सिद्धांतहीनता और मुफ्तखोरी की राजनीति

Politics became a game of opportunists

कभी राजनीति सिद्धांतों पर आधारित थी, लेकिन अब सिद्धांतहीनता का बोलबाला है। मुफ्तखेरी पर विरोधियों को कोसने वाले पंजाब कांग्रेस के प्रधान नवजोत सिंह सिद्धू ने पार्टी का चुनावी मैनीफेस्टो जारी करने से पहले ही एक बड़ी घोषणा कर दी कि दोबारा कांग्रेस सरकार बनने पर प्रत्येक महिला को एक वर्ष में आठ रसोई गैस सिलेंडर फ्री दिए जाएंगे। साथ ही प्रत्येक महिला को दो हजार रुपये प्रति माह मिलेंगे। यही नवजोत सिंह सिद्धू आप नेता अरविंद केजरीवाल के प्रत्येक महिला को एक हजार रुपये देने के वायदे का विरोध कर रहे थे और साथ ही सवाल कर रहे थे कि इस वायदे को पूरा करने के लिए पैसा कहां से आएगा?

नवजोत सिद्धूु ने आर्थिकता, पॉलिसी फ्रेमवर्क और बजट में फंड का वितरण जैसे कई तर्क दिए थे लेकिन अब वही सिद्धू पलटी मारकर छक्का लगाने की कोशिश कर रहे हैं। अब सिद्धू की घोषणा को पूरा करने के लिए पैसा कहां से आएगा, यह बड़ा सवाल है। वास्तव में सभी दलों में जुबानी घोषणाएं करने की जंग छिड़ी हुई है और कोई भी पार्टी एक-दूसरे से पीछे नहीं रहना चाहती। यही सबकुछ फ्री बिजली देने के वायदे में हुआ है। आम आदमी पार्टी ने प्रत्येक माह 300 यूनिट मुफ्त बिजली देने का वायदा किया है तो शिरोमणी अकाली दल ने इसके बाद 400 यूनिट का ऐलान कर दिया। वास्तव में बड़ी घोषणा करने के लिए कहीं भी जाने की जरूरत नहीं, बस केवल खड़े होकर बोलना है। यही कुछ 2017 की विधान सभा चुनावों के दौरान हुआ था, जब कांग्रेस ने किसानों का पूरा कर्ज माफ करने की घोषणा की, लेकिन बात केवल दो लाख रुपये और केवल पांच एकड़ जमीन वाले किसानों तक सिमट गई।

ऐसे वायदे तो अमीर या विकसित देश भी नहीं कर रहे। पहले महिलाओं को बस सफर मुफ्त की सुविधा दी गई लेकिन रोडवेज की हालत खस्ता है, न पूरे चालक हैं और न ही कंडक्टर। जो कर्मचारी उपलब्ध है, वे भी पक्के होने के लिए धरने दे रहे हैं। हैरानी तो इस बात की है कि इन राजनीतिक पार्टियों में यदि कोई अर्थशास्त्री है तो वे बोल ही नहीं रहे। जो अर्थशास्त्री नेता कृषि को मुफ्त बिजली और अन्य सब्सिडी देने के खिलाफ थे वह अब चुप्पी साधकर बैठे है, लेकन यह आवश्यक है कि कभी कृषि क्षेत्र को दी जानी वाली बिजली पर सब्सिडी जिसे बड़ा अनुचित फैसला कहा जाता था मौजूदा घोषणाओं में खेती के लिए अब छोटा सा फैसला बनकर रह गया है। यह सब वोट की खेल है। यहां नीति नहीं केवल नीयत का सवाल है। दूसरी पार्टी की घोषणा को पछाड़ने के लिए कोई जुगाड़ क्यों न करना पड़े, किया जा रहा है। यहां से सिद्धांतों से दूर तक का भी कोई संबंध नहीं। लोगों को सुविधाएं उपलब्ध करवाने की बड़ी आवश्यकता है लेकिन यह सब कुछ आर्थिक मूल्यांकनों के आधार पर किया जाना चाहिए।

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