पूज्य गुरु जी ने स्वयं प्रकट होकर प्रेमी को भारी मुसीबत से बचाया

Saint Dr. MSG

प्रेमी गुरचरण सिंह पुत्र कृपाल सिंह गांव काट दुन्ना जिला संगरूर (पंजाब) से सतगुरु की उस पर हुई दया-मेहर का एक करिश्मा इस प्रकार वर्णन करता है:-

27 फरवरी 1995 की सुबह को वह अपने घर में अर्द्ध निंदा की अवस्था में सोया हुआ था। उसे स्वप्न आया कि उसका स्कूटर के साथ एक्सीडैंड हो गया और उसकी टांग तीन जगह से टूट गई है। सपने में ही उसे डॉ. सतीश के अस्पताल में दाखिल करवाया गया। पूज्य हजूर पिता संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां ने उसके ऊपर अपनी पवित्र दया दृष्टि डालते हुए वचन फरमाया, ‘‘बेटा! ठीक है। कोई तकलीफ तो नहीं।’’ गुरचरण सिंह ने नतमस्तक होकर कहा, पिता जी! आप तकलीफ तो बिल्कुल भी नहीं होने देते और न ही अब है। तब पूज्य गुरु जी उसे भरपूर आशीर्वाद देकर अलोप हो गए। प्यारे दातार जी के दर्शन करके उसे असीम खुशी हुई और साथ में ही में सोच में पड़ गया कि मामला क्या है?

अगले दिन 28 फरवरी 1995 को बारह बजे दोपहर को वह बरनाला से धनौला ठेकेदार के पास साईकिल पर जा रहा था। रास्ते में ही उसका एक स्कूटर सवार के साथ एक्सीडैंट हो गया। उसकी वहीं टांग (जो  सपने में टूटी थी) स्कूटर के नीचे आ गई। उसी क्षण पूज्य गुरु जी वहां प्रकट हो गए। प्यारे दातार जी ने अपने पवित्र कर कमलों से स्कूटर को ऊपर उठाया हुआ था। उसकी टांग पर स्कूटर का भार बिल्कुल नहीं आने दिया। तब प्रेमी ने तुरन्त अपनी टांग स्कूटर के नीचे से खींच ली। प्यारे सतगुरु जी ने उसकी टांग टूटने से बचा ली, जो कि वास्तव में टूटनी ही थी। वह उसका कोई कठोर कर्म था, जो सतगुरु जी ने अपनी दया-मेहर से सपने में ही भुगतवा दिया। अगर उसने अपने सतगुरु का पल्ला न पकड़ा होता तो पता नहीं कितनी मुश्किलों का सामना करना पड़ता।

इस प्रकार सतगुरु अपने जीव की पल-पल, क्षण-क्षण सम्भाल करता है। शिष्य को यह पता भी नहीं चलते देता कि कब मुसीबत आई और कैसे टल गई। संकट के समय जितनी जल्दी सतगुरु सहायता के लिए पहुंचता है, उतनी जल्दी और कोई नहीं पहुंच सकता। जीव की जो मदद सतगुरु कर सकता है, वो कोई नहीं कर सकता। जो जीव सतगुरु के हुक्म को मानते हुए उसकी रज़ा में रहते हैं। सतगुरु उनके भारी से भारी कर्मों को सूली से सूल कर देता है, जैसे कि उपरोक्त साखी से स्पष्ट है।

पूरा सतगुरु अपनी रूह के हर समय अंग-संग होता है। जीव कहीं भी है, चाहे वो उजाड़-पहाड़ में है और चाहे सात समुद्र पार है, सतगुरु उसके हर दु:ख-संकट में सहाई होता है। जो इन्सान अपने सतगुरु मुर्शिदे-कामिल के हुक्म, उनकी रज़ा में रहते हैं और उनके वचनों पर दृढ़ता से अमल करते हैं तो सतगुरु भी उपरोक्त अनुसार उसे मुश्किल की कोई घड़ी देखने नहीं देता। वह अपने शिष्य के सूली जैसे कर्म को अपन दया मेहर रहमत से सूल (कांटे) में बदल देता है, केवल यही नहीं बल्कि उसे सूल (कांटे) की भी पीड़ा का अनुभव नहीं होने देता।

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