पूज्य गुरु जी के इंस्ट्राग्राम पर संगत के लिए आया कुछ खास

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सरसा। पूज्य गुरु संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां ने इंस्ट्राग्राम पर एक नई रील अपलोड की है। रील में पूज्य गुरु जी ने फरमाया कि आत्महत्या के विचार को सिमरन से काबू कर सकते हैं। पूज्य गुरु जी ने फरमाया कि आज के

के टाइम में जो नशेड़ी हैं, कर्जाऊ हैं, जिनके सिर पर कर्जा है या पारिवारिक कलह-कलेश है, नौकरी-पेशे में कलह-कलेश है, खेती-बाड़ी में बर्बादी हो गई तो ये कुछेक कारण हैं, वैसे कारण और भी होंगे। जिससे आत्महत्या के विचार इन्सान के अंदर आने लग जाते हैं। पहली बात ‘आत्मघाती महापापी’, ये हमारे सभी धर्मों में लिखा हुआ है। आत्मा का घात करने के लिए छोटे-छोटे कीड़े-मकौड़े नहीं सोचते, वो भी ज़िंदगी बचाने के लिए लड़ते हैं और आपको तो प्रभु-परमात्मा ने सर्वश्रेष्ठ शरीर दिया है, तो आप क्यों आत्मा का घात करने पर तुले हो? आदमी कहता है कि जी, नशा करता हूँ, अब नशा मिलता नहीं, माँ-बाप ने जवाब दे दिया और पैसा खत्म हो गया, जमीनें बिक गर्इं, गाड़ियां बिक गर्इं, सब कुछ बिक गया अब मरने के अलावा कोई चारा नहीं।

ये सोचना गलत है। आपके अंदर भगवान जी रहते हैं और आपके अंदर ऐसी विल पावर है कि अगर आप हिम्मत करेंगे और राम के नाम से नशा भी छूट जाएगा और आत्महत्या के विचार भी बदल जाएंगे। ये सच्चाई है। ज़िंदगी को कभी भी इतना कमजोर मत बनाइये, अपने आपको मजबूर मत बनाइये और ज़िंदगी को इतना फालतू मत समझिये। फिर क़र्जा हो गया, कर्जाऊ हैं आप और आपको लगता है कि मैं आत्महत्या कर लूं तो पीछा छूट जाएगा। कैसे भाई? तूं घर का मुखिया, तेरे पर निर्भर तेरे बच्चे, पत्नी, माँ-बाप, परिवार, जो भी तेरे पर डिपैंड हैं। क्योंकि तू मुखिया है। और तू सोचता है कि क़र्जा हो गया, मैं आत्महत्या कर लूंगा। कौन सा बड़ा तीर मार दिया तूने। ये तो कायरता है, महा कायरता। तू आत्महत्या कर गया तो तेरे छोटे-छोटे बच्चों को भुगतना पड़ेगा।

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उनका समाज जो हाल करेगा उसके बारे में सोचा है कभी, विचार किया, दिमाग में कुछ आया। आप निकल लिया कि मैं मर जाऊँ और सारे परिवार को दुखी कर जाऊं। तू कैसा मुखिया है? तू कैसा इन्सान है? नहीं भाई, ऐसा मत कर, कभी भी ऐसा मत सोचो। बल्कि डटकर सामना करो, कोई भी मुसीबत, परेशानी आती है, मुश्किलातें आती हैं तो आप हिम्मत करो, ‘हिम्मत करे अगर इन्सान तो सहायता करे भगवान’, ‘हिम्मत-ए-मर्दां, मदद-ए-ख़ुदा’ आप मेहनत करो, भगवान जी साथ दे देंगे और धीरे-धीरे कर्जे उतर जाएंगे। हाथ पर हाथ धरे रखने से कर्जा नहीं उतरता। गम, चिंता, टैंशन लेने से कर्जा नहीं उतरता। और आत्महत्या से तो आप परिवार का बुरा हाल करके जाते हैं। महापापी तो वैसे ही बन गए, आत्मघाती महापापी, पीछे जो परिवार छूट गया उसका और बुरा हाल। ये तो कभी कल्पना भी नहीं करनी चाहिए।

