भाग्यशाली इन्सान को मिलता है पूर्ण सतगुरु

Sirsa: पूज्य गुरु संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां ने शाह सतनाम जी धाम सरसा में आयोजित बुधवार शाम की रूहानी मजलिस के दौरान फरमाया कि जिसे पूर्ण सतगुरु मिल जाता है उससे भाग्यशाली इंसान इस दुनिया में हो नहीं सकता। कहीं भी जाना हो इंसान सोचता है परफेक्ट गाईड चाहिए, रास्ता बताने वाला चाहिए। कहीं इधर-उधर न रुल जाऊं खो न जाऊं इसलिए किसी जानकार को अपने साथ रखना पसंद करते हैं। लेकिन जिसे दोनों जहान का गाईड मिल जाए, उसके बराबर कोई दूसरा कैसे आ सकता है। आत्मा जब शरीर छोड़ कर जाती है या यूं कहिए जीते जी जब कोई भक्ति इबादत करता है,
आत्मा शरीर के अंदर मालिक तक पहुंचने की जो यात्रा तय करती ह,ै सवाल ही नहीं पैदा होता बिना जानकार के उस रास्ते पर एक कदम भी रखा जा सके। पूज्य गुरु जी ने फरमाया, गुरु पीर-फकीर वो तरीका बताते हैं जिसपर चलकर जीवात्मा परम पिता परमात्मा के दर्शन कर सकती है। मालिक के दर्श दीदार के लिए उसकी दया मेहर रहमत को हासिल करने के लिए यह जरूरी हो जाता है कि पूर्ण गाईड सतगुरु मौला मिले। और जिसे पूर्ण सतगुरु मिल जाता है उसका सुमिरन करें, भक्ति इबादत करे और ओड़ निभा दे, उसके जैसा कोई दूसरा हो नहीं सकता। बड़ा मुश्किल है सतगुरु से अल्लाह राम से प्यार पाकर ओड़ निभाना। बहुत तरह की रूकावटें खड़ी हो जाती हैं। सबसे बड़ी रूकावट इंसान का मन है हर समय अंदर रहता है, हर समय दगा देता रहता है, हर समय गलत रास्ते पर चलने की प्रेरणा देता है। दूसरा माया है, माया के बंधन बड़े जबरदस्त हैं बड़े-बड़े ऋषि-मुनियों को इसने अपने झांसे में ले लिया तो इंसान का बचना बड़ा मुश्किल हो जाता है। लेकिन जो सुमिरन करते हैं, जो भक्ति इबादत करते हैं वो मोह-माया के बंधनों को काट देते हैं। तो मन और माया से टक्कर लेता हुआ इंसान यानि जीवात्मा आगे बढ़ती है तो उसके लिए सुमिरन ही एक मात्र तरीका होता है।
पूज्य गुरु जी ने फरमाया कि किसी भ्रम-भुलेखे में इंसान को कभी नहीं पड़ना चाहिए। जितना ढोंगी-पाखंडी इंसान बनता जाता है उतना मालिक की खुशियों से दूर हो जाता है। बात-बात पर पाखण्ड, बात-बात पर दिखावा जो इंसान करते हैं, जिंदगी तो जीते हैं पर जो नजारे मिलने चाहिए, जो खुशियां मिलनी चाहिए उससे बहुत दूर हो जाते हैं। तो अपने आपको उस मालिक के प्यार मोहब्बत के लायक बनाओ सेवा और सुमिरन के द्वारा। सेवा करो जितनी कर सकते हो, भक्ति करो, बहुत कर सकते हो, लेट कर बैठ कर कामधंधा करते हुए चलते हुए कभी भी भक्ति करो, और ये हो नहीं सकता वो भक्ति दरगाह में मंजूर कबूल न हो। वो राम ईश्वर वो मालिक सबकी सुनता है पर कोई सुनाने वाला चाहिए। लोग उसे सुनाते हैं मुझे पैसा चाहिए, घर परिवार चाहिए, जमीन-जायदाद, धन-दौलत चाहिए । करोबार चाहिए पर कोई होता है जो भगवान को कहता है मुझे तेरे दर्श दीदार चाहिए।
