दिल्ली में जितने वाहन पंजीकृत हैं प्रतिदिन लगभग उतने ही पड़ोसी राज्यों से आते हैं। कहने को दिल्ली में एक से बढ़कर एक फ्लाइओवर हैं। चौड़ी सड़कें हैं। आउटर रिंग रोड पर ऐलिवेटेड रोड हैं।
हर चौराहे पर यातायात नियंत्रित करने के लिए रेड लाइट की व्यवस्था है लेकिन यातायात लगभग अनियंत्रित ही हैं। इसका कारण वाहनों की संख्या अधिक होने से यहां के लोगों में ‘पहले मैं’ की होड़ का होना माना जा सकता है। कहीं भी देख लो, एक इस तरफ तो दो उस तरफ, तीन तीसरी और शेष जहां जगह मिले वहां निकल भागना चाहते हैं। यातायात अनुशासन तो लगता है जैसे किसी को मालूम ही नहीं।
आश्चर्य तो तब होता है जब इस अराजकता के लिए जिम्मेवार लोग भी दूसरों को कोसते नजर आते हैं कि उसने गलत ढंग से गाड़ी निकालने की कोशिश। जाहिर है चालकों की अनुशासनहीनता जहां स्वयं उन पर भारी पड़ती है, वहीं निर्दोष लोगों को घंटों जाम में फंसे रहना पड़ता है। अनेक लोगों का मत है कि बेलगाम बाइक वाले जब जहां जैसा मौका मिले, निकल भागते हैं। उन्हें लाल बत्ती तो क्या, अपनी और दूसरों की जान की परवाह तक नहीं होती।
आखिर इसका क्या कारण है। कुछ लोगों का मत है कि ड्राइविंग लाइसेंस मिलना कठिन नहीं है। दलाल के चलते किसी कठिन टेस्ट अथवा पूछताछ की जरूरत नहीं पड़ती। लाइसेंस पाना जैसे बच्चों का खेल सरीखा है। इसलिए वर्षों से गाड़ी चला रहे अनेक लोग भी बिना नियम कानून के ज्ञान के काम चला रहे हैं।
बसें, आटो, टैक्सी, ट्रक, टैम्पों जैसे व्यवसायिक वाहनों की संख्या भी लाखों में है जिनके ड्राइवर अक्सर बदलते रहते हैं। अनेक बार तो बहुत कम पढ़े लिखे पहली बार महानगर में आये युवा के हाथ में स्टेरिंग पकड़ा दिया जाता है जो यातायात व्यवस्था पर भारी पड़ता है। ऐसे ही लोग न तो लेन में चलते हैं, न कानून से डरते है, ओवरस्पीडिंग, रेड लाईट जम्प, तेज आवाज में लगातार हार्न बजाकर दूसरों को आतंकित करते हैं जबकि नियमानुसार चौराहे के 100 मीटर दूर तक हार्न बजाना अपराध है।
रात के समय पर बाइक सवार युवक सड़कों पर स्टंट करते देखे जा सकते हैं, जबकि बच्चों को अनधिकृत रूप से वाहन सौंपना भी एक अपराध है। हमारा सबसे बड़ा दुर्भाग्य यह है कि सड़क पर पैदल चलने वाले की किसी को परवाह नहीं। पहले तो फुटपाथ बहुत कम है। है भी तो उन पर कब्जे हैं। कहीं रेहड़ी पटरी तो कहीं निर्माण सामग्री वाले ‘ले दे’ कर कमा-खा रहे हैं।
हर चौराहे पर जेबरा क्रासिंग तो हैं लेकिन वाहन उस पर भी कब्जा जमा लेते हैं, जैसे सड़क केवल और केवल उन्हीं के लिए हो। हम बात करेंगे पश्चिमी देशों की लेकिन उनसे यातायात अनुशासन सीखने को तैयार ही नहीं हैं। वहां जाकर हर कानून का पालन करने वाले भारत आते ही अपने रंग में आ जाते हैं। कहीं भी गाड़ी रोकना, तेज आवाज में होर्न बजाना, मनमानी करना।
कुछ लोगों का मत है कि हमारे महानगरों में यातायात के लिए पुलिस कर्मी बहुत कम हैं जबकि हमने अपने मॉरिशस प्रवास में 15 दिन में केवल एक बार सड़क पर पुलिस को देखा। वहां आत्मअनुशासन है तो यहां क्यों नहीं? बात स्पष्ट है कि एक बार सख्ती नहीं, बहुत सख्ती से नियम कानून का पालन कराया जाये तो दूसरी ओर स्कूली स्तर पर यातायात अनुशासन का प्रतिदिन ज्ञान दिया जाए, तभी दुबई, पोर्टलुईस जैसे वातावरण की अपेक्षा की जा सकती है।
हर चौराहे पर कैमरे लगाये जायें जो हर छोटी से छोटी गलती पर भी चालान करें। बार-बार ऐसा होने पर वाहन तथा लाइसेंस रद्द कर दिया जाये। पुलिस केवल यातायात नियंत्रण करे । बाकी काम दूर से नियंत्रित कैमरे को सौंपा जाये जो जनता से दूर हो।
-लेखक डा़ विनोद बब्बर
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