निर्यात से पहले देश की जरूरत हो पूरी

Indian Exports

वैश्विक संकट के दौर में भारत की खेती और किसानी रिकार्ड दर्ज कराने की ओर अग्रसर हैं। देश के किसानों की मेहनत, कृषि वैज्ञानिकों का मार्गदर्शन और केंद्र सरकार की नीतियों के चलते ऐसा संभव हो रहा है। खाद्यान्नों से लेकर तिलहन, दलहन, गन्ना आदि के उत्पादन में रिकॉर्ड वृद्धि होने का अनुमान हैं। भारत में खाद्यान्नों के भंडार और रिकार्ड उत्पादन को देखते हुए वैश्विक स्तर पर खाद्यान्न निर्यात बढ़ाने का भी अच्छा मौका है। भारत इस अवसर का लाभ उठाकर गेहूं की अच्छी कीमतों का लाभ किसानों को दे सकता है। वैश्विक स्तर पर कोरोना के साथ ही रूस और यूक्रेन युद्ध के चलते खाद्यान्न की मांग में बढ़ोतरी हुई है। वहीं दूसरी तरफ विश्व के कई स्थानों पर सूखे ने वैश्विक उत्पादन को कम कर दिया है, जिससे मांग में तेजी से वृद्धि हुई है। यही वजह है कि विश्व खाद्य लागत रिकॉर्ड लेवल पर पहुंच गई है।

दरअसल, दुनिया के दो बड़े गेहूं उत्पादक रूस व यूक्रेन करीब तीस फीसदी गेहूं आपूर्ति विश्व बाजार में करते रहे हैं, दोनों के युद्ध में उलझने से आपूर्ति शृंखला में बाधा उत्पन्न हुई है। फलत: अंतर्राष्ट्रीय बाजार में भारतीय गेहूं की मांग बढ़ी है। एमएसपी से अधिक दाम मिलने से किसानों के चेहरों पर तो मुस्कान है लेकिन आम उपभोक्ताओं की चिंताएं बढ़ गई हैं। निस्संदेह महंगाई के दौर में लंबे समय तक इस स्थिति का बना रहना चिंता की बात होगी। खुदरा बाजार में आटे की कीमत तैंतीस रुपये पहुंचना लोगों की मुश्किल बढ़ाने वाला है क्योंकि एक साल की अवधि में यह वृद्धि करीब तेरह प्रतिशत के करीब है। इतना ही नहीं महंगे गेहूं से बेकरी उत्पादों की कीमतें भी बढ़ रही हैं। निस्संदेह, गेहूं निर्यात में वृद्धि के अल्पकालिक लाभ तो हो सकते हैं लेकिन सरकार को अपनी घरेलू प्राथमिकताओं का फिर से मूल्यांकन करना होगा।

ऐसा न हो कि देश में खाद्यान्न कीमतें अनियंत्रित हो जायें। वह स्थिति बेहद खराब होगी कि हमें फिर से महंगे दामों पर गेहूं का आयात करना पड़े। इस स्थिति को हर हालत में टालने के प्रयास जरूरी हैं। सवा अरब से ज्यादा लोगों की खाद्यान्न जरूरतों को पूरा करना आसान काम नहीं है। यूक्रेन संकट के पहले ग्लोबल मार्केट में भारतीय गेहूं का रेट 300-310 डॉलर प्रति टन था जो कुछ दिन में ही बढ़कर 360 डॉलर प्रति टन तक पहुंच गया है। अगर यही हालात रहे तो अगले कुछ दिनों में ये 400 डॉलर प्रति टन पहुंच जाएगा। ये किसान और भारत दोनों के लिए अच्छा है। ध्यान रहे कि भारत में दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी आबादी रहती है, जिसकी खाद्यान्न जरूरतों को पूरा करना हर सरकार का प्राथमिक दायित्व है। अपनी जरूरतों को पूरा करने के बाद ही हमें निर्यात को अपनी प्राथमिकता बनाना होगा। सरकार को याद रखना होगा कि देश में कोरोना संकट के चलते सरकारी स्टॉक में पहले के मुकाबले कम गेहूं है, इस बार पैदावार में गिरावट आई है और सरकारी खरीद में भी परिस्थितिवश कमी आई है।

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