बजट में मध्य आय वर्ग के अलावा अन्य के लिए कुछ खास नहीं

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केन्द्र सरकार ने वर्ष 2020-21 के आम बजट में मध्य वर्ग को राहत देते हुए 5 लाख तक टैक्स खत्म कर दिया है। इससे अधिक कमाने वालों को भी राहत दी है। सरकार ने आर्थिक जरूरतों के साथ-साथ अपनी राजनीतिक मंशा को हल करने का रास्ता निकाला है। लगभग पिछले दो दशकों से कर्मचारी वर्ग द्वारा आयकर में राहत की मांग की जा रही थी परंतु सरकारों ने आर्थिक तंगी से बचने के लिए किसी न किसी तरह समय निकाला। पिछले बजटों में किसानों व कारपोरेट को बजट में अधिक तवज्जों मिलती रही है। सरकार टेक्स स्लेब के मामले में संतुलित पहुंच अपनाने की कोशिश में है।

टेक्स छूट शर्तों के तहत दी गई है जिससे अन्य छूट को छोड़ना पड़ेगा। कृषि क्षेत्र में बजट में कोई ठोस यत्न सामने नहीं आए। कृषि उत्पादों के लिए, रेल व हवाई उड़ानों का प्रबंध करने का वायदा किया गया है परंतु मामला खर्चे, किराए का नहीं बल्कि उत्पाद की कीमतों का है। सबसे अधिक आवश्यकता कृषि के साथ संबंधित उद्योग लगाने व मंडीकरण की है। पंजाब, हरियाणा जैसे कृषि प्रधान राज्यों में कृषि आधारित उद्योग लगाए जाने चाहिए ताकि फसलों को बाहर न लेकर जाना पड़े। मंडीकरण का प्रबंध होना चाहिए ताकि किसान को फसल बेचने के लिए दूर जाने के खर्चें से बचाया जा सके, कृषि उत्पादन देश के एक कोने में हो रहा है और उद्योग देश के दूसरे कोने में स्थित हैं तभी यह दूरी ही बड़ी बाधा है।

वित्त मंत्री ने 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने की वचनबद्धता दोहराई है। कृषि विकास दर 2 प्रतिशत होने की हालत में यह बहुत बड़ी चुनौती है। सरकार ने धरती के निचले पानी के संकट वाले 100 जिलों में पानी बचाने के लिए वाजिब फंड रखकर नई पहल की है परंतु बजट में कोई उचित यत्न नजर नहीं आ रहा जो कृषि को फायदेमंद धंधा बना सके। अभी तक कृषि को अलग-अलग हिस्सों में बांटकर देखने की दृष्टि ही चलन में है। किसानों के लिए कर्जा राशि 15 लाख करोड़ रखी गई परंतु कर्जे की महत्ता उत्पादकता व फसलों की कीमतों के इजाफे की कमी के कारण खत्म हो जाती है। किसानों को कर्जा तो मिलेगा परंतु उस पैसे के साथ पैदा की जाने वाली फसलों के वाजिब भाव भी जरुरी हैं, ताकि कर्ज वापिस किए जा सकें। कर्ज वापिस न करने के कारण ही कृषि संकट में पड़ जाता है। कर्जे की उपयोगिता किसानों को खुशहाल बनाने से है ना कि उसे सिर्फ कर्जा मुहैया करवाना है। बेरोजगारी इस समय बड़ी समस्या है जिससे निपटने के लिए सीधे तौर पर कोई समाधान नहीं खोजा गया। कृषि के लिए केवल फंड में 50 करोड़ की वृद्धि नाकाफी है।

 

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