पूज्य गुरु जी ने फरमाया कि अब पढ़ने वाले बच्चे, नंबर कम आ गए, माँ-बाप ने कहा था कि नंबर कम आ गए तो देख लेना। इस पर आपको एक हँसने वाली बात सुनाते हैं। कहने का मतलब आप टैंशन ना लिया करो। एक बच्चा था, उसके नंबर कम आते थे। तो उसका बाप कहने लगा कि ओए अगली बार अगर नंबर कम आए या तू फेल हो गया तो मुझे बाप मत कहना। वो चुप रहा। अब रिजल्ट आ गया। उसका बाप बैठा ही था, आया उसके पास। तो बाप ने कहा, हाँ… क्या हुआ? कहता रमेश जी मैं तो फेल हो गया। क्योंकि उसने कहा था कि बाप मत कहना, बाप का नाम था रमेश। तो हम ऐसा नहीं कहते कि आप फेल हो जाओ।

कहने का मतलब कि अगर नंबर कम आ गए तो कोई आसमान नीचे नहीं गिर गया, अगली बार फिर सही। मेहनत कीजिये, उसको अपने दिल पर लगा लो कि हाँ, इस बार कम आए हैं, मेरे बराबर वाले मैरिट में पहुंच गए, वो भी गर्भ से जन्मे हैं और मैं भी कोई ऊपर आसमान से नहीं टपका, तो अगली बार ऐम (लक्ष्य) बना लो, गैरत बना लो, यकीन मानो आपकी भी मैरिट आ जाएगी। आत्महत्या किसी चीज का कौनसा हल है। माँ, जिसने गर्भ में रखा उसका क्या दोष है भाई? हे बच्चो! जिसने नौ महीने गर्भ में रखा है। आपको छोटी सी बात लगती है तो आप डेढ़-दो किलो की र्इंट पेट पर बांधकर दो-तीन दिन सो कर देख लो। चल फिरकर देख लो। तीन किलो की र्इंट पेट पर बंधी हो और आप सो कर दिखा दो। नहीं सो पाओगे। अरे माँ ने नौ महीने पेट में रखा है, क्या वो इसलिए कि आत्महत्या करके उसको दु:ख दे जा। बाप ने परवरिश की, सपने बुने कि मेरा बेटा बड़ा होकर मेरा ऐसे साथ देगा, ऐसे मुझे खुशियां देगा, क्या ये कुठाराघात नहीं कर रहे आप।

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पूज्य गुरु जी ने फरमाया कि माँ-बाप को भी बच्चों को इतना ज्यादा प्रेशराइज नहीं करना चाहिए कि देख लेना अगर नंबर कम आए तो ऐसा हो जाएगा, वैसे हो जाएगा। पढ़े-लिखे कुछ ज्यादा ही प्रेशर डालते हैं। गाँवों में हमने देखा कि अनपढ़ परवाह नहीं करते। वो कहते, ‘पुत्त ढंग नाल पास हो जीं’, हमने जो देखा, आज भी ऐसे ही होता होगा, कि बेटा जी पास हो जाना, अच्छे नंबर ले आना। और ज्यादा जो पढ़-लिखकर कढ़ जाते हैं माँ-बाप, ख़ुद की मार्कशीट नहीं दिखाएंगे कि कितने नंबर लिए थे, या तो वो दिखा। वो दिखाने की जरूरत नहीं पड़ेगी अगर आप इंटेलिजेंट हैं तो नैच्युरली सेल वैसे ही जाएंगे बच्चे में और वो भी इंटेलीजेंट बनेगा।

