Haryana: 1890 में बनी हरियाणा की एकमात्र पनचक्की, जिसके आटे के आज भी दीवाने है लोग

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Haryana Haryana: 1890 में बनी हरियाणा की एकमात्र पवनचक्की, जिसके आटे के आज भी दीवाने है लोग

Haryana:  कैथल,सच कहूँ/ कुलदीप नैन। आज के जमाने में घर घर में आटा पीसने वाली चक्की है। इन चक्कियों से निकलने वाला आटा गर्म होता है। ये चक्की बिजली, सोलर या जरनेटर से चलती है। लेकिन पुरातन समय में ऐसा नहीं था, पुरातन समय में ज्यादातर हाथ से चलने वाली चक्कियां होती थी, जिनसे लोग आटा पीसते थे। वहीं कैथल जिले के नैना गांव में एक ऐसी पनचक्की भी है जो बिजली या हाथ से नहीं बल्कि पानी से चलती है। जी हां! सही पढ़ा आपने, यहां हरियाणा प्रदेश की एकमात्र पवन चक्की है जो आज से 135 साल पहले 1890 में अंग्रेजों द्वारा बनाई गई थी। यह पवन चक्की सिरसा ब्रांच नहर पर स्थित है।

पनचक्की की खासियत | Haryana

इस पनचक्की में 5 चक्की है जो एक साथ चलती है। जब भी कोई व्यक्ति इसके अंदर प्रवेश करता है तो उसे जूते या चप्पल बाहर निकालकर ही प्रवेश करना पड़ता है। इन चक्की का आटा मॉडर्न चक्की के आटे की तरह गर्म नहीं बल्कि बेहद ठंडा निकलता है। इस चक्की का आटा आज वाली चक्की के आटे की तरह जल्दी खराब नहीं होता। यह करीब दो महीने तक बिल्कुल सही रहता है। इसमें न कीड़े होते है, न जाले लगते है। पीसने के बाद इस चक्की के आटे में फलावट आ जाती है। यह मॉडर्न चक्की के आटे की अपेक्षा स्वास्थ्य के लिए बहुत ज्यादा फायदेमंद होता है। यही कारण है कि पुराने समय में लोग ज्यादा बीमार नहीं होते थे।

1890 में बनी पवनचक्की

यह पन चक्की 1890 में अंग्रेजों द्वारा बनाई गई थी। यह पवन चक्की सिंचाई एवं जल संसाधन विभाग के अंतर्गत आती है। सरसा ब्रांच नहर में जितना समय पानी चलता है यह चक्की लगातार चलती रहती है।पुराने समय में जब लोगों के घरों में चक्की नहीं होती थी तो यहां नैना गांव ही नहीं बल्कि दूर दूर के गांव से भी लोग आटा पिसवाने आते थे। आज वाली चक्की जहां 5-7 साल बाद खराब हो जाती है वहीं यह चक्की लगातार 135 वर्षों से ऐसे ही चल रही है।

सस्ती दर पर पीसा जाता है आटा

आज घर घर में चक्की हो गई है लेकिन इसके बावजूद इस पन चक्की के आटे की मांग कम नहीं हुई है। आज भी लोग गाड़ियों में आटा पिसवाने के लिए यहां आते है। वहीं शुरू से ही यहां सस्ते रेट पर आटा पीसा जाता है। पहले के जमाने में बताया जाता है 5 पैसे , 10 पैसे, 25 पैसे रेट हुआ करते थे जो बाद में समय के साथ कुछ कुछ बढ़ते गए। आज भी इसके गुणों को देखते हुए इसका रेट मात्र दो रुपए है।

पंखे से घूमते है पाट | Haryana

इसके नीचे एक सुरंग टाइप जगह बनाई गई है। यहां नहर से पानी आता है और इसमें लोहे के पंखे लगे हुए है। ये पंखे ऊपर चक्की के पाट से जुड़े हुए है। जैसे ही इन पर पानी पड़ता है तो ये तेज तेज घूमने लगते है। जिससे ऊपर चक्की के पाट भी घूमते है और गेहूं से आटा बनना शुरू हो जाता है। बताया जाता है कि पहले ये पंखे शीशम की लकड़ी के होते थे जो बाद में लोहे के बनवाए गए। एक घंटे में एक चक्की एक मण (40 किलोग्राम) आटा पीस देती है