परेशानी का सबब बने टिड्डी दल

Grasshopper
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टिड्डी नया या आधुनिक कीट नहीं है। ईसा के समय में भी इस प्रवासी कीट के होने के प्रमाण मिलते हैं। 1422 ई. से 1411 ईसा पूर्व होरेमबए प्राचीन मिस्र के कब्र कक्ष में टिड्डी का उल्लेख मिलता है। प्राचीन मिस्रियों ने 2470 से 2220 ईसा पूर्व की अवधि में कब्रों पर टिड्डी की नक्काशी की थी। कुरान में भी कई जगह टिड्डियों के स्थानों का उल्लेख मिलता है। नौवी शताब्दी ईसा पूर्व चीन अधिकारियों ने टिड्डे विरोधी अधिकारियों को नियुक्त किया था। महान युनानी दार्शनिक व राजशास्त्री अरस्तु ने भी टिड्डी के प्रजनन और उसकी आदतों का उल्लेख किया है।

एन.के. सोमानी

पाकिस्तान से आए प्रवासी टिड्डियों के दल ने राजस्थान के 10 जिलों में तबाही मचा दी है। सीमांत क्षेत्र में टिड्डियों के प्रकोप से परेशान किसान अपनी आंखों के सामने हाडतोड़ मेहनत से तैयार फसलों को बरबाद होते देख रहे हंै। अंतरराष्ट्रीय सीमा से सटे जिलों के लगभग 850 गांव के 90 हजार किसान प्रभावित हुए है, तथा 1.55 लाख हैक्टेयर फसल का नुक्सान प्राम्भिक सर्वे में सामने आया है। सरसों, तारामीरा तथा गेहूं की फसल को टिड्डियों ने नुकसान पहुंचाया है। राजस्थान के साथ-साथ पड़ोसी राज्य गुजरात के भी कई जिलों में टिड्डी के हमले से फसल खत्म होने के समाचार आ रहे हैं। राजस्थान व अन्य राज्यों सहित देश में अब तक 15 बार टिड्डी दलों का आक्रमण हो चुका है। सरकार व कृषि अधिकारियों को समझ में नहीं आ रहा है कि खेत, फसल व भूमि पुत्रों के दुश्मन इस ‘घुसपैठिये’ से आखिर कैसे निपटा जाए। हालांकी कृषि पर्यवेक्षकों सहित कृषि विभाग के आला अधिकारियों द्वारा गांव-गांव जाकर टिड्डियों को भगाने के उपाय बताए जा रहे हैं।
राजस्थान के सीमावर्ती जिलों जोधपुर, जैसलमेर, बाड़मेर, श्रीगगांनगर सिरोही, जालोर व बीकानेर में टिड्डी दलों का हमला होता रहा है। इस बार पहला टिड्डी दल मई के आखिरी सप्ताह में देखा गया था। उसके बाद कृषि विभाग के अधिकारियों ने रात-दिन अभियान चला दवा छिड़काव कर इन पर काबू पाया था, लेकिन अब एक बार फिर बड़ी संख्या में टिड्डियों के हमले ने सरकार व किसानों की नींद उड़ा दी है। इस साल राज्य के चार जिलों में 1 लाख 38 हजार 585 हेक्टेयर भूमि पर अब तक 96 हजार 748लीटर दवा छिड़की जा चुकी है, फिर भी किसानों की परेशानी कम होने का नाम नहीं ले रही है।
विकीपिडिया के अनुसार टिड्डी ऐक्रिडाइइडी परिवार आर्थाप्टेरा गण का कीट है। हेमिप्टेरा गण के सिकेडा वश का कीट भी टिड्डी या फसल टिड्डी कहलाता है। इसे लघुश्रृंगीय टिड्डा भी कहा जाता है। पूरी दुनिया में इसकी केवल छह प्रजातियॉं पाई जाती हैं। यह प्रवासी कीट है, और इसकी उड़ान दो हजार मील तक पाई जाती है। टिड्डी दल अक्सर असंतुलित जलवायु वाले स्थानों पर पाया जाता है कैस्पियन सागर, ऐरेंल सागर तथा बालकश झील में गिरने वाली नदियों के बालू से घिरे डेल्टा को टिड्डीयों का निवास स्थान कहा जाता है। इसके अलावा जिन क्षेत्रों में बरसात कम या अधिक होती है, उस मरूभूमि में पाए जाने वाले घास के मैदानों में भी टिड्डीयां पाई जाती है। वैज्ञानिक अनुसंधानों में पता चला है कि टिड्डी दल पहले पूर्वी अफ्रीकी देश इथियोपिया, सोमालिया, मोरोक्को, मोरिटानिया के साथ-साथ अरब देश यमन के अंदर तबाही मचाकर भारत की और रूख करते हैं। यह हिंद महासगर के रास्ते भारत और पाकिस्तान में प्रवेश करती है।
