अंबाला (सच कहूँ/संदीप)। Haryana Metro: अंबाला और ट्राईसिटी (चंडीगढ़, मोहाली, पंचकूला) के बीच भारी यातायात से जूझने वाले हजारों दैनिक यात्रियों की आवाज अब संसद के गलियारों में गूंजी है। लोकसभा में ‘तत्काल जनमहत्व’ के तहत सांसद मनीष तिवारी ने मेट्रो परियोजना की वकालत करते हुए दो टूक कहा कि यह अब महज एक यात्री सुविधा का सवाल नहीं, बल्कि पूरे क्षेत्र के आर्थिक अस्तित्व की जरूरत है। उन्होंने सदन में प्रस्ताव रखा कि बढ़ते शहरीकरण को देखते हुए मेट्रो नेटवर्क का दायरा अंबाला से कुराली तक विस्तारित किया जाना अब अनिवार्य हो गया है।
अंबाला-कुराली और लांडरां-पिंजौर कॉरिडोर का प्रस्ताव
संसद में रखे गए प्रस्ताव के मुताबिक, मेट्रो नेटवर्क का खाका अब व्यापक होना चाहिए। इसमें एक कॉरिडोर अंबाला से शुरू होकर कुराली तक और दूसरा लांडरां से पिंजौर तक बनाने की बात कही गई है। सांसद ने तर्क दिया कि चंडीगढ़ के आसपास उपनगरों का दायरा तेजी से बढ़ा है। अंबाला, जो कि एक प्रमुख ट्रांजिट हब है, वहां से बड़ी संख्या में लोग नौकरी और व्यापार के सिलसिले में राजधानी क्षेत्र का रुख करते हैं। ऐसे में केंद्र सरकार को इस परियोजना के लिए 25,000 करोड़ रुपये की विशेष वित्तीय सहायता मंजूर करनी चाहिए। चेतावनी दी गई कि यदि अगले 5-7 वर्षों में यह मास रैपिड ट्रांसपोर्ट सिस्टम धरातल पर नहीं उतरा, तो पूरे क्षेत्र की यातायात व्यवस्था चरमरा जाएगी।
परिवहन मंत्री विज भी जता चुके हैं चिंता | Haryana Metro
अंबाला के संदर्भ में इस मांग को इसलिए भी बल मिलता है क्योंकि हरियाणा के परिवहन मंत्री अनिल विज भी इस मुद्दे पर सक्रिय रहे हैं। बीते जून माह में विज ने दिल्ली में केंद्रीय आवास एवं शहरी कार्य मंत्री मनोहर लाल से मुलाकात कर अंबाला-चंडीगढ़ मेट्रो लिंक की वकालत की थी। विज का तर्क था कि अंबाला और चंडीगढ़ के बीच एकमात्र हाईवे पर दबाव क्षमता से अधिक हो चुका है। चूंकि चंडीगढ़, हरियाणा और पंजाब की साझा राजधानी है, इसलिए अंबाला से सीधी मेट्रो कनेक्टिविटी न केवल प्रदूषण कम करेगी, बल्कि सड़कों पर वाहनों का बोझ भी घटाएगी।
धरातल पर नहीं उतरा 2019 का प्रस्ताव
सदन में यह भी याद दिलाया गया कि 2019 में भी केंद्रीय सड़क परिवहन मंत्रालय को पत्र लिखकर तेज रफ्तार सार्वजनिक परिवहन प्रणाली की मांग की गई थी। राइट्स की विस्तृत रिपोर्ट और यूनीफाइड मेट्रोपोलिटन ट्रांसपोर्ट अथॉरिटी की कई बैठकों में इस परियोजना को तकनीकी रूप से सही माना गया है। इसके बावजूद, परियोजना अब तक फाइलों से बाहर नहीं निकल पाई है। ताजा प्रस्ताव में यह साफ किया गया है कि जो प्रोजेक्ट पहले 16 हजार करोड़ का था, देरी के कारण उसकी लागत बढ़ने की आशंका है, इसलिए अब तत्काल निर्णय लेने की आवश्यकता है।
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