गर्मियों में किसान भाई ‘बोटल गार्ड’ की करें उन्नत खेती

Lauki-kee-kheti

कददू वर्गीय सब्जियों में लौकी का स्थान प्रथम हैं। इसके हरे फलों से सब्जी के अलावा मिठाइयाँ, रायता, कोफते, खीर आदि बनायें जाते हैं। इसकी पत्तिया, तनें व गूदे से अनेक प्रकार की औषधिया बनाई जाती है। इसे बोटल गार्ड के नाम से जाना जाता हैं।

जलवायु- लौकी की खेती के लिए गर्म एवं आर्द्र जलवायु की आवश्यकता होती है। इसकी बुआई गर्मी एवं वर्षा के समय में की जाती है। यह पाले को सहन करने में बिलकुल असमर्थ होती है।

भूमि- इसकी खेती विभिन्न प्रकार की भूमि में की जा सकती हैं, किन्तु उचित जल धारण क्षमता वाली जीवांश्म युक्त हल्की दोमट भूमि इसकी सफल खेती के लिए सर्वोत्तम मानी गई हैं। कुछ अम्लीय भूमि में भी इसकी खेती की जा सकती है। पहली जुताई मिट्टी पलटने वाली हल से करें फिर 2-3 बार हैरों या कल्टीवेयर चलाना चाहिए।

लौकी की किस्में-

कोयम्बटूर- 1 यह जून व दिसम्बर में बोने के लिए उपयुक्त किस्म है, इसकी उपज 280 क्विंटल प्रति हेक्टेयर प्राप्त होती है, जो लवणीय क्षारीय और सीमांत मृदाओं में उगाने के लिए उपयुक्त होती हैं।
अर्का बहार- यह खरीफ और जायद दोनों मौसम में उगाने के लिए उपयुक्त है। बीज बोने के 120 दिन बाद फल की तुड़ाई की जा सकती है। इसकी उपज 400 से 450 क्विंटल प्रति हेक्टेयर प्राप्त की जा सकती है।

पूसा समर प्रोलिफिक राउन्ड- यह अगेती किस्म है। इसकी बेलों का बढ़वार अधिक और फैलने वाली होती हैं। फल गोल मुलायम/कच्चा होने पर 15 से 18 सेमी. तक के घेरे वाले होतें हैं, जों हल्के हरें रंग के होते है। बसंत और ग्रीष्म दोंनों ऋतुओं के लिए उपयुक्त हैं।

पंजाब गोल- इस किस्म के पौधे घनी शाखाओं वाले होते है। और यह अधिक फल देने वाली किस्म है। फल गोल, कोमल, और चमकीलें होंते हैं। इसे बसंत कालीन मौसम में लगा सकतें हैं। इसकी उपज 175 क्विंटल प्रति हेक्टेयर प्राप्त होती है।
पुसा समर प्रोलेफिक लाग- यह किस्म गर्मी और वर्षा दोनों ही मौसम में उगाने के लिए उपयुक्त रहती हैं। इसकी बेल की बढ़वार अच्छी होती हैं, इसमें फल अधिक संख्या में लगतें हैं। इसकी फल 40 से 45 सेंमी. लम्बें तथा 15 से 22 सेमी. घेरे वालें होते हैं, जो हल्के हरें रंग के होतें हैं। उपज 150 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है।

नरेंद्र रश्मि-यह फैजाबाद में विकसित प्रजाती हैं। प्रति पौधा से औसतन 10-12 फल प्राप्त होते है। फल बोतलनुमा और सकरी होती हैं, डन्ठल की तरफ गूदा सफेद औैर करीब 300 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उपज प्राप्त होती है।

पूसा संदेश-इसके फलों का औसतन वजन 600 ग्राम होता है एवं दोनों ऋतुओं में बोई जाती हैं। 60-65 दिनों में फल देना शुरू हो जाता हैं और 300 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उपज देती है।