पूज्य गुरु जी ने फरमाया कि क्या आपने कभी अपने बच्चे के संगी-साथियों का ध्यान दिया है? उसका संग तो गलत नहीं। कहीं गलत संग में तो नहीं फंस गया। क्या आपने उसको कभी टाइम दिया है? कभी चैक किया है? उनके टीचरों के पास, मास्टरों के पास 15 दिन के बाद, महीने के बाद उसकी रिपोर्टिंग की है? कि बताओ मेरा बच्चा पढ़ाई में कैसा है? स्कूल में उसकी कितनी हाजरियां हैं? 15 दिन में चैक करते रहो। पता चल जाएगा कि वो स्कूल में ही जाता या कहीं और तो नहीं जाता 15 दिनों के बीच में। और पता चलेगा तो चैक करो और प्यार से हैंडल करके अगर वो गलत सोहबत में पड़ गया है तो उसकी वो गलत सोहबत हटवा दो। अगर आप माँ-बाप ये सब कर रहे हो तो हकदार बनते हो बच्चे को कहने के कि बेटा नंबर अच्छे ले आना। और अगर आप उनको टाइम ही नहीं देते। आप तो अपने आप में मस्त हैं। आपका बिजनेस है, व्यापार है, ऐशोआराम है, आप तो उसमें खोए हैं। पर, आपको गैरत है कि मेरा बेटा कम नंबर कैसे ले आया? बेटे की आपने कभी जाकर रिपोर्ट ही नहीं देखी और लास्ट में कम नंबर क्यों ले आया? तो गलतियां आप माँ-बाप की हैं।
पूज्य गुरु जी ने फरमाया कि दोनों बातें ध्यान में रखिये।

माँ-बाप अपने बच्चों को टाइम दें और बच्चे माँ-बाप को एज ए फ्रैंड मानें। बेटी है तो अपने माँ-बाप को सहेली की तरह माने। हमारे ख्याल में एक टाइम रख लो। पहले भी हमने बहुत साल पहले सत्संग में बोला था, आज फिर से कहना चाहेंगे कि आप एक टाइम रख लो। एक घंटा, दो घंटे, बच्चा स्कूल से आता है, आज की भाषा में उसका नाम दे दो ‘फ्रैंड टॉक’, कि एक दोस्त की तरह, एक सहेली की तरह माँ-बाप अपने बेटे-बेटी से दोनों बैठकर बात करें, कि बेटा इस टाइम में जो भी तू हमें बताएगा उसको सुनकर हम तेरे से लड़ेंगे नहीं। तो 100 प्रतिशत वो बाहर दोस्त-मित्र नहीं बनाएगा, क्योंकि घर में ही दोस्त-मित्र मिल गए और आपसे हर बात शेयर करेगा। और जो बात आपको उसकी लगे कि ये गलत दिशा में जा रहा है तो उसको एक फ्रैंड (दोस्त) की तरह ही गाइड करके उसे समझा दीजिये और वो उस आदत को छोड़ देगा। लेकिन आप तो हिटलरबाजी करते हैं, एंह, मेरे से डरता रहना चाहिए।

कई तो बच्चे माँ-बाप से आँख ही नहीं मिलाते। बाप के तो पास ही नहीं आते। यूं लगता है कि वो करंट मार रहा हो। नहीं, ये बिल्कुल गलत है। फ्रैंड टॉक में बच्चा जो भी बताए तो उसकी उन बातों के लिए उसे कभी भी पीटना मत। वरना अगले दिन फ्रैंड टॉक बंद हो जाएगी। फ्रैंड टॉक का मतलब उसको उसी तरह से हैंडल करें, बाद में उसका जिक्र नहीं करना दो घंटे के बाद। तो बच्चा आपको हर चीज बताएगा। स्कूल में, बस में, कहां, क्या-क्या हुआ और क्या-क्या नहीं, वो छोटा है, छोटे होते से ये शुरू कर लोगे तो आप तो समझदार हैं, आपको पता चल जाएगा कि कोई बच्चे को बरगला तो नहीं रहा। गलत दिशा में तो नहीं ले जा रहा। तो यकीन मानों ये फ्रैंड टॉक, अगर शुरू कर लोगे अपने बच्चों के साथ, दोस्ती का एक रिश्ता। माँ-बाप तो हैं ही आप और दोनों बैठकर अपने बेटे-बेटी से सारी बातें करें, हर चीज का हल जब माँ-बाप से मिल जाएगा, कि भई इस मुश्किल से निकलने का ये हल है तो उसको बाहर दोस्ती की उतनी जरूरत नहीं पड़ेगी। पर दोस्त बनाएगा भी तो स्वस्थ दोस्त बनाएगा, जो हर समय साथ रहें। तो हमारा काम तो बताना है। तो इस तरह से बच्चे पढ़ाई में भी अच्छे होंगे और आत्महत्या रूपी जो बला है, ये बच्चों से दूर हो जाएगी।

