जो भी गुरू जी के ये वचन सुनेगा उसका कोई भी रिश्ता जिन्दगी भर नहीं टूटेगा

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बरनावा। पूज्य गुरु संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां (Ram Rahim) ने आॅनलाइन रूहानी मजलिस के दौरान साध-संगत के सवालों के रूहानी जवाब दिए। आइयें पढ़ते हैं गुरु जी के वचन

सवाल : परिवार और रिश्ते बिगड़ रहे हैं, उन्हें सुरक्षित और मजबूत कैसे रखें?

पूज्य गुरु जी का जवाब : हमारे परिवार संयुक्त परिवार रहा करते थे। आज वो बिगड़ते जा रहे हैं। आप निगाह मारोगे तो पाओगे कि गाँवों में भी बहुत कम परिवार रह गए हैं जो संयुक्त परिवार हैं। रिश्ते बिखरने का सबसे बड़ा कारण है अहंकार, सहन शक्ति की कमी। जरा सी बात होती है और आप झगड़ा-झमेला शुरू कर लेते हैं। जरा सी बात होती है आप परेशान होने लग जाते हैं। जरा सी बात होती कि आप एक-दूसरे से बोलना बंद कर देते हैं। पहले तो ये आदत बहनों में पाई जाती थी, कि भई थोड़ा सा मुंह मोटा हुआ और कहती कि मैं नहीं बोलती इसके साथ। कई-कई दिन नहीं बोला करते थे, हमने देखा है बच्चों और सेवादारों को। पर अब तो भाई भी कहते हैं कि हम कौन सा कम हैं। तो ये भी बोलना छोड़ देते हैं आपस में। एक भाई निकलेगा दूसरा साइड में हो जाएगा, इसको निकलने दे, माथे लगाना भी पसंद नहीं करते। क्यों? आपकी रगों में एक ही माँ-बाप का खून है। एक ही माँ के गर्भ में आप पले-बढ़े हैं।

एक ही माँ का दूध पिया है। एक ही माँ-बाप की परवरिश में आप बड़े हुए हैं। उसी माँ-बाप ने आपको पढ़ाया लिखाया, फिर ऐसा क्या आ गया कि उस खून में जहर बनने लगा, उसका कारण अहंकार है, धन-दौलत है, जमीन-जायदाद है, औरत या मर्द है, क्योंकि बेटे-बेटियों में ये चल रहा है। तो वो झगड़े हो गए। एक और भी बड़ा कारण है गलत सोहबत, गलत संग करना। क्योंकि एक कहावत है कि उंगली लगाने वाले (चुगलखोर) बहुत होते हैं। आपको इकट्ठा देखकर खुश होने वाला तो कोई-कोई होगा, जिसके अच्छे संस्कार हैं, कोई संत, पीर-फकीर या कोई भक्त, वो तो खुश हो सकता है, वरना इकट्ठे परिवारों को देखकर लोग सड़ते हैं, जलते हैं। संयुक्त परिवारों के टूटने का एक और भी कारण है बुरा ना मानना, कहते हैं कि ना तो बुरो जन्मे और ना बुरा आए।

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कोई बुरा आ जाए, वो बहू हो सकती है, जमाई हो सकता है, माड़ा संग आपके बेटे-बेटी का भी हो सकता है, ये तीन कारण ऐसे हैं जो संयुक्त परिवार टूटने की बहुत बड़ी वजह बनते जा रहे हैं, क्योंकि वो लंबी नहीं सोचते। और एक परमपिता जी ने जो बताया वो भी बहुत बड़ा कारण है ‘‘गधा पचीसी उमरां जोर जवानी का’’, कि 25 से 45 साल या 40 साल तक की जो उम्र होती है, जब बच्चा अपने पैरों पर खड़ा होने लगता है, माँ-बाप की बनी बनाई जायदाद पर हक जमाता है, उसको पैसा मिल जाता है, वो अपने तरीके से काम करने लग जाता है, उसको लगने लग जाता है कि यार मेरे माँ-बाप तो बेवकूफ ही थे, मुझे जितनी अक़ल है काश मैंने काम संभाला होता तो मैं तो पता नहीं कितनी बुलंदियों पर ले जाता। तो यूं करते-करते 40-45 साल तक समय की ठोकरें, परिवारजनों की ठोकरें, समाज की ठोकरें, जब उसे पड़ती हैं ना तड़ाक-तड़ाक तो 42-45 साल में सोझी आती है कि ओ…हो… माँ-बाप ने तो सही किया था, बहुत लोगों को ऐसा एहसास होता होगा। उनके तज़ुर्बे की याद आती होगी कि हाँ, माँ-बाप ने हमारे लिए अच्छा ही किया था, बुरा नहीं किया।

