एससीओ में बढ़ेगा भारत का दबदबा

SCO
शंघाई सहयोेग संघ (SCO) के विदेश मंत्रियों की बैठक

पिछले दिनों भारत के तटीय प्रदेश गोवा में शंघाई सहयोेग संघ (SCO) के विदेश मंत्रियों की बैठक हुई। हालांकि, इस बैठक का घोषित उद्देश्य जुलाई में भारत में होने वाली राष्ट्राध्यक्षों की प्रस्तावित बैठक का एजेंडा तैयार करना था, लेकिन जिस तरह से यह बैठक पाकिस्तान के विदेश मंत्री बिलावल भुट्टो जरदारी के दौरे के कारण चर्चित हुई, उससे बैठक के अहम निष्कर्ष नेपथ्य में चले गए हैं। बिलावल भुट्टो की उपस्थिति वाले पक्ष को छोड़कर यदि बैठक के निष्कर्षों का आंकलन करें, तो साफ तौर पर कहा जा सकता है कि गोवा बैठक के निष्कर्ष समूह की सार्थकता के लिए लाभकारी रहने वाले हैं।

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पहला लाभकारी काम तो यह हुआ कि ईरान और बेलारूस (Belarus) को समूह में शामिल किए जाने पर सहमति बनी है। उम्मीद है, अगली बैठक में ईरान और बेलारूस भी शंघाई सहयोग का हिस्सा बन जाएंगे। इससे पहले दोनों देश पर्यवेक्षक राष्ट्र के तौर पर एससीओ से जुड़े हुए थे। साल 2001 में जिस वक्त एससीओ अस्तित्व में आया उस वक्त इसके सदस्यों की संख्या पांच थी। हाल-फिलहाल इसमे आठ सदस्य है। भारत, रूस, चीन, पाकिस्तान, कजाकिस्तान, किर्गिस्तान, तजाकिस्तान और उज्बेकिस्तान। ईरान और बेलारूस को पूर्ण सदस्यता का दर्जा मिल जाने के बाद इसकी सदस्य संख्या बढ़कर दस हो जाएगी और एससीओ बहुधु्रवीय दुनिया का महत्वपूर्ण मंच बन जाएगा। रूसी और मंदारिन के अलावा अंग्रेजी को समूह की अधिकारिक भाषा बनाए जाने पर भी गोवा बैठक में सहमति बनी है।

आतंकवाद रहा प्रमुख मुद्दा

बैनौलिम (गोवा) में समुद्र के किनारे ताज एक्सोटिका रिसॉर्ट में आयोजित बैठक में भारत और रूस के बीच ताजा तेल विवाद का मामला भी उठा। रूसी विदेशमंत्री सर्गेई लावरोव ने भारत के साथ तेल व्यपार को लेकर निराशा जाहिर की। अफगानिस्तान, आतंकवाद, कनेक्टिविटी, आर्थिक सहयोग और वैश्विक समस्याओं से जुड़े मसलों पर भी चर्चा हुई। बैठक के उद्धाटन सत्र से लेकर समापन सत्र तक आतंकवाद प्रमुख मुद्दे के तौर पर छाया रहा। बैठक के दौरान जिस तरह से भारत ने आतंकवाद को लेकर अपना रुख जाहिर किया उससे वैश्विक पटल पर भारत की ताकत का एहसास होता है। सवाल यह है कि बैठक से भारत को क्या हासिल हुआ। भारत के विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर के उद्धाटन सत्र के भाषण व बैठक के समापन के बाद प्रैस कॉन्फ्रेंस में पत्रकारों के प्रश्नों के जवाबों का आंकलन करें तो कहा जा सकता है कि भारत के नजरिए से यह बैठक काफी अहम रही है।

जैसा कि ऊपर कहा जा चुका है कि बैठक का सबसे अधिक चर्चित पक्ष पाकिस्तान (Pakistan) के विदेश मंत्री का भारत आना रहा। करीब 12 वर्षों के बाद पाकिस्तान का कोई विदेश मंत्री भारत के दौर पर आया है। बिलावल भुट्टो जरदारी ने एससीओ की बैठक से पहले जिस तरह से भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ अपमान जनक शब्दों का प्रयोग किया था उसे देखते हुए यह तय था कि भारत में भुट्टो के दौरे को कोई खास तवज्जो मिलने वाली नहीं है। हुआ भी ऐसा ही। मीडिया की उत्सुकता को छोड़ दे तो भारत का विदेश मंत्रालय जरदारी के दौरे पर केवल औपचारिकताओं को निभाता हुआ दिखाई दिया।

