संगीत के आसमान में उड़ान भरतीं मैथिली ठाकुर

Maithili Thakur
हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पहले नेशनल क्रिएटर्स अवॉर्ड्स में बिहार की मशहूर गायिका Maithili Thakur को ‘कल्चरल एंबेसडर अवॉर्ड आॅफ ईयर’ से सम्मानित किया। जानकारी के मुताबिक यह अवॉर्ड इनोवेशन और क्रिएटिविटी के लिए दिया जा रहा है। यह पुरस्कार ऐसे लोगों को दिया जा रहा है जिन्होंने अपनी प्रतिभा से समाज को एक नई दिशा दिखाई है और लोगों के जीवन को आसान बनाने का प्रयास किया है। गीत-संगीत के माहौल में जन्मी मैथिली ठाकुर बिहार के एक छोटे से गांव से ताल्लुक रखती हैं। अपने दादा से संगीत सीखकर बड़ी हुई मैथिली ठाकुर इतनी कम उम्र में इस मुकाम पर हैं कि यह कहना गलत नहीं होगा कि आज उनकी गिनती मशहूर शास्त्रीय गायिकाओं में होती है। आज वह अपनी भजन प्रस्तुति और लोक गायन शैली से करोड़ों लोगों के दिलों पर राज कर रही हैं।
जिस घर में मैथिली का जन्म हुआ वहां शुरू से ही संगीत का माहौल था। यानी कहा जा सकता है कि संगीत मैथिली के खून में है। Maithili Thakur के दादा संगीत शिक्षक थे। उनके पिता भी एक संगीत शिक्षक हैं। मैथिली ने 4 साल की उम्र में संगीत सीखना शुरू कर दिया था। संगीत की शिक्षा के साथ-साथ मैथिली ने अपनी स्कूली शिक्षा भी शुरू की। उनकी स्कूली शिक्षा मधुबनी के बेनीपट्टी गांव स्थित एक स्कूल से शुरू हुई। लेकिन यहां वह केवल 5वीं कक्षा तक ही शिक्षा प्राप्त कर सकी। बाद में जब वह अपने पिता के साथ दिल्ली आ गई, तो उन्होंने यहीं आगे की पढ़ाई शुरू की।
मैथिली ने आज जो मुकाम हासिल किया है वह उनकी कड़ी मेहनत का नतीजा है। अन्यथा उन्हें अपने करियर में कम संघर्षों का सामना नहीं करना पड़ा। जब भी उन्होंने सिंगिंग रियलिटी शो में हिस्सा लिया, तो उन्हें रिजेक्शन का सामना करना पड़ा। इतना ही नहीं वह इंडियन आइडल जूनियर तक पहुंची, टॉप 20 में भी चुनी गई। लेकिन यहां से आगे नहीं बढ़ सकी। यहां भी उन्हें एक बार फिर रिजेक्शन का सामना करना पड़ा। इन सबके बावजूद उन्होंने हार नहीं मानी। वह उम्मीदों और सपनों के दम पर संगीत के आकाश में उड़ान भरती रही। सिर्फ यूट्यूब के जरिए 23 वर्षीय मैथिली सालाना 50 लाख रुपये कमाती हैं। इसके अलावा वह कई ब्रैंड एंडोर्समेंट भी करती हैं।
मैथिली ठाकुर अपनी सफलता का सारा श्रेय अपने माता-पिता को देती हैं। मैथिली बताती हैं कि मैंने छठवीं क्लास में दिल्ली के एक स्कूल में एडमिशन लिया। मुझे अंग्रेजी नहीं आती थी। इस वजह से साथी मजाक उड़ाते थे, वे जानबूझकर मुझसे अंग्रेजी में ही बात करते थे। आज भी शहरों में अंग्रेजी को बहुत महत्व दिया जाता है। यदि अंग्रेजी नहीं आती, तो ऐसा समझा जाता है कि आपको कुछ भी नहीं आता। आज इस बारे में सोचती हूं, तो खुशी होती है कि मैं ऐसी सोच वाले लोगों को अपने गायन से जवाब दे पाई।
-देवेन्द्रराज सुथार