मां-बाप अपने बच्चों के लिए कितना करते हैं। बच्चा अगर जरा सा रो दे तो मां उसे दूध पिला देती है। तो जो मां-बाप को बनाने वाला भगवान कोई उसके लिए तड़पे तो कैसे नहीं चलकर आएगा? क्यों नहीं दर्श-दीदार देगा। उसका तो काम ही दर्श दीदार देना है। वो तो दे रहा है अब भी कण-कण में जर्रे-जर्रे में मौजूद हैं पर उसके लायक आंखें बनाती पड़ती हैं। वो आंखें और है जिनसे उन परम पिता के दर्शन किए जा सकते हैं। आंखें यही होती है इनमें राम नाम की दवा डालो तो ये आंखें जैसे दुनिया की तरफ से बंद करोगे वैसे ही अंदर की तरफ खुलेगी और परम पिता परमात्मा के नूरी स्वरूप के दर्शन होंगे। लेकिन जब आंखें ही इंसान की कहीं और खो जाएं! ये भी तो वणज करती हैं ठग्गी का, बेईमानी का, चुगलखोरी का, रिश्वतखोरी का, भ्रष्टाचार का, काम-वासना का, क्रोध लोभ मोह अहंकार का। इंसान कहां खड़ा है इसका कुछ पता नहीं और कब उसकी आंखें चुगली खा जाएं। भक्ति मार्ग में सत्संग में आकर जो इसांन ऐसा कुछ करता है, उसे शारीरिक और मानसिक तकलीफ आती ही आती है। जब कहते हैं पतिव्रता जो पति के बिना दूसरे को देखती नहीं या पति भी पत्नीव्रता होता है वो भी किसी की तरफ ध्यान नहीं देता तो जो भगवान से राम से प्यार करने वाले हैं उनका भी तो उसी के बच्चों से नि:स्वार्थ जबरदस्त प्यार होता है। उनकी आंख में और कोई दूसरा आता ही नहीं। काश यहीं आंखें एक जगह टिका उसके दर्श-दीदार में लगाते तो न अंदर कमी न बाहर कमी रहती है। क्योंकि राम से जो प्यार करते हैं राम बिना कहे उनके काज संवार देते हैं। शक्ल पर मत जाईए, पर जिसने इसको बनाया उसपर जरूर जाईए। आप शक्ल और सूरत पर आशिक हो जाते हो। और बनाने वाले को भूल जाते हो। सोने के गहने किसी ने पहने होते हैं वो वैसे ही इतराते रहते हैं। और जिस कारीगर की कला है उसका कोई नाम ही नहीं लेता।
पूज्य गुरु जी ने आगे फरमाया कि क्या है आपकी आंख में? क्या करते रहते हो? कहां घुमाते रहते हो? किसमें अटकाते रहते हो? कितना खुदगर्ज है आज का इंसान? जिंदगी जिए जा रहा है और जिस सतगुरु ने नाम दिया है उसका शुक्राना ही नहीं करता। इंसान जब बिगड़ने पर आता है तो कई तरह के बहाने बनाता है। ये तो उसकी रजा है, वो दर्श दे या नहीं तो उसकी मर्जी। सतगुरु है समय के अनुसार सब कुछ चलता है। और आज के दौर में भी कोई न कोई सज्जन होते हैं। कईयों का दिल भी खराब करते हैं ऐसे लोग, उनको सब्जबाग दिखाते हैं। अगर आप ऐसे ही निंदा चुगली कर रहे हैं तो उससे आप ने क्या पाया बल्कि जो था वो भी गंवाए बैठे हो। और दूसरों को गलत पट्टी पढ़ा कर अपने कुलों का, अपने परिवार का घात कर रहे हो उसमें फायदा होने वाला बिल्कुल भी नहीं है। जब तक पीर-फकीर बात पूरी करते रहे, वाह वाह करते हैं। और जैसे ही बात पूरी न हो तो पीर-फकीर से नाराज हो जाते हैं। अगर आपकी भावना शुद्ध है तो सतगुरु मौला इतना बख्शते हैं कि झोलियां दामन छोटे पड़ जाते हैं। इसलिए दृढ़ यकीन रखो, आंखें उस परम पिता परमात्मा सतगुरु मौला राम के लिए रखो। हम ये नहीं कहते कि दुनिया को न देखो सब उसी का रंग-राग है उसी का साजोसामान है। पर ऐसा न हो आंखें कहीं अटक जाएं रास्ता भटक जाएं। और जिसे पाना था वो कहीं और रह जाए और आप कहीं और रह जाएं। चाहे कितने साल हों गए हो नाम लिए को, पर नाम से कभी काम लिया, भक्ति की, कभी राम के प्रति इश्क जागा। अगर जागा तो इश्क में न दिन का पता चलता है न रात का पता चलता है। शाह सतनाम जी का रहमोकर्म होता है।