गंभीर विषय। फसल अवशेषों को जलाने, खेतों में बुआई व बिजाई के दौरान नष्ट हो रहे मित्र कीट व पक्षी

Chandpura-village

…नहीं तो चुकानी पड़ेगी भारी कीमत

गांव चांदपुरा का किसान हर वर्ष बचा रहा टिटहरी के दर्जनों बच्चे

सच कहूँ/तरसेम सिंह जाखल। खेतों में फसल अवशेषों में लगी आगजनी, खेतों में बुआई, बिजाई व रोपाई के दौरान न जाने कितने मित्र कीट नष्ट हो जाते हैं। वहीं बेजुबान परिंदों के बच्चे तक मर जाते हैं। लेकिन कुछ पर्यावरण प्रेमी भी ऐसे भी हैं जो इनको बचाने को लेकर अपने फसल अवशेष नहीं जलाते। ये किसान इन मित्र कीटों को बचाने के लिए खुद नुकसान उठा लेते हैं। ऐसा ही उदाहरण पेश कर रहे हैं जाखल के गांव चांदपुरा के काली सिंह ग्रेवाल पुत्र बिल्लू सिंह। जो अपने खेत में धान रोपाई के सीजन में हर वर्ष टिटहरी के बच्चों को खेत में ही एक मिट्टी से टीला बनाकर बचाते हैं। इस बार भी उन्होंने तीन टिटहरी के दर्जनों बच्चों को बचाने का कार्य किया है जो अति सराहनीय है। इस किसान से सीख लेकर अन्य किसानों को भी इस प्रकार हमारे प्राकृतिक सुंदरता को बनाए रखने में सहयोग की बेजुबान पक्षियों को बचाने का कार्य किया जाना चाहिए।

आज हम प्रकृति से दूर होते जा रहे हैं। प्राकृतिक जीवों को बचाने के लिए समय-समय पर गांव में जागरूकता अभियान चलाए जाते हैं और पर्यावरण संरक्षण को बनाए रखने के लिए किसानों को फसल के अवशेष न जलाने के लिए प्रेरित किया जाता रहा है। फिर भी पता नहीं हम कब कुछ ऐसा सीखेंगे जो हमें और प्रकृति को एकमेव कर देगा। फसल अवशेष जलाने से हमारे मित्र कीट मर जाते हैं और हमारा वातावरण भी दूषित होता है। हमें फसल कटाई उपरांत फसल अवशेषों को जलाना नहीं चाहिए अपितु इन्हें कृषि यंत्रों की सहायता से भूमि में ही मिलाना चाहिए। इससे भूमि की उर्वरा शक्ति भी बढ़ेंगी व पर्यावरण भी सुरक्षित रहेगा और हमारे टिटहरी जैसे वन्य जीव भी बचे रहेंगे।
-डॉ. अजय ढिल्लों, कृषि विभाग।

बढ़ता औद्योगिकीकरण व वनों की कटाई प्रमुख कारण

सड़क निर्माण व उद्योग स्थापित करने के लिए वनों की अंधाधुंध कटाई जारी है। पृथ्वी का तापमान अनवरत बढ़ रहा है। मानसून का तेवर बिगड़ा हुआ है। और पशु-पक्षियों के लिए स्थान नहीं रह गया है। प्रकृति की मार के अलावा महंगाई के कारण गांवों और कस्बों में भी पालतु-पशुओं की संख्या में कमी आई है। औद्योगिकीकरण के फेर में हम इस कदर उलझे कि हमें बेजुबान पशु-पक्षियों की रत्ती भर भी परवाह नहीं रही। स्वार्थ में अंधे होकर हमने उनके प्राकृतिक आशियाने को खत्म कर दिया। परिणाम यह हुआ कि आज तमाम बेजुबान विलुप्त होने की कगार पर हैं। यदि अब भी हमें होश नहीं आया तो एक दिन ऐसा आएगा, जब हमें तमाम पशु-पक्षी सिर्फ इतिहास से पन्नों में ही नजर आएंगे।

पक्षियों को बचाने के लिए सरकार गंभीर

पक्षी वर्ग के संकट ग्रस्त जीवों में जार्डन नुकरी (जार्डन काउसर), जंगली खूसट या जंगली उल्लू, सफेद तोंदल, बगुला, सफेद पीठवाला गिद्ध, स्लैंडर तोंदल गिद्ध, लंबी तोंदल गिद्ध, लाल सिर वाला गिद्ध, बंगाल लोरीकेन, हिमालयन बटेर, गुलाबी सिर वाली बतख, सामाजिक टिटहरी, व साइबेरियाई सारस शामिल हैं। इन पक्षियों को बचाने के लिए सरकार भी गंभीर है। यही वजह है कि पशु-पक्षियों के खिलाफ क्रूरता रोकने के लिए बनाए गए पशु-पक्षी क्रू रता निवारण कानून-1960 में ही बन गया था, लेकिन अभी तक इस प्रावधान को अच्छे से लागू नहीं किया गया। जिसका परिणाम बेजुबान पशु-पक्षी भुगत रहे हैं।

प्राकृतिक संतुलन बनाने में पशु-पक्षियों का भी योगदान: काली सिंह

गांव चांदपुरा के काली सिंह ग्रेवाल ने कहा कि प्राकृतिक का संतुलन बनाएं रखने में जितने पेड़-पौधों की भूमिका होती है उतनी ही पशु-पक्षियों की भी। लेकिन जागरूकता की कमी व पेड़ों की कटाई होने से पक्षियों की बहुत की प्रजातियां लुप्त होती जा रही है। जो गंभीर विषय है। यदि हम सब चाहे तो छोटे-छोटे प्रयासों से इन्हें बचाने का कार्य कर सकते हैं।

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