पर्यावरण आधारित विकास की पहल हो

Environment
पर्यावरण आधारित विकास की पहल हो

पर्यावरण (Environment) एवं प्रकृति की दृष्टि से हम बहुत ही खतरनाक दौर में पहुंच गए हैं। मानव की गतिविधियां ही इसके विनाश का कारण बन रही हैं। आज के दौर में समस्या प्राकृतिक संसाधनों के नष्ट होने, पर्यावरण विनाश एवं प्राकृतिक आपदाओं की हैं। सरकार की नीतियां, उपेक्षाएं एवं विकास की अवधारणा ने ऐसी स्थितियों को पैदा कर दिया है कि सरकार की बजाय न्यायालयों को बार-बार अपने डंडें का इस्तेमाल करना पड़ रहा है। महानगर में बढ़ते अंधाधुंध विकास के कारण पर्यावरण को भारी क्षति पहुंच रही है। आर्थिक एवं भौतिक तरक्की अक्सर प्रकृति एवं पर्यावरण के विनाश का कारण बनती रही है। हमें विकास की कार्ययोजनाएं पर्यावरणीय आधारित बनानी होगी।

वर्तमान में मानव की गतिविधियों से जितनी मिट्टी, पत्थर और रेत अपनी जगह से हटाई जाती है, वह सभी प्राकृतिक कारणों से हटने वाली कुल मात्रा से बहुत अधिक है। हरेक वर्ष जितने कंक्रीट का उत्पादन किया जाता है उससे पूरी पृथ्वी पर 2 मिलीमीटर मोटी परत चढ़ाई जा सकती है। प्लास्टिक का उत्पादन कुछ सालों के भीतर ही इतना किया जा चुका है कि इसके अवशेष माउंट एवरेस्ट से लेकर मरिआना ट्रेंच-महासागरों में सबसे गहराई वाला क्षेत्र तक मिलने लगा है। विश्व के आधे पेड़ काटे जा चुके हैं, और बहुत बड़ी संख्या में प्रजातियां मानव की गतिविधियों के कारण विलुप्त हो रही हैं। वायुमंडल से प्राकृतिक कारणों से जितनी नाइट्रोजन हटती है, उससे अधिक औद्योगिक उत्पादन, विकास कार्यों और कृषि से हट जाती हैं।

जोशीमठ में खड़ी हुई प्राकृतिक आपदा एकाएक नहीं हुई है, इस प्राकृतिक संकट को महसूस करते हुए वहां हो रहे भूस्खलन और धंसाव की समस्या को लेकर पिछले पचास वर्षों में कई अध्ययन कराए गए, लेकिन उनकी रिपोर्ट को ठंडे बस्ते में डाल दिया गया। वैज्ञानिकों ने हर बार आगाह किया, लेकिन इसके बाद भौगोलिक-तकनीकी अध्ययन कराने की ओर से आंखें फेर ली गर्इं। यदि बिना पर्यावरण की परवाह किए विकास यूं ही जारी रहा तो पर्यावरण पर इसके नकरात्मक प्रभाव उत्पन्न होंगे, जिससे यह उस स्थान पर रहने वाले निवासियों पर भी हानिकारक प्रभाव डालेगा। सतत विकास के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए, यह काफी जरूरी है कि हम पर्यावरण की सुरक्षा के लिए आवश्यक कदम उठायें। इस तरीके से यह सिर्फ ना वर्तमान के जनसंख्या के लिए लाभकारी होगा बल्कि भविष्य की आने वाले पीढ़ियां भी इसका लाभ ले सकेंगी।

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