सतलुज-यमुना लिंक नहर मामला : सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अहम बिंदु

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Sutlej-Yamuna Link: सतलुज-यमुना लिंक नहर मामले में सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने सख्त रुख अपनाते हुए पंजाब सरकार (Punjab Government) को नहर का सर्वे कराने का आदेश दिया है। दशकों से चल रहे इस मामले में पहली बार सुप्रीम कोर्ट ने इतना सख्त रवैया अपनाया है। कोर्ट ने पंजाब सरकार से इस मामले में राजनीति नहीं करने को कहा है। इस सख्ती से यह भी साबित हो गया है कि कोर्ट ने समझ लिया है कि यह मामला पंजाब और हरियाणा के बीच आपसी बातचीत से नहीं सुलझ सकता। केंद्र को इसमें सक्रिय भूमिका निभानी चाहिए। इन आदेशों से हरियाणा को बड़ी राहत मिली है। कोर्ट के आदेश का केवल एक ही बिंदु पंजाब के पक्ष में नजर आता है, जो पंजाब की दलीलों से काफी मेल खा रहा है। Sutlej-Yamuna Link

कोर्ट ने कहा है कि पंजाब में पानी की उपलब्धता कितनी है, इसकी भी रिपोर्ट दी जाए। अदालत में पंजाब की मुख्य दलील यही रही है कि उसके पास जरूरत से ज्यादा पानी नहीं है तो फिर दूसरे राज्यों को पानी कैसे दिया जाए। अदालत के आदेश का बिंदु पंजाब के लिए लाभदायक साबित हो सकता, बशर्ते बदल रही परिस्थितियों में पानी की उपलब्धता चिंताजनक हो। यह बात वास्तव में वजनदार है कि आज स्थिति वैसी नहीं है जैसी 50 साल पहले थी, आबादी बहुत बढ़ गई है, पानी की घरेलू खपत के साथ-साथ पानी की बबार्दी भी बढ़ गई है। पानी का उपयोग केवल घरेलू उपयोग के लिए नहीं हो रहा, वाहनों को धोने के लिए भी धड़ल्ले से हो रहा है।

वाहनों की संख्या निरंतर बढ़ती जा रही है। जहां तक पंजाब-हरियाणा का संबंध है, दोनों राज्यों में अधिक पानी की खपत वाली फसलें बोने का चलन है, दोनों राज्य धान का रकबा कम करने में विफल रहे हैं और पानी की मांग बढ़ती जा रही है। इसी प्रकार, वर्षा की कमी के कारण नदियों का जल स्तर सामान्य दिनों में अच्छा नहीं रहा। भूमिगत जल का उपयोग लगातार बढ़ रहा है और बड़ी संख्या में ब्लॉकों को ब्लैक जोन घोषित किया जा चुका है। इन परिस्थितियों में नदियों में पानी की उपलब्धता की कमी भी एक नया मुद्दा बन जाएगा। किस राज्य को कितना पानी दिया जाएगा, यह एक नया मुद्दा होगा जिसके लिए पानी की जरूरतों का वर्गीकरण और उसका महत्व जैसे बिंदु चर्चा का विषय बनेंगे।

वास्तव में राजनीतिक कारणों के चलते यह भुगौलिक व प्राकृतिक महत्व वाला विषय भावनात्मक बन चुका है। जल वितरण के सिद्धांतों को प्राकृतिक सिद्धांतों, स्थानीय हितों और राष्ट्रीय हितों के संबंध में तय करना होगा। पंजाब को बाढ़ के रूप में नुकसान भी उठाना पड़ता है। सवाल यह भी उठता है कि क्या जल प्राप्त करने वाले राज्य नुकसान की भरपाई में हिस्सा लेंगे? इस संवेदनशील मुद्दे पर दोनों राज्यों को सद्भाव और मानवता की भावना से पानी बचाने पर बल देने के लिए आधुनिक और वैज्ञानिक तरीकों तथा कृषि तकनीक पर जोर देना चाहिए। पानी की मांग में गिरावट दर्ज करनी होगी।

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