अभी तो डेरे में बहुत कुछ होना बाकी है आगे-आगे देखिए होता है क्या…

सरसा। (सच कहूँ न्यूज) परम पूजनीय शहनशाह मस्ताना जी महाराज ने अपने परम पूजनीय प्यारे मुर्शिद हजूर बाबा सावण सिंह जी महाराज के हुक्मानुसार सन् 1948 में सरसा में (शाह सतनाम जी मार्ग पर) एक छोटी-सी कुटिया बनाई और यहां पर ईश्वर, प्रभु, अल्लाह, वाहेगुरू, राम, गॉड के सच्चे नाम का प्रचार (ईश्वर के सच्चे नाम का सौदा मालिक की भक्ति) बिना पाखंड और बिना किसी प्रकार के लालच के करना शुरू किया। उसी कुटिया का ही नाम बाद में डेरा सच्चा सौदा मशहूर हुआ। पूजनीय बेपरवाह जी ने प्रेम की शिक्षा दी तथा निरोल नि:स्वार्थ, प्रेम करना सिखाया। डेरा सच्चा सौदा सर्व धर्म संगम सभी धर्मों का सांझा स्थान है। यहां पर किसी से भी भेदभाव नहीं किया जाता बल्कि सभी धर्म जातियों को बराबर हार्दिक सम्मान दिया जाता है।

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परम पूजनीय शहनशाह शाह मस्ताना जी महाराज ने यह सच्चा सौदा राम-नाम, अल्लाह, वाहेगुरू, परमात्मा की भक्ति का सीधा व सच्चा मार्ग चलाया है। पूजनीय परम पिता शाह सतनाम जी महाराज ने जिसे अपनी रहमत से सजाया-संवारा और भारत के कोने-कोने में पहुंचाने का जरिया बनाया है। परम पूजनीय शाह मस्ताना जी महाराज मुर्शिद-कामिल कुल मालिक की दया मेहर व पावन आशीर्वाद से कुल दुनिया में आज अपना सर्वोच्च स्थान बनाए हुए है। जैसा कि डेरा सच्चा सौदा में मौजूदा हजूर महाराज जी का वचन है, ‘‘आगे आगे देखिए होता है क्या! देखते जाईए। अभी तो गोहड़े में से एक पूनी भी नहीं काती। बहुत कुछ यहां (डेरा सच्चा सौदा में) बना है और बहुत कुछ अभी बनना है। यह तो कुछ भी नहीं है। सच्चा सौदा खुद ही एक करिश्मा है।’’ यह सौ-फी-सदी सच है और इस सच्चाई को इन्सान अपनी आंखों से डेरा सच्चा सौदा में खुद जब चाहे देख सकता है। परम पूजनीय हजूर महाराज जी का फरमान है कि सच्चा सौदा सभी के सामने है। यहां पर किसी से कुछ भी नहीं छिपा कर रखा गया। सच्चा सौदा की वास्तविकता दुनिया के बिल्कुल सामने है। न कोई पाखण्ड और न कोई ढोंग या दिखावा है। मालिक, प्रभु, अल्लाह, राम, वाहेगुरू, गॉड का बिल्कुल सीधा स्पष्ट प्रचार यहां पर होता है, होता था और होता रहेगा। जैसा कि पूजनीय शहनशाह शाह मस्ताना जी महाराज के रूहानी सत्संग में पवित्र मुख वचन हैं:-
कभी मन में ना उसको टटोला,
कठ्ठा किया तू पापों का गोला।
जे पापों से दिल को हटाए, जीवन तेरा सुधर जाए।
वचन:-
किसी आदमी ने एक फकीर को बोलेया कि मेरे को परमेश्वर से मिला। बोलेआ, भाई! अभी ले। बोल सांई हुक्म कर। भग्गी मकान में परमेश्वर बैठा है, जा के पकड़। उह आदमी उत्थे गया, उत्थे देखेआ। उत्थे सुने मकान में फिरेआ। कहता कि इत्थे तो मिलदा नहीं। वरी आया, बोलेआ, वाह रे महात्मा! तू बोलेआ की भग्गे मकान में बैठा है रब्ब। बोले दिल भग्गी बोलेआ उहना, इह मकान बोलेआ। तो किसी की दिल (दिल की तार) इधर से टूटे तो परमेश्वर कोई परे है? नहीं! उह तेरे पास है अविनाशी पुरूष। जैसे फूल में खुशबू, मेंहदी में रंग, धरती में पानी, लकड़ी में सिंगे जा अग्ग है। इसी तरह इसके अंदर परमेश्वर है।

