Karn Ka Kavach Kundal: कहाँ गया कर्ण का कवच कुंडल, इतिहास और रहस्य का संगम, जानिये यहां सब कुछ

Karn Ka Kavach Kundal
Karn Ka Kavach Kundal: कहाँ गया कर्ण का कवच कुंडल, इतिहास और रहस्य का संगम, जानिये यहां सब कुछ

Karn Ka Kavach Kundal::अनु सैनी।  उत्तर प्रदेश के मेरठ जिले में स्थित प्राचीन नगर ‘हस्तिनापुर’ न केवल इतिहास और पुराणों की धरोहर है, बल्कि यह धार्मिक आस्था का भी गढ़ माना जाता है। इस नगर में स्थित ‘द्रौपदी घाट’ एक ऐसा स्थल है, जहां पौराणिक कथाओं के साथ-साथ सामाजिक और धार्मिक गतिविधियों की सजीव झलक देखने को मिलती है।

पौराणिक पृष्ठभूमि: महाभारत की कथा से जुड़ा स्थल | Karn Ka Kavach Kundal

द्रौपदी घाट का नाम महाभारत की प्रमुख पात्रा और पांचों पांडवों की पत्नी द्रौपदी के नाम पर पड़ा है। कहा जाता है कि वनवास के समय पांडवों ने हस्तिनापुर में भी कुछ समय बिताया था और द्रौपदी प्रतिदिन इस घाट पर स्नान करने आती थीं। यही वह स्थान है जहां द्रौपदी ने गंगा तट पर तपस्या की थी और अपने दुःख-दर्द को गंगाजल में बहाकर प्रभु से न्याय की प्रार्थना की थी।
ऐसी भी मान्यता है कि महाभारत काल में जब कौरवों ने द्रौपदी का चीरहरण किया था, तब श्रीकृष्ण ने यहीं से अदृश्य रूप में हस्तक्षेप कर उन्हें आशीर्वाद दिया और चीर को अनंत कर दिया।

गंगा का पवित्र तट: स्नान और धार्मिक अनुष्ठानों का केंद्र

द्रौपदी घाट गंगा नदी के पवित्र तट पर स्थित है। यहां प्रत्येक पूर्णिमा, अमावस्या, गंगा दशहरा, कार्तिक स्नान और मकर संक्रांति जैसे अवसरों पर हजारों श्रद्धालु स्नान करने आते हैं। लोगों का मानना है कि इस घाट पर स्नान करने से समस्त पापों का नाश होता है और पुण्य की प्राप्ति होती है।
यहां रोज़ सुबह और शाम गंगा आरती का आयोजन होता है, जिसमें स्थानीय पुजारी और श्रद्धालु भाग लेते हैं। जलती हुई दीयों की रौशनी, मंत्रोच्चार की गूंज और गंगाजल की ठंडी लहरें – ये सब मिलकर एक दिव्य अनुभव प्रदान करती हैं।

आसपास के धार्मिक स्थल: पांडव टीला, कर्ण मंदिर और जैन मंदिर

द्रौपदी घाट के समीप ही पांडव टीला स्थित है, जिसे पांडवों के निवास स्थान के रूप में जाना जाता है। इसके अलावा कर्ण मंदिर भी दर्शनीय है, जहां सूर्यपुत्र कर्ण ने अपने दानवीर स्वरूप का परिचय दिया था। साथ ही, हस्तिनापुर को जैन धर्म के लिए भी अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है – यहां शांति नाथ और कुंथुनाथ जी के भव्य जैन मंदिर भी स्थित हैं। वहीं कर्ण का कवच और कुंडल, जो कि महाभारत के एक महत्वपूर्ण पात्र कर्ण के पास था, इंद्रदेव ने छल से प्राप्त किया था। कहा जाता है कि इंद्रदेव उसे स्वर्ग ले जाने में सफल नहीं हो पाए और उन्होंने इसे ओडिशा के कोणार्क में समुद्र तट पर छिपा दिया था।

आस्था के साथ पर्यटन का भी अद्भुत स्थल

द्रौपदी घाट ना केवल धार्मिक रूप से बल्कि पर्यटन के दृष्टिकोण से भी एक उत्कृष्ट स्थान है। घाट के आस-पास हरियाली, पक्के घाट, विश्राम स्थल और स्थानीय दुकानों की रौनक इसे दर्शनीय बनाती है। उत्तर प्रदेश सरकार और पर्यटन विभाग ने यहां बुनियादी ढांचे को बेहतर करने के लिए कई प्रयास किए हैं – जैसे घाट का सौंदर्यीकरण, प्रकाश की व्यवस्था, सीढ़ियों की मरम्मत, पेयजल और शौचालय की सुविधा आदि।

रहस्य और जनमान्यताएं

स्थानीय लोगों का मानना है कि द्रौपदी घाट पर आज भी रात्रि के समय द्रौपदी की छाया दिखाई देती है। कई श्रद्धालुओं ने यह दावा किया है कि उन्हें आध्यात्मिक ऊर्जा का अनुभव हुआ और कोई दिव्य शक्ति उन्हें अपने दुखों से छुटकारा दिलाने वाली प्रतीत हुई।

कैसे पहुंचे द्रौपदी घाट?

हस्तिनापुर मेरठ से लगभग 35 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यह दिल्ली से भी केवल 120 किलोमीटर दूर है और सड़क मार्ग से सुगमता से पहुंचा जा सकता है। निकटतम रेलवे स्टेशन मेरठ और निकटतम एयरपोर्ट दिल्ली है। पौराणिक कथाओं से लेकर आज तक जिंदा है द्रौपदी की गाथा द्रौपदी घाट केवल एक धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि इतिहास, परंपरा और संस्कृति की सजीव धरोहर है। यहां गंगा की लहरों में आज भी द्रौपदी की पीड़ा, उसकी शक्ति और उसके सम्मान की गूंज सुनाई देती है। यह घाट हमें नारी शक्ति, त्याग और आत्मबल का स्मरण कराता है।