‘सच्चे दाता शाह सतनाम जी महाराज ने राम नाम का पाठ पढ़ाया’

anmol vachan

सरसा। पूज्य गुरु संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां फरमाते हैं कि साध-संगत को मालूम है कि जनवरी महीना सच्चे मुर्शिद-ए-कामिल शाह सतनाम जी दाता, रहबर का अवतार माह है। साध-संगत देश-विदेश में अपने प्यार-मोहब्बत, सतगुरु पर दृढ़ विश्वास और श्रद्धा के साथ मनाती है। यानि अल्लाह, वाहेगुरु, राम की भक्ति इबादत में आप आगे बढ़ते चले जाएं। मतलब खुशी का बढ़ना, रहमतों का बढ़ना। आप अच्छे-नेक कामों में बढ़ोत्तरी करें। अच्छे नेक कामों में तरक्की करें और मालिक की कृपा दृष्टि के काबिल बनते चले जाएं, ये आपको आशीर्वाद कहते हैं।

आपजी फरमाते हैं कि सच्चे दाता-रहबर शाह सतनाम जी महाराज, बेपरवाह सार्इं, दया के सागर, रहमत के मालिक इस धरा पर 25 जनवरी 1919 को आए। जीवों को राम-नाम का पाठ पढ़ाया और ये सिखाया कि आप कैसे इस मृत्युलोक में रहते हुए सुखी रह सकते हैं? कैसे खुशियों का दामन हमेशा पकड़े रखना है और किस तरह इस मृत्यु लोक में भगवान को देखा जा सकता है? इन्सान की इच्छा तो आदिकाल से ये जानने की है कि वो सुप्रीम पावर कौन है? पहले भी सार्इंसदान मान चुके हैं यानि प्रलय, महाप्रलय से पहले और युग बीतने से पहले भी मान चुके हैं और आज वाले भी मानना शुरू कर चुके हैं कि सुप्रीम पावर कोई तो है। जैसे एक बार आॅस्ट्रेलिया या किसी देश में रिसर्च किया गया कि जो राम-नाम जपते हैं और जो राम नाम नहीं जपते उनमें क्या फर्क है? उनमें सेंसर और कंप्यूटर की चिप लगाए गए और पूरा कंप्यूटराइज सिस्टम बनाया गया कि वहां जरा सी भी कोई तरंग या रेंज, कोई भी कुछ भी अहसास हो, वो सारा मॉनिटर कर रहे थे। कंप्यूटरों में रिकॉर्ड हो रहा था।

उन रिसर्चकर्ताओं ने ये माना कि मालिक का नाम जपने वाले बहुत स्ट्रॉन्ग होते हैं। जल्दी से वो गमगीन नहीं होते। दुखी नहीं होते। जो सुबह-शाम प्रेयर, सुमिरन करते हैं, उनकी ये रिडिंग आई कि उनमें सुईसाइड की तो नाममात्र ही भावना होती है, क्योंकि सब मालिक के ऊपर छोड़ा होता है। दूसरी बात लड़ाई झगड़ा आम दुनिया के मुकाबले बहुत कम होता है। उनके अंदर बर्दाश्त शक्ति ग़जब की होती है। तो जब सार्इंसदानों ने कंप्यूटरों पर अध्ययन किया तो उसमें यही रिडिंग आई कि ब्रह्माण्ड से कुछ किरणें आती हैं और जब वो प्रेयर करते हैं तो उनके दिलोदिमाग में टकराती हैं यानि वो किरणें सीधी आती हैं और सीधे दिमाग में चली जाती हैं, जिससे उनके अंदर विल पावर आती है, आत्मविश्वास आता है। तो उनका ये मानना था कि ऐसा होने से वो लोग स्ट्रॉन्ग हो जाते हैं, मजबूत हो जाते हैं। इसलिए उनके ऊपर किसी चीज का जल्दी से असर नहीं होता।

जब ये बातें सामने आर्इं तो उन्होंने माना कि ब्रह्माण्ड में कोई अदृश्य सुप्रीम पावर है। हम उसे भगवान, अल्लाह, वाहेगुरु, गॉड, खुदा, रब्ब कहते हैं। तो सतगुरु मौला ने उसी की चर्चा की, उस सुप्रीम पावर को आप देख सकते हैं। कोई भी इन्सान वचन सुनकर, गुरुमंत्र लेकर उसका जाप करे और तीन वचनों पर पूरा अमल करे, तो ऐसा करके वो अपने घर में बैठे, परिवार में रहकर उस सुप्रीम पावर का, सबसे बड़ी शक्ति का अहसास भी कर सकते हैं और दर्शन भी कर सकते हैं। तो सतगुरु मौला ने ऐसा नाम दिया, ऐसा बड़ा ही आसान तरीका बताया। जिन जीवों ने सुना, माना वो आज तमाम खुशियां हासिल कर रहे हैं, करते रहेंगे, ये खुशियां बढ़ती ही जानी हैं। ये उनके पवित्र वचन हैं।

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