पूसा हाईब्रिड-3 फल हरे लंबे एवं सीधे होते है। फल आकर्षक हरे रंग एवं एक किलो वजन के होते है। दोनों ऋतुओं में इसकी फसल ली जा सकती है। यह संकर किस्म 425 क्ंवटल प्रति हेक्टेयर की उपज देती है। फल 60-65 दिनों में निकलने लगते है।

पूसा नवीन-यह संकर किस्म है, फल सुडोल आकर्षक हरे रंग के होते है एवं औसतन उपज 400-450 क्ंवटल प्रति हेक्टेयर प्राप्त होती है, यह उपयोगी व्यवसायिक किस्म है।

खाद एवं उर्वरक– मृदा की जाँच कराके खाद एवं उर्वरक डालना आर्थिक दृष्टि से उपयुक्त रहता है। यदि मृदा की जांच ना हो सके तो उस स्थिति में प्रति हेक्टेयर की दर से खाद एवं उर्वरक डालें।

गोबर की खाद- 20-30 टन

नत्रजन- 50 किलोग्राम
स्फुर- 40 किलोग्राम
पोटाश- 40 किलोग्राम
खेत की प्रारंभिक जुताई से पहले गोबर की खाद को समान रूप से टैÑक्टर या मिट्टी पलटने वाले हल से जुताई कर देनी चाहिए। नाइट्रोजन की आधी मात्राए फॉस्फोरस एवं पोटाश की पूरी मात्रा का मि़श्रण बनाकर अंतिम जुताई के समय भूमि में डालना चाहिए। नत्रजन की शेष मात्रा को दो बराबर भागों में बांटकर दो बार में 4-5 पत्तिया निकल आने पर और फुल निकलते समय उपरिवेशन (टॉप ड्रेसिंग) द्वारा पौधो की चारों देनी चाहिए।

बोने का समय– ग्रीष्मकालीन फसल के लिए- जनवरी से मार्च
वर्षाकालीन फसल के लिए- जून से जुलाई
पंक्ति से पंक्ति की दूरी 1.5 मीटर ए पौधे से पौधे की दूरी 1.0 मीटर
बीज की मात्रा- जनवरी से मार्च वाली फसल के लिए:- 4-6 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर

जून से जुलाई वाली फसल के लिए:- 3-4 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर

सिंचाई- ग्रीष्मकालीन फसल के लिए 4-5 दिन के अंतर सिंचाई की आवश्यकता होती है, जबकि वर्षाकालीन फसल के लिए सिंचाई की आवश्यकता वर्षा न होने पर पड़ती है। जाड़े में 10 से 15 दिन के अंतर पर सिंचाई करना चाहिए।
निराई- गुड़ाई-लौकी की फसल के साथ अनेक खरपतवार उग आते है। अत: इनकी रोकथाम के लिए जनवरी से मार्च वाली फसल में 2 से 3 बार और जून से जुलाई वाली फसल में 3 -4 बार निराई-गुड़ाई करें।

मुख्य कीट-लाल कीडा (रेड पम्पकिन बीटल)-

प्रौढ़ कीट लाल रंग का होता है। इल्ली हल्के पीले रंग की होती है तथा सिर भूरे रंग का होता है। इस कीट की दूसरी जाति का प्रौढ़ काले रंग का होता है। पौधों पर दो पत्तियां निकलने पर इस कीट का प्रकोप शुरू हो जाता है। यह कीट पत्तियों एवं फुलों कों खाता है। इस कीट की सूंडी भूमि के अंदर पौधों की जड़ों को काटता है।

तुड़ाई-फलों की तुड़ाई उनकी जातियों पर निर्भर करती है। फलों को पूर्ण विकसित होने पर कोमल अवस्था में किसी तेज चाकू से पौधे से अलग करना चाहिए।

उपज-प्रति हेक्टेयर जून-जुलाई और जनवरी-मार्च वाली फसलों में क्रमश 200 से 250 क्विंटल और 100 से 150 क्विंटल उपज मिल जाती है।

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