आत्मिक शांति की अनुभूति के लिए सच्चा सौदा बना: पूज्य गुरु जी

सरसा। (सच कहूँ न्यूज) पूज्य गुरु जी ने फरमाया कि खुशी, प्रसन्नता, आनंद, परमानंद, आज के युग में ज्यादातर लोगों के लिए एक सपना सा बनता जा रहा है। आज इंसान अपने आप में इतना व्यस्त, परेशान और टैंशन में है कि वह असली खुशी क्या होती है, के बारे में भूल गया है। उसे याद ही नहीं आता कि वह खुलकर कब हंसा था। हालांकि लोगों को हंसाने के लिए काफी प्रयास किए जा रहे हैं और बड़े शहरों में हंसने के लिए क्लब भी खुले हुए हैं, जिनमें इन्सान ठहाके लगाकर हंसने की खाना पूर्ति करते रहते हैं। लेकिन जब तक इंसान के अंदर खुशी नहीं होगी, तो बाहर की खुशी मायने नहीं रखती। पूज्य गुरु जी ने आगे फरमाया कि अंदर की और आत्मिक खुशी आज गायब सी होती जा रही है।

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तथा आत्मिक शांति, आत्मिक प्रसन्नता लाने के लिए परम पिता शाह सतनाम जी, शाह मस्तान जी दाता रहबर ने यह सच्चा सौदा बनाया और चलाया, जहां समझाया गया कि टेंशन फ्री रहो, दिमाग पर बोझ ना लो, ज्यादा ना सोचो और चलते, बैठते, लेटके काम धंधा करते हुए ओम, हरि, अल्लाह, वाहेगुरु, गॉड, खुदा, रब्ब को याद करते रहो; जिससे इंसान टेंशन फ्री रह सकता है तथा अपने गम को खत्म कर सकता है। पूज्य गुरु जी ने फरमाया कि इंसान भगवान का नाम लेकर संतुष्टि अंदर ले आएगा और मालिक की कृपा दृष्टि के लायक बन पाएगा।

तभी सच्ची प्रसन्नता, सच्चे आनंद का अनुभव होगा। वरना तो खोखली हंसी हो गई है, दिखावा हो गया है या फिर गंदी सोच के साथ देखकर लोग हंसते है, मुस्कुराते हैं। पूज्य गुरु जी ने आगे फरमाया कि आज इंसान काम धंधे, बिजनेस व्यापार, बेरोजगारी के बोझ के तले दब गया है और इंसान के अंदर इन सारी चीजों ने एक तूफान खड़ा कर रखा है, जिससे मनुष्य का नेचुरल मुस्कुराना बड़ा मुश्किल हो गया है।

अपने आप को कंट्रोल करने का सीखना चाहिए तरीका

इंसान बचपन से लगता है इच्छाएं पूरी करने में, लेकिन वह इन्हें कभी पूरा नहीं कर पाता। क्योंकि इंसान जैसे-जैसे बड़ा होता जाता है उसकी इच्छाएं भी बढ़ती चली जाती है। इसलिए इंसान को बचपन से ही अपने आप को कंट्रोल करने का तरीका सीखना चाहिए। इंसान ने कभी भी अपने आप को कंट्रोल करने के लिए समय नहीं दिया है और ना ही कभी अपने अंदर की बुराइयों को साफ करने के बारे में सोचा है, जिस कारण उसकी इच्छाएं बढ़ती जाती हैं। हालांकि इंसान को दुनिया में दूसरे लोगों में बहुत कमियां नजर आती है, लेकिन इंसान ने कभी भी अपने दिलों-दिमाग में नहीं झांका कि उसके अंदर कितनी कमियां है।

इंसान को अपने अंदर जरूर झांकना चाहिए कि उसके अंदर क्या-क्या कमियां हैं, क्या क्या गंदी आदतें हैं। इसके लिए इंसान को हर रोज पानी पीकर एकांत में बैठकर सारी सोच को छोड़कर अपने बारे में सोचना चाहिए। फिर एकाग्रता और सुमिरन के साथ सोचो कि आपके अंदर कौन सी आदत अच्छी है और कौन सी आदतें बुरी हैं। जो बुरी आदत है उन्हें छोड़ दो और जो अच्छी आदत है, उन्हें और आगे लेकर चलो। ऐसा करने से आप और आपके परिवार सुखी रहेंगे और जब समाज सुखी रहेगा तो देश अपने आप ही खुशहाल हो जाएगा।

