मान-सम्मान तो दूर बेवजह अपराधी बना दिया

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सरकार शराब के ठेकों की संख्या बढ़ा रही है व शराब को नशा नहीं मानती/intoxication

तिलकराज शर्मा

पंजाब आज देश भर में नशों के सेवन तस्करी के कारण चर्चा में है। प्रतिदिन नशे ( intoxication) से एक-दो मौतें इस प्रदेश में हो रही हैं। पुलिस अधिकारी भी नशा तस्करी के आरोपों में घिर रहे हैं। अब नशा तस्करों की परेशान ग्रामीण घेराव कर धुनाई कर रहे हैं। दूसरी तरफ सरकार शराब के ठेकों की संख्या लगातार बढ़ा रही है व शराब को नशा नहीं मानती। ऐसी नीतियों वाले राज्य या देश को फिर भगवान ही बचाए। इन बुरे हालातों को देखकर यह बात निकल कर सामने आती है कि ये तो सिर्फ डेरा श्रद्धालु ही थे, जिन्होंने पोस्त, अफीम, स्मैक, सिगरेट, बीड़ी व खैनी को भी खत्म किया।

डेरा सच्चा सौदा से पे्रेरणा पाकर हजारों दुकानदारों ने नशा  नहीं बेचने का निर्णय/intoxication

डेरा सच्चा सौदा द्वारा चलाई नशा विरोधी लहर से पे्रेरणा पाकर पंजाब में मालवा के हजारों दुकानदारों ने सिगरेट-बीड़ी व तम्बाकू जैसी अन्य जहरीली वस्तुएं नहीं बेचने का निर्णय लिया था। कई दुकानदारों ने तो दुकानों में पड़े बीड़ी-सिगरेट के डिब्बों को गलियों में ढ़ेरी कर उन्हें आग लगा दी थी। डेरा श्रद्धालुओं ने गांव-गांव, शहर-शहर जाकर लोगों को शराब व अन्य नशों से मुक्ति दिलाई। स्मैक-हेरोईन व अन्य नशों के प्रयोग पर रोक लगाना सरकार का काम था लेकिन इसे डेरा श्रद्धालुआें ने मानवता की सेवा समझ कर अपने खर्च पर किया। देश में व्यवस्था है कि अगर कोई समाजहित के काम करता है तब उसे भारत रत्न, पद्मभूषण व पद्म विभूषण से सम्मानित किया जाता है।

डेरा श्रद्धालु  मान-सम्मान के लिए ये कार्य नहीं कर रहे/intoxication

अब यहां समाजहित के के 133 कार्य करने वाले डेरा श्रद्धालु भले ही मान-सम्मान के लिए ये कार्य नहीं कर रहे लेकिन वह इसके अधिकारी तो हैं ही, बहुत से क्षेत्रों में तो डेरा सच्चा सौदा के पूज्य गुरु संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां व उनके श्रद्धालु नोबल व मैग्सेसे पुरुस्कारों के भी हकदार हैं लेकिन सरकारों ने डेरा श्रद्धालुओं को मान-सम्मान तो क्या देना था बल्कि बेअदबी जैसे झूठे मामलों में फंसा लिया, जिनसे उनका कोई लेना देना नहीं था। हजारों बेघर लोगों को डेरा श्रद्धालुओं ने छत दी। डेरा श्रद्धालु अगर पौधे रोपित करने लगते हैं तो नर्सरी व वन विभाग वाले अपने हाथ खड़े कर देते हैं कि उनके पास पौधे नहीं रहे।

रातों-रात डेरा श्रद्धालुओं को अपराधी बनाने का  घिनौना चक्करव्यूह तैयार किया/intoxication

हजारों लड़कियों को अपनी बेटियां समझकर उनके हाथ पीले किए। पंजाब सहित उत्तरी भारत तक कोई भी ब्लड बैंक ऐसा नहीं जहां डेरा श्रद्धालुओं के रक्त ने मरीजों को नई जिंदगी न दी हो। लेकिन कहते हैं जुल्म की कोई सीमा नहीं होती, जालिम तो सामने वाले के अस्तित्व को मिटाने में ही अपने अहंकार की पूर्ति मानते हैं। रातों-रात डेरा श्रद्धालुओं को अपराधी बनाने का यह घिनौना चक्करव्यूह तैयार किया गया ताकि डेरा श्रद्धालुओं को समाज में बदनाम किया जा सके। राजनैतिक नफे-नुक्सान वक्त-वक्त के खेल हैं लेकिन इस खेल के मोह पाश में उलझकर जेल की सलाखों का डर पैदा करना, धमकाना व बदनाम करना, खुद को डुुबो लेने जैसा है। नतीजा सामने है आज नशों की आंधी चल रही है, देश भुगत रहा है। मानवहित के कामों को करने वाले हाथों को तोड़ समाजहित की बातें सिर्फ हवा में तलवार चलाने के जैसा है।

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