‘दास्तान-ए-रोहनात’ नाटक ने जीवंत किया इतिहास

Dastaan-e-Rohnaat

रंगमंच के कलाकारों की प्रस्तुती देख दर्शकों के खड़े हुए रोंगटे

  • नाटक का मंचन, मेयर, भाजपा जिलाध्यक्ष, सीएम प्रतिनिधि ने किया शुभारंभ

करनाल (सच कहूँ न्यूज)। आजादी के अमृत महोत्सव की श्रृंखला में सूचना, जन संपर्क एवं भाषा विभाग हरियाणा के सौजन्य से वीरवार को गुरू नानक खालासा कॉलेज के सभागार में स्वतंत्रता संग्राम में हरियाणा से जुड़ी बड़ी घटना पर हिसार के अभिन्य रंगमंच के कलाकारों ने मनीष जोशी द्वारा निर्देशित व यशराज शर्मा द्वारा लिखित ‘दास्तान-ए-रोहनात’ (Dastaan-e-Rohnaat) नाटक का जीवंत मंचन किया। कलाकारों ने नाटक के हर पात्र को बड़ी ही संजीदगी और जीवंतता के साथ प्रस्तुत किया। कलाकारों की हर प्रस्तुति ने उपस्थित दर्शकों के रोंगटे खड़े कर दिए और युवा पीढ़ी को देशभक्ति का संदेश दिया।

कार्यक्रम में मेयर रेनू बाला गुप्ता ने बतौर मुख्य अतिथि शिरकत की तथा विशिष्ट अतिथि के तौर पर भाजपा जिलाध्यक्ष योगेन्द्र राणा, सीएम प्रतिनिधि संजय बठला, मीडिया कोर्डिनेटर जगमोहन आनंद शामिल हुए। अतिथियों ने दीप प्रज्ज्वलित कर कार्यक्रम का विधिवत रूप से शुभारंभ किया। सूचना, जन संपर्क एवं भाषा विभाग के उप निदेशक एवं डीआईपीआरओ देवेन्द्र शर्मा व एआईपीआरओ रघुबीर सिंह ने अतिथियों को पुष्प गुच्छ व स्मृति चिन्ह देकर सम्मानित किया।

पूर्व की सरकारों ने शहीदों की कुर्बानी को छिपाया: रेनू बाला

मेयर रेनू बाला गुप्ता ने कहा कि ‘दास्तान-ए-रोहनात’ नाटक के माध्यम से देश की आजादी में हरियाणा के सूरमाओं की कुबार्नी को याद किया जा रहा है। जबकि पूर्व की सरकारों ने आजादी की लड़ाई के वीरों शहीदों एवं रणबांकुरों की कुर्बानियों को छिपाने का काम किया। उन्होंने बताया कि रोहनात गांव में 23 मार्च 2018 से पहले कभी भी आजादी का जश्न नहीं मनाया गया था और न ही गांव में राष्ट्रीय ध्वज फहराया गया था, क्योंकि यहां के ग्रामीणों की मांग को पूरा करने के लिए किसी भी सरकार ने ध्यान नहीं दिया।

नाटक का सार

वो 29 मई 1857 की तारीख थी। हरियाणा के रोहनात गांव में ब्रिटिश फौज ने बदला लेने के इरादे से एक बर्बर खूनखराबे को अंजाम दिया था। बदले की आग में ईस्ट इंडिया कंपनी के घुड़सवार सैनिकों ने पूरे गांव को नष्ट कर दिया। लोग गांव छोड़कर भागने लगे और पीछे रह गई वो तपती धरती जिस पर दशकों तक कोई आबादी नहीं बसी। दरअसल यह 1857 के गदर या सैनिक विद्रोह, जिसे स्वतंत्रता की पहली लड़ाई भी कहते हैं, के दौरान ब्रिटिश अधिकारियों के कत्लेआम की जवाबी कार्रवाई थी।

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