नारी उत्थान के लिए संघर्ष कर रही पानीपत की ‘सविता आर्य’

Savita Arya of Panipat

नि:स्वार्थ सेवा की शुरूआत-2015 में एक फोन कॉल से हुई थी शुरू

(Savita Arya of Panipat )

सच कहूँ/सन्नी कथूरिया पानीपत। झांसी की रानी को अपना आदर्श मानकर समाज सेवा में लगी सविता आर्य महिलाओं के साथ हो रहे अन्याय, अत्याचार और भेदभाव के खिलाफ जंग लड़ रही है। यही वजह है कि लोग इनकी तुलना कभी मदर टेरेसा से करते हैं, कभी नारी तू नारायणी कहते हैं। सविता आर्य ने साल 2016 में नारी तू नारायणी उत्थान समिति की स्थापना कर टूटने की कगार पर खड़े न जाने कितने ही घरों को फिर से खुशियों की सौगात दी। मासूम चेहरों को मुस्कान लौटाई। इस नि:स्वार्थ सेवा की शुरूआत-2015 में एक फोन कॉल से हुई।

Savita Arya of Panipat

जब एक बेसहारा नवजात बच्ची की दयनीय हालत ने सविता आर्य को झकझोर कर रख दिया। सविता आर्य उस बेजुबान नवजात बच्ची के हकों की आवाज बनी उस एक पहल कदमी ने इनके जीवन की दिशा ही बदल दी और फिर एक के बाद एक कितनी ही बेसहारा बच्चियां के हक की लड़ाई सविता आज तक लड़ रही है।

बच्ची के न्याय के लिए लड़ी थी 135 दिन तक लड़ाई

सविता आर्य ने सच कहूँ से विशेष बातचीत में बताया कि 17 जून 2015 को उन्हें पता चला कि एक बच्ची ने हॉस्पिटल में जन्म लिया है। हॉस्पिटल में कविता नाम की दो महिलाएं एक ने बेटे को और एक ने बेटी को जन्म दिया था। बेटी को जन्म देने वाली मां कह रही है कि मेरे घर तो बेटा पैदा हुआ है और मेरा बेटा हॉस्पिटल ने बदल दिया। उस बच्ची की लड़ाई हमने सामाजिक संगठनों के साथ मिलकर 135 दिन लड़ी। जिसके बाद डीएनए रिपोर्ट आई और उसको उसकी मां का सही पता चल सका। फिर मैंने संकल्प लिया कि मुझे जीना है तो बेटियों के लिए और फिर नारी तू नारायणी उत्थान समिति का गठन किया।

सामाजिक बुराइयों के खिलाफ उठा रहीं आवाज

सविता आर्य जागरूकता अभियान चलाकर लोगों को जागरूक भी कर रही हैं। उन्होंने दुर्गा शक्ति एप अभियान, हस्ताक्षर अभियान, नशे के खिलाफ अभियान, संस्कारी बच्चे सुरक्षित समाज, शिक्षित बेटी, सुरक्षित बेटी, महिला मतदान जागरूकता अभियान, पॉलिथीन मुक्त पानीप्त, जागृत नारी सुरक्षित नारी जैसे अनेकों अभियान चलाकर व्यक्तियों को जागरूक किया है। सविता आर्य गरीबों की आर्थिक सहायता तो करती ही हैं साथ ही रोजगार मुहैया करवाने में भी आगे रहती है।

झुग्गी-झोपड़ी में रहने वाले बच्चों को कर रही शिक्षित

बच्चे की पहली शिक्षक मां होती है। अपनी मां से विरासत में मिले इन संस्कारों की बदौलत ही सविता आर्य झुग्गी-झोपड़ी में रहने वाले उन बच्चों के लिए किसी फरिश्ता से कम नहीं, जिन्हें हर वर्ष गोद लेकर व उनकी जिंदगी से कूड़े कचरे के अंधेरे को शिक्षा का दीप जलाकर दूर करती हैं। झुग्गी झोपड़ी के बच्चों को गोद लेकर उनके रहने खाने से लेकर उनको हर जरूरत की चीजें मुहैया करवाने के साथ शिक्षा की जिम्मेदारी भी लेती हैं। सविता का कहना है कि बच्चों के चेहरे पर खुशी देखकर उन्हें सुकून मिलता है।

घरेलू हिंसा के 450 घरों को टूटने से बचा चुकी

सविता आर्य ने लगभग पांच सालों में 450 से ज्यादा घरेलू हिंसा के मामलों को बड़ी आसानी से निपटा कर टूटते हुए घरों को बसाया है। वह बेटियों के साथ हो रहे भेदभाव व दुष्कर्म जैसी घटनाएं के खिलाफ हमेशा खड़ी मिलती हैं ओर पीड़ित के हौंसले को कमजोर नहीं पड़ने देती। अपनी जान को जोखिम में डालकर हमेशा ही गरीब व जरूरतमंद की लड़ाई को अपनी लड़ाई समझकर लड़ती हैं।

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