दृढ़ विश्वास की बदौलत लौटी आंखों की रोशनी

बहन शकुंतला इन्सां पत्नी वीर सिंह इन्सां, निवासी गांव तिगांव जिला फरीदाबाद (हरि) से अपने पति पर बरसी सतगुरु जी की अपार रहमत का इस प्रकार वर्णन करती है:-सन् 2005 की बात है। एक बार ऑटो रिक्शा चलाते समय मेरे पति की आंख में पत्थर की एक छोटी सी कंकर पड़ गई। उन्होंने उसी समय शहर के डॉक्टर को दिखाया, लेकिन उसकी दवाई से कोई फायदा नहीं हुआ। मेरे पति को उस आंख से दिखना बंद हो गया। फिर हमने आंखों के विशेषज्ञ डॉक्टर को दिखाया, पर वहां से भी कोई लाभ नहीं हुआ।

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अंत में हमने फैसला किया कि ऑल इंडिया मेडिकल इंस्टीट्यूट में दिखाएंगे। उस समय मेरा बेटा हरियाणा पुलिस में कमांडो की ट्रेनिंग पर गया हुआ था। मैं भी सेल टैक्स आॅफिस में चपरासी के पद पर हूं। मैं अकेली अपने पति को लेकर एम्स में गई। डॉक्टरों ने मेरे पति की आंख के सारे चैकअप किए व रिपोर्ट देखकर बताया कि आॅप्रेशन करना पड़ेगा। मैं अपने पति की आंख का आॅप्रेशन करवाने के लिए तैयार हो गई। मैंने अपना ध्यान अपने (Ram Rahim) सतगुरु जी के पवित्र चरणों में लगाया और सुमिरन करने लगी। सुमिरन के दौरान मेरे पीछे से आवाज आई कि मैं पांच तारीख को आऊंगा। मगर मैंने सोचा कि पता नहीं यह किसकी आवाज है।

मैं डॉक्टर द्वारा दिए गए समय के अनुसार चार जुलाई को अपने पति को लेकर एम्स में पहुंच गई। पांच तारीख को आॅप्रेशन होना था। डॉक्टरों द्वार चैकअप करने के बाद उन्होंने दूसरी आंख का आॅप्रेशन करने के लिए कह दिया। इस पर मेरे पति मुझे देखकर फूट-फूट कर रोने लगे। मैंने पूछा कि क्या बात है? क्यों रो रहे हो? उन्होंने कहा कि जिस आंख से मुझे दिखता है, डॉक्टर उसी आंख का आॅप्रेशन करने को कह रहे हैं और साथ में यह भी कह रहे हैं कि इस आंख में और रोशनी आ जाएगी, लेकिन दूसरी आंख में रोशनी नहीं आएगी। मैं इतना सुनकर सबसे बड़े डॉक्टर के पास गई, जो पांचवीं मंजिल पर बैठा था। मैंने डॉक्टर से कहा कि मेरे पति वीर सिंह की दार्इं आंख का आॅप्रेशन होना है।

आप बार्इं आंख का आॅप्रेशन कर रहे हो, जबकि उसमें रोशनी है। उस आंख से दिखाई देता है। डॉक्टर ने मुझे बड़ी फटकार लगाई और बोला कि आप अपने मरीज को ले जाओ। आॅप्रेशन तो बार्इं आंख का ही होगा। मैंने भरे मन से अपने सतगुरु का पवित्र नारा ‘धन धन सतगुरु तेरा ही आसरा’ बोला और पूज्य हजूर पिता संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां के चरणों में विनती की कि पिता जी, अब आप जो करो सो करो, मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा। आपके बिना हमारा कोई सहारा नहीं। मैंने सतगुरु जी द्वारा बख्शे गुरुमंत्र (नाम) का सुमिरन करना शुरू कर दिया। उस रात जब मैं सुमिरन कर रही थी, तो पीछे से एक आवाज आई, मैं आ रहा हूं। मैंने अपने मन में सोचा कि मालिक तेरे ऊपर छोड़ दिया है। आप जैसा चाहो, करो। आपके बिना तो पत्ता भी नहीं हिल सकता।

पांच जुलाई को सुबह मेरे पति की बार्इं आंख के बाल काटे और सफाई करके आॅप्रेशन थिएटर में ले गए। मैं सतगुरु के चरणों में ध्यान लगाकर सुमिरन करती रही। मेरे पास मेरे परिवार का कोई सदस्य नहीं था। मुझे सिवाए सुमिरन के और कुछ भी नहीं सूझा। जब मेरे पति की आंख का आॅप्रेशन हो गया, तो उसे स्टाफ वाले आॅप्रेशन थिएटर से बाहर ले आए। वहां से आवाज आई कि वीर सिंह का आॅप्रेशन हो गया है। मैं जल्दी से भाग कर वहां गई, तो देखा कि मेरे पति की दार्इं आंख का आॅप्रेशन करके उसी पर पट्टी बंधी है। मैंने पवित्र नारा लगाया और अपने सतगुरु का लाख-लाख शुक्राना किया।

उसके बाद जब डॉक्टर वार्ड में चैकअप करने आया, तो उसने सारे डॉक्टर इकट्ठे कर लिए। वह डॉक्टर अंग्रेजी भाषा में बातें करने लगे। मैं भी अंग्रेजी भाषा कुछ-कुछ समझ रही थी। बड़ा डॉक्टर उन सभी डॉक्टरों को डांट रहा था कि तुमने यह क्या किया है! आॅप्रेशन तो बार्इं आंख का होना था, जो कार्ड पर लिखा हुआ है, तुमने दार्इं आंख का आॅप्रेशन कर दिया। मैं सतगुरु का ध्यान करके सब सुन रही थी। जब डॉक्टरों ने दार्इं आंख की पट्टी खोली तो उसमें बार्इं आंख से भी ज्यादा रोशनी थी। सब डॉक्टर हैरान थे। क्या से क्या हो गया! मेरे (MSG) सतगुरु जी ने वो कर दिखाया, जो मुझे चाहिए था। डॉक्टरों की सोच के सब विपरीत हुआ। ऐसा सब मेरे सतगुरु जी की रहमत से ही हुआ।मैं अपने सतगुरु जी के इस उपकार का बदला जन्मों-जन्मों तक भी नहीं चुका सकती। मेरा यह मानना है कि सतगुरु के लिए कुछ भी असंभव नहीं है।

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