हां! यही बाबा जी थे, जिन्होंने घोड़े पर सवार होकर मुझे दर्शन दिए…

Shah Mastana Ji Maharaj
हां! यही बाबा जी थे, जिन्होंने घोड़े पर सवार होकर मुझे दर्शन दिए...

प्रेमी करतार सिंह सुपुत्र स. लाल सिंह गांव घूमियारा तहसील लंबी जिला श्री मुक्तसर साहिब (पंजाब) से अपने सतगुरु की अपार रहमत का वर्णन इस प्रकार करता है। सन् 1958 की बात है, पूजनीय बेपरवाह मस्ताना जी महाराज सत्संग फरमाने के लिए हमारे जिले के गांव बडिंग खेड़ा में पधारे। मेरे चाचा अर्जुन सिंह ने पूज्य शहनशाह मस्ताना जी (shah mastana ji) से नाम दान ले रखा था। उसने मुझे कहा-करतार सिंह! मेरे साथ चल तुझे संतों की सत्संग सुना लाएं, क्योंकि आज गांव बड़िंग खेड़ा में सत्संग है। मैंने कहा- चाचा, आज तो मुझे बहुत जरूरी काम है। मैं फिर कभी आपके साथ सत्संग सुनने अवश्य चलूंगा। उन्होंने मुझे सत्संग में ले जाने के लिए बहुत प्रेरित किया, परंतु मैं हर बार अपनी ही मजबूरी बताता रहा।

सत्संग से अगले रोज प्रात: लगभग 4 बजे मैं सोया हुआ था, अचानक नूरानी चेहरे वाला बुजुर्ग जिसके सफेद दाड़ी थी, और उसने सफेद वस्त्र धारण किए हुए थे, घोड़े पर सवार होकर मेरी चारपाई के पास आया और मुझे बाजू से पकड़कर एक झटके से चारपाई पर बैठा दिया। तदोपरांत वह अजनबी आकृति पल भर में अलोप हो गई। मैं चक्कर में पड़ गया कि वह व्यक्ति कौन था और मेरे साथ यह खेल किस लिए खेला।

क्या वह स्वयं परमात्मा का रूप था या कोई और खेल था? चारपाई पर लेटे-लेटे काफी समय इसी विचार में बीत गया। प्रात: होते ही मैं उठा और चाचा जी के घर चला गया। उन्हें रात वाली उस अजीब घटना के बारे में बताया। इस पर चाचा जी ने मुझे पूजनीय बेपरवाह मस्ताना जी महाराज के, जो उनके घर की दीवारों पर स्वरूप लगे हुए थे, दिखाए और पूछा कि करतार सिंह, क्या यह बाबाजी तो नहीं थे? जब मैंने स्वरूपों को देखा तो मेरे आश्चर्य का कोई ठिकाना ना रहा और मैं अनायास जोर-जोर से कहने लगा कि हां! यही बाबा जी थे जो घोड़े पर सवार होकर रात को मुझे दर्शन दे गए।

मैं खुशी से फूले नहीं समा रहा था कि मुझ जैसे पापी को स्वयं भगवान ने साक्षात दर्शन देकर कृतार्थ किया है। मुझ जैसे जीव को निजघर जाने का मार्ग दिखाया है। कुछ दिनों बाद डेरा सचा सौदा दरबार, सरसा में महीने वाला सत्संग था। मैं चाचा जी के साथ सत्संग पर गया। जब शहनशाह मस्ताना जी महाराज के दर्शन हुए तो मन खुशी से नाच उठा और अंदर से आत्मा की आवाज आई कि यह तो सचमुच वही बाबा जी हैं जिन्होंने मुझे घोड़े पर सवार होकर रात को दर्शन दिए थे। सत्संग सुनने के पश्चात मैंने बेपरवाह जी से नाम दान प्राप्त कर अपने जीवन का उद्देश्य पूरा किया। कुछ समय बाद फिर ऐसी ही एक घटना और घटी। मुझे मेरे प्यारे मुर्शिद के साक्षात दर्शन हुए, यह वाक्या दिवाली की रात का है। मैं सोया पड़ा था। उस रात स्वप्न में मेरा अपने सगे-संबंधियों से किसी कारणवश झगड़ा हो गया और नौबत यहां तक आ गई थी कि दोनों पक्षों के लोग कुल्हाड़ी इत्यादि लेकर आपस में मारपीट करने लगे।

विरोधी पक्ष के एक आदमी का बाजू कुल्हाड़ी की चोट से बुरी तरह जख्मी हो गया था और बाद में उसकी मृत्यु हो गई थी। पुलिस में रिपोर्ट हुई और पुलिस हमें पकड़ कर ले गई। मुकदमा चला और मुझे सजा हुई। फांसी के फंदे पर लटकाने के लिए मुझे निश्चित स्थान पर ले जाया गया। मेरे सिर पर काले रंग की टोपी पहना दी गयी तथा गले में फांसी का फंदा डाल दिया गया। जल्लाद को फट्टा हटाने का आदेश दिया गया। ज्यों ही जल्लाद ने मेरे पैरों के नीचे का फट्टा हटाया तभी दया के सागर मुर्शिद बेपरवाह मस्ताना जी महाराज ने अपने पवित्र कर-कमलों में लेकर मुझे इस तरह से उछाला कि गले से फांसी का फंदा अपने आप निकल गया। मेरी नींद खुल गई।

इस स्वप्न का साक्षात् प्रमाण मुझे पांच-छह रोज बाद घटित एक घटना से मिला। किसी कारण से हमारे सगे-संबंधियों में किसी बात को लेकर तकरार हो गई। नौबत मारपीट तक पहुंच गई। झगड़े में विरोधी पक्ष के एक व्यक्ति की बाजु पर कुल्हाड़ी से जबरदस्त चोट आई। बाद में हमें पुलिस थाने में बुलाया गया। गांव के प्रतिष्ठित व्यक्तियों और रिश्तेदारों ने मिलकर राजीनामा करवाया। तब जाकर मुझे पुलिस हिरासत से छुटकारा मिला। इस घटना से सहज ही यह अनुमान लगता है कि प्यारे मुर्शिद ने मेरे किसी भारी कर्म को जिसके बदले मुझे सूली पर चढ़ना था। उसे सूल बनाकर भुगतवा दिया और सूल का दर्द भी महसूस नहीं होने दिया। मैं अपने प्यारे सतगुरु का बहुत-बहुत आभारी हूं, जिसने मेरे सूली जैसे कर्म को सूल में बदलकर भुगतवा दिया।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here