परमेश्वर इस शरीर रूपी हरि मंदिर में रहता है और यह इन्सान उसे कहीं बाहर ढूंढता फिरता है। तो फिर वह भला कैसे मिलता है। अगर इन्सान उसे सच्चे हृदय और सच्ची तड़प से याद करता है तो वह उसे अवश्य पा लेता है। डॉक्टर साहिबानों ने बड़ा कट्टेआ है मगर इनको इसमें परमेश्वर ना लभ्भेआ।

मगर देख ले, जैसे :- इह जो इत्थे करदे ने लाऊड स्पीकर का आवाज आता है। ऐथे करदे ने तों रेडिओ में कलकत्ते का आवाज आया। ऐथे करदे ने तां फलाने का आवाज आया। तो बोलो, उह राह कुदरती तेरे अंदर मालिक ने रखी है। तू ऐथे तवज्जा दे, तो उह तेरे को छिन में आके तेरे साथ मिले। उह असीं अचम्भा अज होर देखेआ अंदर। साथ इनका रखेआ है उह लाउड स्पीकर-उह टेलीफून। उह कोई उत्थे बोले ते सुने इत्थे। ते असीं बोलेआ इह तां मिल गई बात। जिस तरह कि हजरत मुहम्मद साहिब जी पवित्र कुरआन में फरमाते हैं (तुमको इही बात मेल के बताते हैं) देखो, कुदरत का खेल! इह सतगुरू तो बलिहारे हां! दुनिया इस मैदान को देख के दुनिया को अकल मारेआ गया।

हजरत मुहम्मद साहिब फरमाते हैं:– खुदा की आवाज मेरे कानों में आम आदमी की तरह आती है। मालिक ने तुम्हारे कानों पर मोहरें लगा दी हैं, जिस कारण तुम खुदा की आवाज को नहीं सुन सकते। इह जो नमूना अज असीं देखेआ, दिल में आया कि एक आदमी जो वहां सदर बाजार में बैठा है और उसदी आवाज असीं इत्थे सुन रहे हैं। इह नकल काल ने कैसा खींचा है। असल क्या है, उह बोलता है कि मेरे कान आवाज परमेश्वर का पड़ता है पर तेरे अंदर मोहर है। तो तुम कब मोहर उतारोगे, बताओ? कब असीं मोहर उतारें, कब असीं परमेश्वर अपने ईश्वर की आवाज सुनें। उह की हम को बोलदा है? तो भाई! उह की बात बोलेगा ना, कि भाई! मैं मरन जन्म का फाही का मुकाने का कोई नमूना बनाया है। तो सुणे कौण? लक्कड़ मंडी के संढे का यार, तो यार नहीं सुनदा। जो चम को पाले तो चमार नहीं सुनदा। सुबह-शाम चम को पालने की लगी पड़ी है। इसी चम के वास्ते सोफा, इसी चम के वास्ते रजाई, इसी चम के वास्ते खाना। मिट्टी दी बहारी। इह बुझारत बोली है बुल्ला शाह जीने भन्न लाह सिर तो भार। तो नसीब होवे कोई जो आपणे परमेश्वर नूं ढूंढे। गवाचा जिंदाराम गवाचा राम सबका पड़ा है। सब गवाच के (गुम करके) अपने राम को बैठे हैं। हर कोई बाहर पेआ फिरदा है, तू सब कहीं फटकता फिरदा है, कभी कहीं कभी मथुरा, कभी काशी, कभी द्वारका, पर तेरा वो जो सब कुछ करने वाला है, तेरा वो अविनाशी पुरूष वो भगवान तो तेरे पास ही बैठा है।

तैनूं घल्लेआ सी लाल खरीदणें नूं,
तूं कोलेआं दे ढेर ला बैठा।
हुक्म सी नाम कस्तूरी खरीदणे दा,
हिंग जवैण दे ढेर तूं ला बैठा।
उस शाह नूं की जवाब देसें,
जिसदी रकम तूं खर्च करा बैठा।
वारे शाह मीयां तेरी की सौदागरी ओए,
मुफ्त राम हट्टी ते चोर बहा बैठा।
ध्यान सतगुरू से जो तू लगाए जीवन तेरा बदल जाए।

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