पूज्य गुरु जी ने फरमाया कि अब बिजनेस व्यापार में लॉस (नुक्सान) हो जाता है या खेतीबाड़ी एकदम तबाह हो जाती है तो भी कई किसान भाई, बिजनेसमैन आत्महत्या कर जाते हैं। और एक है शक, जो सबसे गंदी चीज है। पति-पत्नी में ये बहुत बड़ा जहर है। बिना वजह शक। एक-दूसरे पर दृढ़ यकीन होना चाहिए। दोनों में से कोई एक भी यकीन ना तोड़े। अगर टूट गया तो रिश्ता भी खस्ता हो जाता है, लचकदार हो जाता है, उसमें वो विश्वास नहीं रहता, फिर दोनों आवारागर्दी पर उतर जाते हैं। इसलिए आत्महत्या के बारे में कभी ना सोचें। रिश्ते और यकीन मजबूत रखें।

पूज्य गुरु जी ने फरमाया कि किसान की फसल तबाह हो गई, बड़ा दर्द है, छह महीने मेहनत करता है, क्योंकि हम भी किसान के घर पैदा हुए। बड़ा दर्द होता है जब पकी-पकाई फसल बर्बाद हो जाती है। एक बार ऐसा ही हुआ था कि 1983-84 की बात होगी, बरसात आ गई। गेहूं की मंडलियां बोलते हैं, ढेरियां बोलते हैं, काटकर जगह-जगह लगा देते हैं। अब वो खलिहान में लाकर रखी। बरसात आ गई, अगले दिन धूप वगैरह निकली, उसको बिखेर दिया। दो दिन धूप पड़ी वो सूखने लगी, तीसरे दिन फिर बरसात आ गई। तो गेहूं बिल्कुल काली पड़ गई और बदबू आने लग गई। बहुत मुश्किल से थोड़ी सी गेहूं घर के लिए बची। तो इतना खर्चा किया होता है, कैसे कंट्रोल करें? पर इसका मतलब ये थोड़ी ना है कि आत्महत्या कर लो। खाने को तो मिल गया, जीने का तो है। चलो कर्जा उठा लिया उसका दर्द है। पर मरने से क्या कर्जा उतर जाएगा? क्या घर के लिए जो समस्या खड़ी हो गई वो हल हो जाएगी? जी नहीं, हे किसान भाइयों! ऐसा करने से आप ही नहीं, आप सारे परिवार को दुखी कर गए। किसी बात को अंदर ही अंदर मत रखो। आप घर परिवार में बैठकर दु:ख सांझा करो कि भई आपां इतना कर्जा उठा चुके हैं, फसल अपनी तबाह हो गई, अब आपां ने हाथ बंद करके खर्चा करना है, मतलब कम से कम खर्चा। ज़िंदगी का जीवन यापन करना है, ऐशोआराम को तिलांजिल दे दो, छोड़ दो। तो सारे परिवार में जब आप बात करोगे तो आधा बोझ तो वैसे ही उतर जाएगा।

क्योंकि एक अकेला आदमी जब दिमाग में रखता है तो दिमाग में टैंशन पैदा हो जाती है, उससे आत्महत्या के चांस ज्यादा हो जाते हैं। और जब वो ही बात पूरी फैमिली में और संयुक्त परिवार में हो तो कहना ही क्या यानि बहुत अच्छा है। फिर तो सारे परिवार वाले मिलकर लग जाएंगे कि हाँ, हमारे ऊपर कर्जा है और हमने मेहनत करनी है, यकीन मानिये रास्ते जरूर मिल जाते हैं, जब इतने दिमाग इकट्ठे सोचते हैं। पर आत्महत्या ना करो। हे किसान भाइयों! ठीक है कुदरत के कादिर ने कहर बरपा दिया, माना आप बर्बाद हो गए, पर बर्बाद हो गया… बर्बाद हो गया…गाने से क्या आबाद हो जाओगे? फिर से मेहनत के लिए तैयार हो जाओ, आप कर्मठ हैं, आप हिम्मत वाले हैं, आप योद्धा हैं, शूरवीर हैं। फिर से लग जाइये जमीन के साथ मेहनत करने और हो सकता है अगले छह महीने में आपका कर्जा भी उतर जाए और फायदा भी हो जाए।