बैठक के बाद पाक विदेश मंत्री के साथ उस तरह की कोई द्विपक्षीय बैठक नहीं हुई जैसी की चीन और रूस के विदेश मंत्रियों के साथ जयशंकर ने की थी। विदेश मंत्रियों की बैठक में एस. जयशंकर ने सीमा पार आतंकवाद का मुद्दा उठाया। इसके जवाब में पाकिस्तानी विदेश मंत्री ने कहा कि हमें अपने कूटनीतिक हितों को साधने के लिए आतंकवाद का इस्तेमाल करने से बचना चाहिए। भुट्टोे की प्रतिक्रिया से जाहिर है कि आंतरिक स्तर पर भीषण चुनौतियों का सामना करने और विश्व मंच पर लगातार अलग-थलग पड़ने के बावजूद पाकिस्तान आतंकवाद के मामले में अपना रवैया बदलने वाला नहीं है। बाद में पत्रकार वार्ता में जयशंकर ने भुट्टोे को आतंकवाद का प्रवक्ता और पाकिस्तान को आतंकवाद का समर्थन देने वाला देश कहा।

भारत की विचार शक्ति का महत्व बढ़ा | SCO

हालांकि, विदेश मंत्रियों की इस बैठक का अहम लक्ष्य जुलाई में होने वाली राष्ट्राध्यक्षों की शिखर बैठक का एजेंडा तय किया जाना था लेकिन बैठक के दौरान जिस तरह से भारत निर्मित ‘सिक्योर’ (एसईसीयूआरई) फ्रेमवर्क पर सहमति हुई है, उससे एससीओ के भीतर भारत की विचार शक्ति का महत्व बढ़ा है। सिक्योर का अर्थ है- सिक्योरिटी, इकॉनोमिक कॉपरेशन, कनेक्टिविटी, यूनिटी, रिस्पेक्ट फॉर सॉवर्निटी एंड इंटीग्रिटी और एनवायामेंट प्रोटेक्शन। भारत ने यह विचार वर्ष 2018 में एससीओ को दिया था। अहम बात यह है कि भारत ने एससीओ को जो फ्रेमवर्क प्रदान किया है, वह मात्र वैचारिक अवदान भर नहीं है, बल्कि उसे व्यवहारिकता के धरातल पर उतारने के लिए तेज कदम भी बढ़ाए हैं। भारत द्वारा ईरान में विकसित चाबहार बंदरगाह इसका बड़ा उदाहरण है। चाबहार को विकसित कर भारत ने अपने मध्य एशियाई साथियों को कनेक्टिविटी की नई उम्मीद दी है। वाराणसी को एससीओ की पहली सांस्कृतिक एवं पर्यटन राजधानी घोषित किया जाना भारत की इस विचार शक्ति का ही उदाहरण है।

एससीओ के सदस्य देशों में भारत के दो पड़ोसी देश चीन और पाकिस्तान भी शामिल हैं, और मौजूदा वक्त में इन दोनों देशों के साथ भारत के संबंध अपने सबसे खराब दौर में है। दूसरी ओर रूस-यूके्रन युद्ध के चलते विश्व परिदृश्य में काफी बदलाव आया है। चीन और अमेरिका के बीच भी तनाव बढ़ा है। रूस और चीन के बीच सामरिक निकटता बढ़ी हैं। भारत एससीओ में भी शामिल है, और क्वाड में भी। दोनों संगठनों में भारत आज सकारात्मक भूमिका में हैं। इसलिए एससीओ में शामिल मध्य एशियाई देशों को लगता है कि भारत उनकी आवाज बन सकता है। भौगोलिक निकटता के अलावा मध्य एशियाई देशों के इस विश्वास का एक आधार यह भी है कि भारत मध्य एशियाई देशों के विदेशमंत्रियो के साथ एक अन्य प्लेटफार्म पर भी काम कर रहा है। इस प्लेटफार्म के जरिए वह मध्य एशिया की आर्थिक उन्नति व कनेक्टिविटी में अपना योगदान दे रहा है।

हालांकि, इस बात की आशंका थी कि पाकिस्तान के विदेश मंत्री बिलावल भुट्टोे जरदारी की उपस्थिति के चलते गोवा बैठक तनाव का शिकार हो सकती है, लेकिन भारत ने जिस कूटनीतिक कुशलता से इसे मुकाम तक पहुंचाया है, उसे देखते हुए यह कहा जा सकता है कि भारत ने अपनी अध्यक्षता के दौरान एससीओ के एजेंडे में उन्नत प्रौद्योगिकी और डिजिटल बुनियादी ढांचे पर ध्यान केंद्रित करने का जो आहवान किया है, वह एससीओ के भीतर भारत के बढ़ते हुए प्रभाव का ही द्योतक है। उम्मीद है जुलाई में प्रस्तावित शिखर बैठक के बाद एससीओ को आगे बढ़ाने में चीन व रूस के साथ भारत की भूमिका भी काफी महत्वपूर्ण रहने वाली है।

डॉ. एनके सोमानी, अंतर्राष्ट्रीय मामलों के जानकार (ये लेखक के निजी विचार हैं।)

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