बच्चों की खांसी के लिए सबसे अच्छी कोई दवा नहीं : डॉ पुरोहित

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जालंधर (सच कहूँ न्यूज) राष्ट्रीय संचारी रोग नियंत्रण कार्यक्रम के सलाहकार डॉ नरेश पुरोहित ने कहा कि सर्दी और खांसी जैसी कई बीमारियां जो स्वत: ठीक हो जाती हैं, इसके बावजूद भारतीय दवा बाजार बिना किसी सिद्ध लाभ के कफ सिरप और संयोजन दवाओं से भरा हुआ है। उन्होंने कहा कि बच्चों की खांसी के लिए सबसे अच्छी अभी कोई दवाई नहीं है। गाम्बिया में 66 बच्चों की मौत के संभावित कारण के रूप में चार भारत निर्मित कफ सिरप पर विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) द्वारा उठाए किये गये अलर्ट के बाद चिंता व्यक्त करते हुए, इंडियन एकेडमी आॅफ प्रिवेंटिव हेल्थ के प्रधान अन्वेषक डॉ पुरोहित ने शुक्रवार को यहां यूनीवार्ता को बताया कि कफ सिरप भारत में शीर्ष दवाओं में से एक हैं, जिनका अतार्किक रूप से सेवन किया जाता है और ओवर-द-काउंटर खरीदा जाता है।

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डॉ पुरोहित ने आगाह किया कि सर्दी और खांसी के सिरप पर आमतौर पर चेतावनी दी जाती है कि उत्पाद चार साल से कम उम्र के बच्चों को नहीं दिए जाने चाहिए। माता-पिता को छोटे बच्चों या शिशुओं को सर्दी और खांसी की दवा नहीं देनी चाहिए जो बड़े बच्चों के लिए बनाई गई है। उन्होंने कहा कि यदि आपका बच्चा दो साल से कम उम्र का है, तो उसे डॉक्टर से पूछे बिना सर्दी और खांसी के उत्पाद कभी न दें। उन्होंने कहा कि डब्ल्यूएचओ ने हाल ही में मेडेन फार्मास्युटिकल्स द्वारा निर्मित चार खांसी और सर्दी के सिरप-प्रोमेथाजिÞन ओरल सॉल्यूशन, कोफेक्समालिन बेबी कफ सिरप, मकॉफ बेबी कफ सिरप और मैग्रीप एन कोल्ड सिरप पर चिंता व्यक्त की है। डब्ल्यूएचओ अलर्ट ने कहा है कि पांच साल से कम उम्र के गैम्बियन बच्चों में खांसी और ठंडे सिरप में जिन रसायनों से मौत हुई है, उनमें डायथिलीन ग्लाइकॉल (डीईजी) और एथिलीन ग्लाइकॉल शामिल हैं।

कैसे होता है तैयार सिरप

डॉ पुरोहित ने कहा कि इन रसायनों का सेवन करने पर पेट में दर्द, उल्टी, दस्त, पेशाब करने में असमर्थता, सिरदर्द, बदली हुई मानसिक स्थिति और तीव्र गुर्दे की चोट शामिल है, जिससे मृत्यु हो सकती है। उन्होंने खुलासा किया कि ग्लिसरॉल का उपयोग अक्सर कफ सिरप में मीठा और गाढ़ा करने वाले एजेंट के रूप में किया जाता है, लेकिन लागत बचाने के लिए कभी-कभी डीईजी और एथिलीन ग्लाइकॉल जैसे विकल्पों द्वारा प्रतिस्थापित किया जाता है। उन्होंने कहा, ‘इससे भारत सहित अतीत में कुछ देशों में बड़े पैमाने पर विषाक्तता हुई है। उन्होंने कहा कि देश में कई बार डायथाइलीन ग्लाइकॉल से संबंधित मौतें हुई हैं। पहली बार दर्ज की गई ग्लाइकोल विषाक्तता का उदाहरण 1973 में चेन्नई के एक अस्पताल में था, जिसमें 14 बच्चों की मौत हुई थी। तेरह साल बाद, 1986 में, मुंबई के जे जे अस्पताल में इसी तरह के जहर के कारण 14 रोगियों की मौत हो गई, जिनके बारे में माना जाता है कि वे ठीक हो गए थे और 1998 में, दिल्ली के दो अस्पतालों में 33 बच्चों की मौत नकली दवाओं के कारण इसी तरह के जहर से हुई थी।

2019 में 12 बच्चों की मौत हुई थी सिरप पीने से

भारत में चौथा सामूहिक ग्लाइकोल विषाक्तता घटना जिसमें दिसंबर 2019 और जनवरी 2020 के बीच जम्मू-कश्मीर के उधमपुर में कोल्डबेस्ट-पीसी के ब्रांड नाम के तहत बेचे जाने वाले कफ सिरप के सेवन से 12 बच्चों की मौत हो गई थी। यही वजह है कि डॉक्टर ज्यादातर मौकों पर जेनेरिक दवाओं की गुणवत्ता के बारे में सुनिश्चित हुए बिना ही उन्हें दवा देने से कतराते हैं। उन्होंने बताया कि सरकारी स्वास्थ्य अधिकारियों के अनुसार केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (सीडीएससीओ), ड्रग कंट्रोलर जनरल आॅफ इंडिया (डीसीजीआई) और हरियाणा स्टेट ड्रग्स कंट्रोलर की एक टीम ने जांच के लिए चार दवाओं के नमूने (एक ही बैच से विचाराधीन दवाएं) एकत्र किए हैं। स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय की आधिकारिक विज्ञप्ति के अनुसार नमूनों को क्षेत्रीय ड्रग टेस्टिंग लैब, चंडीगढ़ में परीक्षण के लिए भेजा गया है। परिणाम आगे की कार्रवाई का मार्गदर्शन करेंगे और साथ ही डब्ल्यूएचओ से प्राप्त/प्राप्त किए जाने वाले इनपुट पर स्पष्टता लाएंगे।

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