प्रेम और मार्गदर्शन’ कर सकते है बच्चे क़ो डिजिटल दुनिया से आजाद
बड़ौत (सच कहूँ/संदीप दहिया)। Baraut News: आज के डिजिटल युग में सोशल मीडिया बच्चों की दिनचर्या का अभिन्न हिस्सा बन चुका है। जहां इसका सही उपयोग जानकारी और रचनात्मकता बढ़ाने में सहायक हो सकता है, वहीं इसका अत्यधिक प्रयोग बच्चों की शिक्षा, ध्यान और मानसिक संतुलन को बुरी तरह प्रभावित कर रहा है। उपयुक्त बाते बताते हुए क्षेत्र के प्रसिद्ध करियर काउंसलर और मनोवैज्ञानिक डॉ प्रदीप कुमार ने सोशल मीडिया क़ो बच्चो के लिए एक मकड़जाल बताया जिसकी गिरफ्त से आजाद होने के लिए उसमे अभिभावकों और काउंसलर की अहम भूमिका बताई।
सोशल मीडिया की लत – शिक्षा के लिए चुनौती
डॉ. प्रदीप कुमार का मानना है कि बच्चों में सोशल मीडिया की लत उनकी एकाग्रता और सीखने की क्षमता को कम कर रही है। निरंतर नोटिफिकेशन, रील्स और गेम्स के आकर्षण से उनका अध्ययन समय घट रहा है और वे आभासी दुनिया में खोते जा रहे हैं। शिक्षा की बजाय ‘स्क्रीन टाइम’ का बढ़ना बच्चों के भविष्य के लिए गंभीर चिंता का विषय बन चुका है।
अभिभावकों की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण | Baraut News
डॉ. कुमार कहते हैं, “अभिभावक ही बच्चों के पहले शिक्षक होते हैं।” आज अधिकांश अभिभावक सुविधा के लिए अपने बच्चों को खाने के समय या अपने कार्यों में व्यस्त रहते हुए मोबाइल फोन दे देते हैं। यही आदत धीरे-धीरे बच्चों में फोन निर्भरता का रूप ले लेती है। अभिभावक यदि बच्चों से प्यार और संवादपूर्ण समय बिताएं, तो बच्चा सोशल मीडिया की ओर कम झुकेगा और वास्तविक दुनिया से अधिक जुड़ा रहेगा।
संवाद की कमी और जागरूकता का अभाव
अक्सर माता-पिता बच्चों के साथ भावनात्मक संवाद नहीं करते और सोशल मीडिया के दुरुपयोग के बारे में उन्हें जागरूक भी नहीं करते। परिणामस्वरूप बच्चे गलत कंटेंट, तुलना की भावना और मानसिक दबाव का शिकार हो जाते हैं।
काउंसलर की भूमिका – दिशा और सहारा दोनों
सोशल मीडिया की लत से बच्चों को दूर करने में स्कूल काउंसलर और मनोवैज्ञानिकों की भूमिका बेहद अहम है।
डॉ. प्रदीप कुमार बताते हैं कि काउंसलर बच्चों को उनकी भावनाओं को समझने, आत्मविश्वास बढ़ाने और समय प्रबंधन सीखाने में मदद कर सकते हैं। नियमित काउंसलिंग से बच्चे फिर से पढ़ाई में ध्यान केंद्रित कर पाते हैं और स्वस्थ मानसिक जीवन जीने लगते हैं। डॉ. प्रदीप कुमार ने बताया की वर्तमान समय में अभिभावक, शिक्षक और समाज तीनों को मिलकर बच्चों के लिए सुरक्षित डिजिटल वातावरण बनाना होगा। मोबाइल से अधिक ‘मोहब्बत और मार्गदर्शन’ दीजिए, क्योंकि यही शिक्षा की सच्ची जड़ है।” Baraut News
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