Shah Satnam Ji: कण-कण में हाजिर हजूर…

Shah Satnam Ji
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सच्चे सतगुरु, समाज सुधारक, पूजनीय परम पिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज ने समाज, देश और पूरी मानवता पर ऐसे अनगिनत उपकार किए हैं, जिनका वर्णन करना सूर्य को दीपक दिखाना है। नशे और अन्य बुराइयों के कारण जो घर नरक बन चुके थे, उन्हें आपजी ने फिर से खुशियों से भर दिया। राक्षसी प्रवृत्ति वाले लोग आपकी शरण में आकर देवतुल्य बन गए। धर्म और जाति के नाम पर एक-दूसरे के शत्रु बने लोग, सब वैमनस्य छोड़कर आपसी प्रेम और भाईचारे के सूत्र में बंध गए। आपजी ने रूहानियत को इतना सरल और सहज बना दिया कि छोटे-छोटे बच्चे भी भक्ति के मार्ग पर चल पड़े। आपजी की रूहानी शिक्षा का ऐसा प्रकाश फैला कि लोग जादू-टोना, तावीज, भूत-प्रेत जैसे अंधविश्वासों और पाखंडों से दूर हो गए। आपजी ने विभिन्न प्रांतों में गाँव-गाँव, शहर-शहर सत्संग लगाकर परमात्मा के नाम का ऐसा संदेश दिया कि चारों ओर राम-नाम की गूंज उठने लगी। Shah Satnam Ji

आपजी ने यह शिक्षा घर-घर पहुंचाई कि परमात्मा एक है- ओम, राम, अल्लाह, वाहिगुरु, गॉड ये सभी उसी एक परमेश्वर के नाम हैं। संपूर्ण सृष्टि उसकी संतान है। कोई ऊँच-नीच नहीं, सब बराबर हैं। परमात्मा की प्राप्ति के लिए बाहरी आडंबर, पाखंड, पैसे-चढ़ावे या धन की आवश्यकता नहीं, बल्कि सच्ची भावना चाहिए। रूहानियत के इतिहास में आपजी का यह महान परोपकार मील का पत्थर साबित हुआ जब आप जी ने वचन फरमाए कि हम थे, हम हैं और हम ही रहेंगे। सामान्यत: सतगुरु का देह रूप में वियोग शिष्य के लिए सबसे असहनीय होता है, परंतु पूजनीय परम पिता जी ने यह स्पष्ट कर दिया कि ‘हम जाएंगे ही नहीं, सदैव तुम्हारे (पूजनीय हजूर पिता जी के) रूप में रहेंगे।’ यह पवित्र वचन साध-संगत के लिए महापरोपकार तथा रूहानियत में अद्वितीय उदाहरण है।

एमएसजी के रूप में ये वचन साकार हुए। पूजनीय बेपरवाह सांईं शाह मस्ताना जी महाराज व पूजनीय परम पिता जी से नाम प्राप्त करने वाले जीव अपने अनुभव बताते हैं कि उन्हें पूज्य हजूर पिता जी में शाह मस्ताना जी महाराज तथा परम पिता शाह सतनाम जी महाराज के ही दर्शन होते हैं। Shah Satnam Ji

पूजनीय परम पिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज ने 25 जनवरी 1919 को श्री जलालआणा साहिब की पवित्र धरती पर पूजनीय पिता वरियाम सिंह जी और पूजनीय माता आस कौर जी के घर अवतार धारण किया। बचपन से ही आपजी का सामाजिक और धार्मिक जीवन प्रेरणा-स्त्रोत था। आपजी ने अपने सतगुरु शाह मस्ताना जी महाराज के प्रेम, भक्ति और श्रद्धा में महान बलिदान दिया। अपने सतगुरु जी के हुक्मानुसार अपनी बड़ी हवेली गिराकर संपूर्ण सामान सरसा दरबार ले आए। फिर सांईं जी के हुक्म अनुसार सर्द रात में सारा सामान डेरे के बाहर रख दिया। अगले दिन आपजी ने सारा सामान आई हुई साध-संगत में बाँट दिया। पूजनीय बेपरवाह शाह मस्ताना जी महाराज जी ने इस महान बलिदान को देखकर अपार कृपा से भरपूर वचन फरमाए और समस्त साध-संगत के सम्मुख आपजी को पवित्र गुरगद्दी बख्शिश की। सांईं मस्ताना जी ने आपजी का नाम स. हरबंस सिंह जी से बदलकर सतनाम सिंह जी रख दिया।

पूजनीय परम पिता जी ने रूहानियत के इतिहास में नई मिसाल कायम करते हुए 23 सितंबर 1990 को पूजनीय गुरु संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां को गुरगद्दी की बख्शिश की। आप जी सवा साल तक पूजनीय हजूर पिता जी के साथ स्टेज पर विराजमान रहे। पूजनीय परम पिता जी ने साध-संगत पर दया मेहर करते हुए स्पष्ट वचन फरमाए- ‘पूजनीय शाह मस्ताना जी के रूप में व अब इस शरीर में (पूजनीय परम पिता जी के रूप) में हमने ही साध-संगत की संभाल की और आगे भी संत जी (पूजनीय हजूर पिता जी) के रूप में हम ही संभाल करते रहेंगे।’

परंपरा के अनुसार परमात्मा के हुक्म से संत अपना चोला बदलते हैं। 13 दिसंबर 1991 को पूजनीय परम पिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज ने अपना नूरी चोला बदल लिया। किंतु आपजी पूज्य हजूर पिता जी के रूप में साध-संगत की दिन-दुगुनी, रात-चौगुनी संभाल कर रहे हैं। डेरा सच्चा सौदा की साध-संगत इस महीने को सेवा माह व 3 इन 1 एमएसजी भंडारे के रूप में मनाती है। 12 से 15 दिसंबर तक प्रतिवर्ष आँखों का मुफ्त शिविर लगाया जाता है, जिसने अब तक हजारों लोगों की अंधेरी जिंदगी में प्रकाश ला दिया है। सेवा की यह मशाल पूरे लौ के साथ जल रही है। सच्चे सतगुरु पालनहार को हमारा करोड़ों बार नमन। Shah Satnam Ji