बिहार से सबक लें पंजाब-हरियाणा

बिहार विधानसभा में पेश बजट में 4103 करोड़ रुपए का अतिरिक्त लाभ हुआ, जो इस बात का सबूत व शुभ संकेत है कि शराब की कमाई के बिना भी किसी राज्य की आर्थिक स्थिति मजबूत हो सकती है। बिहार देश में उन राज्यों में शामिल है जिसने शराबबंदी को लागू किया। इस काम के लिए मुख्यमंत्री नीतीश कुमार बधाई के पात्र हैं, जिन्होंने शराबबन्दी के सख्त एक्ट को बिहार में लागू किया।

शराब की बिक्री व सेवन बंद होने से बिहार में अपराध दर में गिरावट दर्ज की गई। इस बात को तो देश का बच्चा-बच्चा जानता है कि यदि शराब बंद होगी तो लड़ाईझगड़े, हत्याएं, मुकदमे व सड़क दुर्घटनाएं कम होंगी। यह तो मुख्यमंत्री की इच्छाशक्ति पर निर्भर करता है कि वह अपने राज्य को किस दिशा में ले जाना चाहता है।

अधिकतर राज्य ऐसे भी जहां सरकारें शराब से प्राप्त कमाई को आधार मानती हैं। शराब की खातिर ऐसी सरकारें अपनी जनता की सेहत, खुशहाली व अमन-शांति सब कुछ दांव पर लगा देती हैं। बिहार को कभी अशिक्षित, पिछड़ापन, गरीबी व सभ्यता की कमी से जाना जाता था लेकिन आज सही अर्थों में बिहार देश का नेतृत्व कर रहा है।

पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, उत्तर प्रदेश सहित अन्य राज्यों को बिहार से प्रेरणा लेकर शराब बंद करनी चाहिए। यदि केरल जैसा राज्य शराब से प्राप्त वार्षिक 8000 करोड़ का लाभ छोड़ सकता है तो पंजाब 4000-5000 करोड़ रुपए क्यों नहीं छोड़ना चाहता। पंजाब, उत्तर प्रदेश व उत्तराखंड में जहां विधानसभा चुनाव हुए व हो रहे हैं।

किसी भी पार्टी ने शराबबन्दी का जिक्र तक नहीं किया। हालांकि पंजाब में नशे का मुद्दे पर राजनैतिक पार्टियों ने एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप किए। सभी राज्यों के स्वास्थ्य विभाग शराब को स्वास्थ्य के लिए हानिकारक मानते हैं। इस सिलसिले में आमजन को जागरूक करने के लिए करोड़ों रुपए खर्च करते हैं फिर भी सरकार की डिकशनरी में शराब को नशा नहीं माना गया।

हालांकि सरकार चुनावों के दिनों में शराब को खतरनाक करार देती है। यह बात समझने की जरूरत है कि शराब एक दिन के लिए ही खतरनाक नहीं है, इसे जब भी कोई पीयेगा तब ही खतरनाक है। राजनेता अपने जमीर की आवाज सुनकर जनता की भलाई के लिए राज्य के विकास को बढ़ाने के लिए बिहार की तर्ज पर शराबबंदी करें।

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