हर आदमी की बॉडी आदमी के लिए डॉक्टर होती है

पूज्य गुरु जी ने फरमाया कि अपनी आदतों और अपनी सोच के बारे में सोचना बेमिसाल बात है, यह छोटी बात नहीं है। इस अवसर पर पूज्य गुरु जी ने प्रण कराया कि सभी हर रोज अपने बारे में जरूर सोचेंगे। जिससे अपने अंदर की बुराइयों और अच्छाइयों के बारे में पता चल सकें। वहीं इस दौरान पूज्य गुरु जी ने अपने बारे में किस प्रकार सोचना है, के बारे में तरीका बताते हुए फरमाया कि सबसे पहले पानी पीकर और परमात्मा का नाम लेकर लंबा सांस लीजिए और फिर तीन श्वांस के बाद शांति से सोचिए। यह क्रम बचपन से शुरू करें और वर्तमान दौर तक ले आएं। इसके पश्चात जब इंसान अपनी आदतों को सुधार पाए तो अपने शरीर यानी बॉडी की सुनने की कोशिश करें।

क्योंकि हर आदमी की बॉडी आदमी के लिए डॉक्टर होती है। इसके बारे में हम लिखकर देने को तैयार है। अगर इंसान कुछ भी गलत करता है तो उसकी बॉडी उसको रोकेगी। जब इंसान 5 से 10 मिनट अपनी बॉडी के बारे में सोचेगा तो बॉडी की सुनना सीख जाएगा। जो इंसान आत्मिक तौर पर अपने शरीर की सुनना सीख लेता है तो वह अच्छी तरह से शरीर को तंदुरूस्त रख पाता है। इसलिए हम चाहते हैं कि ओम, हरि, अल्लाह,वाहेगुरु की औलाद सदा सुखी रहे। पूज्य गुरु जी ने आगे फरमाया कि ये सब बातें धर्मों की साइंस है। क्योंकि साइंस धर्मों में से ही निकली है। धर्म महासागर है और साइंस उसमें से निकली हुई एक नदिया है। पूज्य गुरु जी ने कहा कि जब बॉडी, शरीर तंदुरुस्त होता है तो उस इंसान के विचार भी तंदुरूस्त हो जाते है और आज के समय में विचारों का तंदुरूस्त होना बहुत जरूरी है।

वहीं सत्संग के दौरान जरूरतमंदों की मदद करने के लिए प्रेरित करते हुए पूज्य गुरु जी ने फरमाया कि इंसान को सिर्फ अपने तक सीमित नहीं रहना चाहिए। इंसान को जब खाने-पीने का सामान, रहने को मकान, पहनने को कपड़े और बैठने के लिए गाड़ी-कार, स्कूटर, जीप, साइकिल जो भी साधन मिल गया तो इंसान का भी फर्ज बनता है कि बाकी समाज के लिए भी वह जरूर सोचे। जो लोग जरूरतमंद हैं, उनकी मदद के लिए भी जरूर पैसे निकालें और बचत करना सीखें। इसके लिए सभी को अपने घरों में एक डायरी भी जरूर लगानी चाहिए, ताकि पूरे खर्चों की जानकारी मिलती रहें। जो ऐसा करते हैं, उनके घरों में जरूर लाभ आना शुरू हो जाता है।

संतों का काम दूसरों के लिए जीना

पूज्य गुरु जी ने कहा कि संतों का काम ही दूसरों के लिए जीना है। हिंदु धर्म में लिखा है कि कर्मयोगी यानी कर्मठ बनो और ज्ञान योगी में राम का नाम जपो। सिक्ख धर्म में लिखा है कि ‘दसां नहुआं दी किरत कमाई करो’ और वाहेगुरु का नाम जपो। इसी प्रकार इस्लाम धर्म कहता है कि हक हलाल की रोजी रोटी खाओ और अल्लाह की इबादत करो। ईसाई धर्म कहता है कि ‘हार्ड वर्क’ करो और गॉड्स पे्रर करो। धर्मों में यह जो वचन कहें है, सब सही हैं। प्रत्यक्ष को प्रमाण की जरूरत नहीं है। यही बात शाह सतनाम जी, शाह मस्तान जी दाता रहबर ने हमें पढ़ाई, सिखाई और इसलिए हम बचपन में वैसा ही करते थे, जैसा सतगुरु जी चाहते थे।

हमारा जिन्दगी का मकसद ही समाज का फायदा करना है। जिनको ये बाते पसंद नहीं आती तो शायद वो समाज का नुकसान करना चाहते होंगे। हमारा इसमें कोई लाभ नहीं है। अच्छी बातें लोगों को बताने के लिए हमने कोई कमिशन नहीं रखा हुआ। राम का नाम अनमोल है जो संतों के दरबार में बिन मोल के मिलता है।

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