आंकड़ों में उलझी भारत की गरीबी

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बाल मुकुन्द ओझा

भारत की गरीबी आज भी आंकड़ों के भ्रम जाल में उलझी हुई है India, Poverty, Figures, Complicated। आजादी के 71 सालों के बाद भारत में गरीब और गरीबी पर लगातार अध्ययन और खुलासा हो रहा है। अब तक यही कहा जा रहा था कि सरकार के लाख प्रयासों के बाद भी देश में गरीबी कम होने का नाम नहीं ले रही है। मगर एक विदेशी संस्था की बात पर विश्वास करें तो भारत में हर मिनट 44 लोग गरीबी की रेखा से निकल कर बाहर आ रहे हैं। यही स्थिति बनी रही तो चार साल बाद गरीबी का आंकड़ा न्यूनतम पर पहुँच जायेगा।

अमेरिकी शोध संस्था की ओर से भारत में गरीबी को लेकर जारी ताजा आंकड़े मोदी सरकार को सुकून देने वाले हैं। रिपोर्ट में दावा किया गया है कि पिछले कुछ साल में भारत में गरीबों की संख्या बेहद तेजी से घट रही हैं। सबसे अच्छी बात यह है कि भारत के ऊपर से सबसे ज्यादा गरीब देश होने का ठप्पा भी खत्म हो गया है। देश में हर मिनट 44 लोग गरीबी रेखा के ऊपर निकल रहे हैं। यह दुनिया में गरीबी घटने की सबसे तेज दर है।यह दावा अमेरिकी शोध संस्था ब्रूकिंग्स के ब्लॉग, फ्यूचर डेवलपमेंट में जारी रिपोर्ट में किया गया है. रिपोर्ट के अनुसार देश में 2022 तक 03 फीसदी से कम लोग ही गरीबी रेखा के नीचे होंगे। वहीं 2030 तक बेहद गरीबी में जीने वाले लोगों की संख्या देश में न के बराबर रहेगी।

अध्ययन में कहा गया है, ह्यहमारे अनुमान के अनुसार मई 2018 के आखिर में नाइजीरिया में लगभग 8.7 करोड़ लोग अत्यधिक गरीबी में जीवन यापन कर रहे थे। भारत में यह संख्या 7.3 करोड़ है। इसके अनुसार नाइजीरिया में हर मिनट छह लोग अत्यधिक गरीबी के दायरे में आते जा रहे हैं जबकि भारत में गरीबी लगातार कम हो रही है। संयुक्त राष्ट्र द्वारा प्रायोजित टिकाऊ विकास लक्ष्यों का मकसद 2030 तक दुनियाभर से गरीबी हटाना है। विश्व बैंक की एक रिपोर्ट पर गौर करें तो वर्ष 2004 से 2011 के बीच भारत में गरीब लोगों की संख्या 38.9 फीसदी से घट कर 21.2 फीसदी रह गई। वर्ष 2011 में भारत में लोगों की क्रय क्षमता 1.9 डॉलर (करीब 125 रुपये) प्रति व्यक्ति के करीब रही। रिपोर्ट के मुताबिक अत्यंत गरीबी के दायरे में वह आबादी आती है जिसके पास जीवनयापन के लिए रोजाना 1.9 डॉलर (करीब 125 रुपये) भी नहीं होते। आर्थिक विशेषज्ञों का मानना है कि देश में तेज आर्थिक विकास के चलते गरीबी घटी है।

नेशनल इंस्टीट्यूट आॅफ पब्लिक फाइनेंस एंड पॉलिसी के एक प्रवक्ता के अनुसार पिछले 10 सालों में देश में हुए आर्थिक विकासों पर नजर डालें तों 2030 तक अत्यधिक गरीबी को खत्म करने के लक्ष्य को आसानी से प्राप्त किया जा सकता है। इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए हमें नियमित तौर पर 07 से 08 फीसदी की विकास दर बना कर रखनी होगी। रिपोर्ट के अनुसार पिछले दस वर्षों में दक्षिण एशिया के देशों जैसे भारत, इंडोनेशिया, बांग्लादेश, फिलिपींस, चीन और पाकिस्तान में लोगों की आय तेजी से बढ़ी है। इसके चलते दुनिया भर में गरीबी में कमी आयी है। वहीं वैश्विक स्तर पर गरीबी को कम करने में भारत व चीन की भूमिका को काफी महत्वपूर्ण माना जा रहा है।

विश्व बैंक के मुताबिक दुनिया में करीब 76 करोड़ गरीब हैं इनमें भारत में करीब 22.4 करोड़ लोग गरीबी रेखा से नीचे जिंदगी गुजार रहे हैं। भारत के 7 राज्यों छत्तीसगढ़, बिहार, झारखंड, मध्य प्रदेश, ओडिशा, राजस्थान और यूपी में करीब 60 प्रतिशत गरीब अबादी रहती है। 80 प्रतिशत गरीब भारत के गांवों में रहते हैं। लोकसभा में भारत सरकार द्वारा दी गई एक जानकारी के अनुसार हमारे देश की जनसंख्या सवा सौ करोड़ से ज्यादा है। इसमें करीब 27 करोड़ लोग गरीबी रेखा के नीचे (बीपीएल) जीवनयापन करते हैं। इनमें से अनुसूचित जनजाति के 45 प्रतिशत और अनुसूचित जाति के 31.5 प्रतिशत के लोग इस रेखा के नीचे आते हैं।

हालांकि, गरीबी मापने में अंतर के कारण अत्यंत गरीब आबादी में कमी का आकलन भारत सरकार के अपने आकलन से मेल नहीं करेगी। नीति आयोग ने हाल ही में अपने एक प्रस्तुतिकरण में कहा था कि साल 2022 तक देश को गरीबी, गंदगी, भ्रष्टाचार, आतंकवाद, जातिवाद और सांप्रदायिकता-इन छह समस्याओं से निजात दिलाने के लिए जमीन तैयार कर ली जाएगी। जब देश 2022 में स्वाधीनता की 75वीं वर्षगांठ मना रहा होगा।विभिन्न स्तरों पर गरीबी खत्म किये जाने के दावे स्वतंत्र विश्लेषक सही नहीं मानते है। मगर यह अवश्य कहा जा सकता है कि पिछले एक दशक में गरीबी उन्मूलन के प्रयास जरूर सिरे चढ़े हंै। सरकारी स्तर पर यदि ईमानदारी से प्रयास किये जायें और जनधन का दुरूपयोग नहीं हो तो भारत शीघ्र गरीबी के अभिशाप से मुक्त हो सकता है।

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