पूज्य गुरु जी ने फरमाया कि ऐसे ही बिजनेस, व्यापार है। पैसा लगाया, डूब गया। एक बात, बुरा ना मानना बच्चो। बिजनेस व्यापार में अगर मेहनत की कमाई लगाते हो, हमारी ज़िंदगी का ये तज़ुर्बा है, वो पैसा कभी डूबता नहीं। ये आजमाई बात है। एक बार झटका लग सकता है, लेकिन अगले साल फिर पूरा हो जाएगा। अगर मेहनत का नहीं, ठगी, बेईमानी का है तो फिर तो टैंशन आपको लेनी ही नहीं चाहिए। कैसे नहीं टैंशन नहीं लेनी चाहिए एक उदाहरण आपको बताते हैं। राजस्थान में एक सज्जन थे। ऊँटों का व्यापार वगैरह करते थे। गाँवों वालों को इतना ज्यादा पता नहीं था। लेकिन राजस्थान में ये देखा हमने अपनी आँखों देखा कि जैसे नया ट्रैक्टर आ गया तो सार गाँव इकट्ठा हो गया। अच्छा, इसकी तो लाइट जलती है। अच्छा, इसका तो ये होता है। ये 1976 की बात है।

एक बार कोई ऊँट ले आया, शाम सी काटाइम था। गाँव वाले सारे इकट्ठे हो गए। अरे यार क्या खूबसूरत ऊँट है, कितना बढ़िया ऊँट है। पूछा कितने का लाया? वो कहने लगा कि यार ले आया जितने का हुआ। अब गाँवों ने ज्यादा नहीं छेड़ा और बोले कि ठीक है भाई बहुत सुंदर ऊँट है, गजब का ऊँट है तेरा। क्योंकि ऊँट ही होता था हल जोतने का मुख्य साधन। पंजाब साइड में बैल वगैरह होते थे और राजस्थान में भी कई जगह बैल होते थे। लेकिन मोस्टली, ऊँट ज्यादा चलते थे। तो अगले दिन सुबह कुछ गाँव दोबारा फिर आए कि यार शाम को तो इतना बढ़िया दिखा नहीं, सुबह जाकर देखते हैं।

खाली होते थे, क्योंकि ज्यादा बरसात पर निर्भर था। तो फिर आ गए घर में और देखा कि खाली खूंटा, ऊँट है ही नहीं। अब वो सज्जन बैठा था चुप्प, खामोशी सी में। गाँव वाले कहते कि यार ये क्या कर दिया तूने ऊँट बेच दिया। वो सज्जन कहता, हाँ। गाँव वालों ने पूछा कितने का? तो वो सज्जन कहता कि लगे मोल दे दिया। असल में पता है क्या हुआ? वो बंदा चोर था। चोरी करके ऊँट लाया, रात को कोई चोर चुरा कर ले गया।

तो कहने लगा, लगे मोल दे दिया भाई। तो हे भाई! बुरा ना मानना, अगर बेईमानी से कमाया था तो लगे मोल चला गया, टैंशन किस बात की? हाँ, मेहनत का कमाया है और मेहनत, कड़ा परिश्रम का पैसा है तो हम आपको गारंटी देते हैं, राम-नाम जपते रहो, फिर मेहनत करो, एक बार अगर वो डूबा भी है तो अगली बार दोगुना भी आ सकता है। ये आजमाई हुर्इं चीजें हैं। पर आत्महत्या किसी चीज का सोल्यूशन (हल) नहीं है। इसलिए आत्महत्या किसी भी कोस्ट पर, किसी भी चीज के लिए, कभी भी ना करो, ना सोचो। इससे बचने का सबसे बड़ा उपाय है ओउम, हरि, अल्लाह, वाहेगुरु, राम का नाम। ये सोल्यूशन, ये दवाई है। राम का नाम, ओउम, हरि, अल्लाह, वाहेगुरु, गॉड, ख़ुदा, रब्ब का नाम अपने-अपने धर्मानुसार आप जाप करें सुबह-शाम, विल पावर (आत्मबल) बढ़ेगा और विल पावर बढ़ेगा तो आप आत्मबल से अपनी गम, चिंता, टैंशन, परेशानियों को आने से पहले की खत्म कर देंगे तो अपने आप ही आत्महत्या का जो रोग है, वो खत्म हो जाएगा।

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