Wagner Group का साहस और पुतिन की जिद्द

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Wagner Group का साहस और पुतिन की जिद्द

Wagner Group : जिस तरह रोस्तोव में येवगेनी प्रिगोझिन के साथ सेल्फी लेने और उनसे हाथ मिलाने के लिए रूसियों में होड़ लगी हुई थी उससे यह भी प्रदर्शित होता है कि पुतिन को आंख दिखाने और पुतिन शासन को चुनौती देने की हिम्मत दिखाने वाले को जनता सराह रही है। यूक्रेन के खिलाफ युद्ध में रूस की ओर से मोर्चा संभालने वाली निजी सैन्य कंपनी वैगनर ग्रुप के प्रमुख येवगेनी प्रिगोझिन ने बगावत का फैसला वापस लेकर रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन को बड़ी राहत प्रदान की है। Vladimir Putin

हालांकि वैगनर ग्रुप (Wagner Group) ने अपने आका पुतिन को जिस तरह आंखें दिखाईं उससे दुनिया भर को यह संदेश गया है कि आतंक को पालना और निजी सैन्य समूहों को बढ़ावा देना कितना खतरनाक हो सकता है। भले कोई देश या राष्ट्राध्यक्ष दूसरों के खिलाफ उपयोग करने के लिए आतंक को पाले लेकिन एक दिन वही आतंक या निजी सैन्य समूह उसके लिए भस्मासुर साबित होता है। इसके अलावा, वैगनर ग्रुप की बगावत के बाद जिस तरह बेलारूस के राष्ट्रपति ने बीच बचाव करवा कर रूस को कुछ मांगों को मानने के लिए मनाया, वह यह भी दर्शाता है कि अपने लगभग ढाई दशक के कार्यकाल में पुतिन पहली बार कमजोर पड़े हैं। Vladimir Putin

पुतिन के खिलाफ रूसियों के मन में बगावत की आग | Wagner Group

इसके अलावा, जिस तरह रोस्तोव में येवगेनी प्रिगोझिन के साथ सेल्फी लेने और उनसे हाथ मिलाने के लिए रूसियों में होड़ लगी हुई थी उससे यह भी प्रदर्शित होता है कि पुतिन को आंख दिखाने और पुतिन शासन को चुनौती देने की हिम्मत दिखाने वाले को जनता सराह रही है। जनता ने जिस तरह वैगनर ग्रुप के मुखिया को सराहा वह यह भी संकेत देता है कि पुतिन के खिलाफ रूसियों के मन में बगावत की आग भभक रही है। दरअसल रूसी जनता पहले दिन से नहीं चाहती थी कि यूक्रेन के खिलाफ युद्ध छेड़ा जाए। पुतिन ने अपनी सनक में आकर जो युद्ध छेड़ा है उसकी बड़ी कीमत रूसी जनता भी चुका रही है और इस युद्ध के लंबे खिंचते चले जाने से वह आजिज भी आ चुकी है। यही नहीं, रूसी सेना का एक बड़ा धड़ा भी बेहद नाराज बताया जा रहा है। माना जा रहा है कि यदि राष्ट्रपति पुतिन ने वैगनर ग्रुप की बगावत को लेकर अपने रक्षा मंत्री या अन्य वरिष्ठ अधिकारियों पर कोई सख्त कार्रवाई की तो बगावत का झंडा बुलंद किया जा सकता है।

जहां तक वैगनर ग्रुप जैसे निजी सैन्य समूहों को बढ़ावा देने की बात है तो इतिहास गवाह है कि आतंक को प्रश्रय देने वाले खुद उसके सबसे बड़े शिकार बने हैं। जरा याद कीजिए कैसे अमेरिका ने ही एक समय ओसामा बिन लादेन को आगे बढ़ाया और एक समय ऐसा आया कि इस आतंक की चोट 9/11 के रूप में अमेरिका को ही झेलनी पड़ी थी। एक सशक्त उदाहरण अपने पड़ोस पाकिस्तान में भी है। पाकिस्तान ने तमाम आतंकी संगठनों को भारत में आतंक फैलाने के लिए तैयार किया लेकिन आज तहरीक-ए-तालिबान और उस जैसे तमाम आतंकी संगठन खुद पाकिस्तान की ईंट से ईंट बजा रहे हैं।

पाकिस्तान ने तालिबान को भी प्रश्रय देकर उसे अफगानिस्तान की सत्ता तक पहुँचाने में मदद की थी लेकिन आज वही तालिबान उसके सिर पर चढ़कर बोल रहा है। वैगनर ग्रुप भी एक तरह से पुतिन की ओर से निर्मित किया गया निजी सैन्य समूह है जिसने अब धमकी देकर अपने आका के माथे पर पसीना ला दिया। यही नहीं, चीन अक्सर संयुक्त राष्ट्र में किसी पाकिस्तानी आतंकवादी को वैश्विक आतंकवादी घोषित कराने के प्रयासों में बाधा डालता है तो उसे लगता है कि उसने मुंबई में हुए 26/11 के हमलावरों को बचाकर भारत को झटका दिया है। लेकिन चीन को पाकिस्तान में कार्यरत चीनियों पर बढ़ते आतंकी हमलों को देखकर यह समझ आ जाना चाहिए कि आतंकवाद अपने जन्मदाता या प्रश्रयदाता को भी नहीं बख्शता है।

