INTERNET CABLE: अनु सैनी। आज हमारी जिंदगी इंटरनेट के बिना अधूरी है। सोशल मीडिया, वीडियो कॉल, ऑनलाइन शॉपिंग, यूट्यूब और ऑफिस का काम सब कुछ इंटरनेट पर निर्भर है। लेकिन अक्सर लोग सोचते हैं कि इंटरनेट सैटेलाइट या मोबाइल टावर से आता है। जबकि हकीकत यह है कि दुनिया का करीब 99 प्रतिशत इंटरनेट समुद्र के नीचे बिछी फाइबर ऑप्टिक केबल्स से होकर आता है। यानी इंटरनेट ऊपर से नहीं, बल्कि गहरे समुद्र के रास्ते हमारे पास पहुंचता है।
इंटरनेट केबल्स का इतिहास
समुद्र के नीचे केबल बिछाने की शुरुआत 1830 के दशक में टेलीग्राफ से हुई थी। 1858 में अमेरिकी कारोबारी साइरस वेस्टफील्ड ने अटलांटिक महासागर के नीचे पहली टेलीग्राफ केबल बिछाई। हालांकि यह ज्यादा समय तक नहीं चल सकी, लेकिन 1866 में पहली स्थायी अंडरसी केबल सफलतापूर्वक बिछाई गई। इसके बाद से धीरे-धीरे दुनिया भर में समुद्र के नीचे टेलीग्राफ और फिर इंटरनेट के लिए केबल्स बिछाई जाने लगीं।
कितनी लंबी हैं ये केबल्स?
आज पूरी दुनिया को जोड़ने वाली समुद्र के नीचे की इंटरनेट केबल्स की कुल लंबाई करीब 14 लाख किलोमीटर है। इन्हीं से दुनिया का लगभग पूरा इंटरनेट चलता है। भारत भी इन्हीं पर निर्भर है और यहां करीब 95 प्रतिशत इंटरनेशनल डेटा फाइबर ऑप्टिक केबल्स के जरिए आता है।
भारत में कितनी केबल्स आती हैं?
भारत में कुल 17 इंटरनेशनल इंटरनेट केबल्स समुद्र से होकर आती हैं। ये केबल्स 14 समुद्री स्टेशनों से जुड़ी हैं, जिनमें मुंबई, चेन्नई, कोचीन, तूतीकोरिन और त्रिवेंद्रम प्रमुख हैं। इन स्टेशनों से इंटरनेट देश के अलग-अलग हिस्सों तक पहुंचता है।
इन केबल्स का मालिक कौन है?
अब सवाल यह उठता है कि इतनी महंगी और जरूरी समुद्री केबल्स का मालिक कौन है? इसका जवाब यह है कि इनका मालिक कोई सरकार नहीं, बल्कि निजी कंपनियां होती हैं। ये कंपनियां केबल बिछाने, उसका रखरखाव करने और डेटा ट्रांसफर की पूरी प्रक्रिया संभालती हैं।
भारत में कौन-कौन सी कंपनियां मालिक हैं?
भारत में टाटा कम्युनिकेशंस, रिलायंस जियो, भारती एयरटेल, सिफी टेक्नोलॉजीज और बीएसएनएल जैसी कंपनियां इन अंडरसी इंटरनेट केबल्स की मालिक और ऑपरेटर हैं। इसी तरह, दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में भी कई ग्लोबल कंपनियां इस काम को संभालती हैं।
इंटरनेट की असली सच्चाई
यानी साफ है कि इंटरनेट हमारी सोच के विपरीत आसमान से नहीं आता। यह समुद्र की गहराई में बिछी केबल्स के जरिए हमारे घरों तक पहुंचता है। निजी कंपनियों की बदौलत ही हम कुछ सेकेंड में दुनिया के किसी भी कोने से जुड़ पाते हैं।