुकारना है और जब वो पुकारता है, उन रास्तों पर चलता है भगवान वाले रास्तों पर, उन रास्तों पर चलकर जब वो अपने परमपिता परमात्मा के नजारे देखता है, गुरू-सतगुरू के नजारे देखता है और गुरू आदेश कर देता है कि जा बेटा! अब तू गुरू का रोल निभा, तो गुरू समाज में आता है। फिर वो समाज में वो ही मन्त्र देता है, जिसका खुद अभ्यास किया होता है। और गुरू क्या कहता है? मैं भी इन्सान हूँ, आप भी इन्सान हैं। अगर भगवान के इन शब्दों से मुझे भगवान की खुशियां मिली, भगवान के नजारे मिले तो अगर आप भी अभ्यास करोगे तो आपको क्यों नहीं मिलेंगे?

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