वैगनर ग्रुप ने भले 2014 में पुतिन की ओर से क्रीमिया पर और 2023 में यूक्रेन के बखमुत पर कब्जा किया लेकिन अब वह सिर्फ भाड़े के टट्टू के रूप में काम करने को राजी नहीं है। येवगेनी प्रिगोझिन अब अपने लिए बड़ी भूमिका चाहते हैं। भले फिलहाल वह बेलारूस के मनाने पर मान गए हों लेकिन उन्होंने जो तेवर दिखाए हैं वह आने वाले समय में भी पुतिन के लिए बड़ा सिरदर्द साबित हो सकते हैं। यदि येवगेनी प्रिगोझिन को पश्चिमी या नाटो देशों का साथ मिल गया तो यह पुतिन के लिए बड़ी मुश्किलों का सबब बन सकता है क्योंकि वैगनर ग्रुप रूस की सैन्य क्षमताओं के बारे में बहुत कुछ जानकारी रखता है।

इस प्रकरण ने यह भी दर्शाया है कि रूस की सैन्य शक्ति को जितना बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया जाता था, हकीकत वैसी नहीं है। यदि खुद को महाशक्ति कहलाने वाला देश युद्ध के समय लड़ने के लिए लड़ाके निजी कंपनी से आउटसोर्स करे तो सवाल उठेगा ही कि परेड के दौरान जिस सैन्य शक्ति का प्रदर्शन किया जाता था कहीं वह फैन्सी ड्रेस शो तो नहीं था? वैगनर ग्रुप की बगावत से रूस का जो सच दुनिया के सामने आया है और उससे जो परिस्थितियां निर्मित हुई हैं, उसका फायदा उठाने में अमेरिका और नाटो देश कोई कोर कसर नहीं छोड़ेंगे। इसलिए यह मान कर चलना चाहिए कि वैगनर ग्रुप के टैंक और लड़ाके भले रोस्तोव से बाहर चले गए हों लेकिन असल पिक्चर अभी बाकी है।

रूस-यूक्रेन युद्ध ने यह भी दर्शाया है कि रूस की सैन्य रणनीति पूरी तरह कामयाब नहीं रही है। युद्ध में अब तक जानमाल का सर्वाधिक नुकसान भले ही यूक्रेन को हुआ हो लेकिन प्रतिष्ठा का नुकसान सर्वाधिक रूस को हुआ है। रूसी सेना के हाथ से कई जीते हुए इलाके निकल गए, रूसी सेना की रणनीतियां विभिन्न मोर्चों पर नाकामयाब रहीं, रूसी सेना के बड़े-बड़े कमांडर युद्ध में मारे गए, युद्ध के बीच में रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन को सैन्य नेतृत्व में बदलाव तक करने पड़ गए, जो रूस दुनिया के कई देशों को हथियार देता है उसे ईरान और चीन से हथियार और ड्रोन तक लेने पड़ गए। यकीनन इस सबसे रूस के महाशक्ति होने के दावे पर गंभीर सवाल उठे हैं। इसके अलावा जिस तरह रूस में सैन्य नेतृत्व के शीर्ष पर बैठे लोगों पर तेजी से परिणाम हासिल करने का दबाव बढ़ रहा है, उसके बारे में इस तरह की खबरें हैं कि यह पुतिन के खिलाफ जल्द ही विद्रोह की शक्ल अख्तियार कर सकता है।

बहरहाल, गलती पर गलती करते चले जाने के चलते पुतिन एकदम अकेले पड़ गए हैं। रूस ने एक छोटा सैन्य अभियान समझ कर जो युद्ध शुरू किया था वह अब अंतहीन होता दिख रहा है। यह संघर्ष जिस तरह दिन पर दिन लंबा और महंगा होता जा रहा है उससे रूस में पुतिन के खिलाफ जनाक्रोश बढ़ रहा है। 2014 में क्रीमिया पर कब्जा करने के बाद से ही रूस पश्चिमी देशों की ओर से लगाए गए तमाम प्रतिबंधों का सामना कर रहा था। ऐसे में यूक्रेन के खिलाफ युद्ध शुरू होने के बाद रूस के खिलाफ आर्थिक प्रतिबंध और बढ़ गए जिससे रूस की अर्थव्यवस्था भारी दबाव में आ गई है। इसके साथ ही युद्ध का बढ़ता खर्च और साख बचाने की कोशिशों में जो अनाप-शनाप खर्च पुतिन कर रहे हैं वह रूस को पतन की ओर ही ले जा रहा है। कहा जा सकता है कि बगावत का सीजन रूस में शुरू हो चुका है। वैगनर ग्रुप ने जो साहस दिखाया है उसने जनता को भी ऊर्जा दे दी है। Vladimir Putin

नीरज कुमार दुबे, वरिष्ठ लेखक एवं स्वतंत्र टिप्पणीकार (यह लेखक के अपने विचार हैं)