क्योंकि कोई माँ-बाप, सारे तो नहीं कह सकते, पर हमारी संस्कृति के अनुसार तो 100 प्रतिशत। हमारी संस्कृति के अनुसार आज के समय में भी बहुत माँ-बाप ऐसे हैं जो अपने बच्चे का बुरा सोच भी नहीं सकते, करना तो बहुत दूर की बात है। पर उन बच्चों को बुरा लगता है कि नहीं…नहीं… मेरा तो बुरा करेंगे। मेरा तो ऐसा कर देंगे। कारण, वो कहते हैं ‘घर तां बस जे, पर उंगला आलÞे बसण नी देंदे’, कहने का मतलब बच्चे सुधर तो जाएं पर उंगली लगाने वाले (चुगलखोर) इर्द-गिर्द ही होते हैं। झूठी अफवाह, झूठी बातें दिलोदिमाग में डाल देते हैं और बच्चे उन पर चलकर घर-परिवार को बिखरा देते हैं। परिवार तिनकों की तरह बिखर जाते हैं।

अब आप सोच कर देखिए, अगर आप सत्संगी बच्चे हैं, राम नाम, ओउम, हरि, अल्लाह, वाहेगुरु को याद करने वाले हैं, सेवा का भाव रखते हैं आप, सभी धर्मों में जरा सोचकर देखिए, मान लीजिये आपका चाचा, ताऊ, बाप दो-तीन भाई हैं, आगे उनके दो-दो बच्चे हो गए तो छह वो हो गए तीन वो नौ, अब अगर उनमें से तीन बच्चे मानवता की भलाई भी करेंगे बारी-बारी से जाकर तो घर के काम-धंधे में नुक्सान भी नहीं होगा और राम-नाम, अल्लाह, वाहेगुरु की याद में भी आप मालामाल रहेंगे। कितना बढ़िया है। शादी में कोई चले गए तो बाकी दो-तीन घर को संभाल लेंगे। पहले होता था ऐसा, हमारा कल्चर था, सारे भाई इकट्ठा रहते थे। एक होता था हालÞी, एक होता था पालÞी। हालÞी, जो खेतों में हल चलाता था, सारा खेत धंधे का काम वो ही संभालता था। पालÞी, भैंस वगैरह को चराता और एक जुम्मेवार, जो शहर से सामान लाना, घर के खर्चों का हिसाब-किताब रखना।

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दो-तीन भाई अगर होते थे तो इस तरह से बहुत कमाल का सिस्टम था हमारे समाजों में, हमारी संस्कृति में। लेकिन आज वो खो गया है, तो हम तो यही प्रार्थना करेंगे कि अपने अहंकार को छोड़ो। ज़रा-ज़रा सी बात को गहराई में ना ले जाया करो। छोटी-छोटी बातें होती हैं और उसका बतंगड़ बनाने में आस-पड़ोस के लोग काम करते हैं। पंजाबी में एक कहावत है, आपको कई बार सुनाई है, फिर जुबान पर आ गई, ‘लाई लग ना होवे घर वाला ते चंदरा गोवांड ना होवे’, ये पुरानी कहावत है, गाने बन गए वो एक अलग बने हैं बाद में। लाई लग, किसी के कहने में आने वाला पति या पत्नी नहीं होने चाहिए। और चंदरा गोवांड ना होवे, पड़ोसी गंदा ना हो, जो हमेशा उंगली लगाता (भड़काता) रहे। जैसे ही बाहर से कोई आया, पत्नी या पति। तो वो कहते हैं, तेरा पति तो ऐसा है, तेरी पत्नी तो ऐसी है, ये ऐसा करती है। पुराने टाइमों में कहते थे, दाल-सब्जी लेने बहनें आती थी और क्या से क्या बोल जाती थी, बड़ी अज़ीबोगरीब बातें भी बोल देती थी, कि भई तेरा पति तो किसी काम का नहीं, वो तो बेकार है, फलां है, धिंकड़ है।

आई है सिर्फ सब्जी लेने और आग लगाकर चलती बनी। अब जब वो आते हैं पति महोदय तो शुरू हो जाता है महाभारत। तो इस तरह भाइयों में, आगे बच्चों में झगड़े करवा देते हैं और छोटा सा अहंकार, छोटी-छोटी बातों के लिए आपकी इगो हर्ट होने लगती है और आप अलग हो जाते हैं, झगड़े हो जाते हैं। तो हमारे अनुसार तो संयुक्त परिवार, सुखी परिवार। आप राम का, अल्लाह, वाहेगुरु का नाम जपा करो। छोटी-छोटी बातें इग्नोर मार दिया करो। आपके परिवार के बारे में कोई उंगली लगाता (चुगलखोरी करता) है तो सारे परिवार के सामने उसको ले आया करो, कि भई तू मेरे भाईचारे के बारे में ये कह रहा था, अब बोल क्या कह रहा था? तो उसने जो मसाला बनाया है वो सारा ही उड़ जाएगा और आगे से वो कभी भी आपके सामने आपके भाई, परिवार की निंदा नहीं करेगा। तो इस तरह से आज के टाइम में हमेशा के लिए संयुक्त परिवार जरूरी हैं।

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