एक टिड्डी दल में लाखों की संख्या में टिड्डियां होती हैं, और जहां भी यह दल पड़ाव डालता है, वहां फसलों तथा अन्य वनस्पतियों को चट कर जाता है। इसके आक्रमण से खेतों को भारी नुक्सान पहुंचता है। वैज्ञानिकों की माने तो एक कीट अपने वजन के बराबर फसल खा जाता है, इसका वजन 2 ग्राम होता है। इसे नियंत्रित करने के लिए हवाई जहाज से विषैली औषधियों का छिड़काव, विषेला चारा, हेक्साक्लोराइड के विलयन में भीगी हुई गेहूँ की भूसी का फैलाव किया जाता है। लेकिन यह सभी साधन अत्यत खर्चिले होने के कारण लोग टिड्डियों को भगाने के लिए थाली-पिंपे के शोर या धुआं करने जैसे अन्य पंरपरागत साधनों का सहारा लेते है। इससे पहले जुलाई-अक्टूबर 1993 में टिड्डी दलों ने राजस्थान में बड़ा हमला किया था और हजारों हेक्टयर में फसल तथा वनस्पति को बर्बाद कर दिया था। उस वक्त टिड्डियों के आक्रमण से खेतों में खड़ी मूंग, बाजरा, मोठ, तिल, ग्वार की फसल को नुकसान हुआ था। ग्रामीण बताते हैं कि 1993 की टिड्डी का आकार आज की टिड्डी से बड़ा था। इसके बाद वर्ष 1998 में टिड्डी दल ने राजस्थान में बड़ा नुकसान पहुंचाया था। कहा तो यह भी जाता है कि जब-जब देश के भीतर टिड्डी ने आक्रमण किया है, तब-तब देश में अकाल की स्थिति बनी है। राजस्थान के साथ-साथ गुजरात के बनासकांठा जिले में टिड्डियों के आक्रमण से फसलों को काफी नुकसान हुआ है। धानेरा मंडल में अभी भी टिड्डियों का आतंक जारी है। गुजरात के बनासकांठा, साबरकांठा, पाटण, एवं महेसाणा मंडल में टिड्डियों ने छह हजार से भी अधिक हेक्टेयर में फसलों को तबाह कर दिया है। यहां टिड्डियों ने राई, एरंडा, गेहूँ और कपास सहित विविध फसलों को नष्ट किया है।
जोधपुर जिले के कई गांवों मेंं खेतों में खड़ी फसलों को टिड्डी दल ने चट कर दिया है। जोधपुर जिले में पिछले चार दिनों से बाप, फलोदी, शेरगढ, बालेसर व लूणी उपखंड के दर्जनों गांवों में किसानों की फसलों को टिड्डियों ने चट कर डाला है। बाड़मेर जिले में पाकिस्तान से लगती सीमा से टिड्डियों के आने का क्रम जारी है। पिछले दो दिन में तीन बडे़ दल पाक से भारत में घुसे हैं। श्रीगांनगर के अनुपगढ़ क्षेत्र में भी टिड्डी दल का आतंक जारी है। घड़साना उपखंड के दो दर्जन से अधिक चक टिड्डी दल के आक्रमण से प्रभावित हुए हैं। बाड़मेर जिले में पाकिस्ताल से लगती सीमा से टिड्डियों के आने का क्रम जारी है। पिछले दो दिन में तीन बडे़ दल पाक से भारत में घुसे हैं।
टिड्डियों के प्रकोप से वह किसान सबसे ज्यादा चिंतित है, जो पहले से ही कर्ज में डूबे हुए हैं। ऐसे में अगर उनकी फसलें टिड्डी दल का शिकार होती हैं, तो उनकी माली हालात खराब हो जाएगी। दूसरी ओर बीमा कंपनी के नियम भी किसानों की तकलीफ को बढ़ाने वाले हैं। फसल बीमा में व्यक्तिगत स्तर पर क्लेम का प्रावधान नहीं है। ऐसे में किसी पटवार सर्किल में 50 फीसदी या इससे अधिक खराबा होने पर ही उस इलाके के किसानों को क्लेम मिल पाता है। हालांकि प्रदेश के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने सीमांत क्षेत्र में टिड्डियों के प्रकोप से फसल खराबे का जायजा लेने के लिए बाड़मेर, जालोर, एवं जैसलमेर का दौरा कर सात दिन में गिरदावरी करने के निर्देश दिए है। उधर, पाकिस्तान ने भी देर से ही सही अब टिड्डियों पर नियंत्रण करने के लिए हवाई छिड़काव करने की तैयारी की है। सिंध प्रांत के मुख्यमंत्री सैयद मुराद अली शाह ने सोमवार को कृषि मंत्रालय से कहा कि रेगिस्तानी इलाके में स्प्रे करने के लिए कई विमान किराए पर लेने के निर्देश दिए है। जिससे प्रजनन काल की शुरूआत से पहले ही उन क्षेत्रों में टिड्डियों को मिटाया जा सके। उम्मीद की जानी चाहिए कि राज्य सरकार व पड़ोसी देश के संयुक्त प्रयासों के चलते जल्द ही हमारा अन्नदाता काले-पीले पखंधारी ‘घुसपैठिये’ के भय से मुक्त होगा।

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