अमेरिका सैन्य ताकत की तरह ही दिखा रहा है आर्थिक थानेदारी
अमेरिका अपनी आर्थिक दशा को पटरी पर लाने के लिए एकतरफा, सम्राज्यवादी, गैर-लोकतांत्रिक फैसले कर अपने आपको दुनिया की सर्वोच्च ताकत बताने की हैंकड़ी छोड़ने का नाम नहीं ले रहा है। दुनिया भर में अपने कम्पनी उत्पादों की बिक्री के लिए अमेरिका चीन सहित दुनिया के अन्य देशों को धमकियां दे रहा है लेकिन अब हालात बदल चुके हैं।
चीन, रूस सहित भारत जैसे देश अपने उत्पादों के लिए अमेरिका को टक्कर देने के बाद पीछे हटने वाले नहीं। भारत ने कई अमेरिकी वस्तुओं को दरकिनार कर आत्मनिर्भरता का दबदबा बनाया है। इससे पहले रूस तथा चीन भी अमेरिका को आर्थिक टक्कर दे रहे हैं। फ्रांस, जर्मनी, कनाडा तथा इंग्लैंड ने भी अमेरिका की एकतरफा नीतियों की आलोचना की है। दरअसल अमेरिका सैन्य ताकत की तरह ही आर्थिक थानेदारी दिखा रहा है।
ट्रंप कार्यकाल में प्रवासियों में डर का माहौल बढ़ा
राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने पद संभालते ही यह घोषणा की थी कि वह अमेरिका के हितों की रक्षा के लिए ठोस कदम उठाएंगे। उनका असली उद्देश्य यही था कि वो अमेरिका इसके बाहर भी अमरीकी उत्पादों की सर्वाेच्चयता कायम करने के लिए काम करेंगे। इसी घोषणा के चलते ही उन्होंने कई बार वीजा नियमों में सख्ती की। ट्रंप कार्यकाल में प्रवासियों में डर का माहौल बढ़ा है। इन नीतियों का ही परिणाम है कि अमेरिकी भूमि पर प्रवासियों पर हिंसा की घटनाओं में बढ़ावा हुआ है। वर्तमान राष्ट्रपति के रवैये में आर्थिक दादागिरी झलक रही है, जो कि अमेरिका के मानववादी आदर्शों के विपरीत है।
अमेरिका आतंकवाद तथा प्राकृतिक आपदाओं के साथ प्रभावित देशों में हर वर्ष अरबों रुपये की सहायता कर रहा है। अमेरिका अपने को मानव अधिकारों का दुनिया का सबसे बड़ा पैरोपकार बताता है परंतु अमेरिकी आर्थिक नीतियां कमजोरों को दबाने वाली हैं। ऐसी हालत में खासकर विकासशील देशों पर अपने उत्पादों की बिक्री के लिए दवाब बनाना अमानवीय व्यवहार है। विश्व व्यापार समझौते का संकल्प दुनिया को एक साझा मंडी बनाना है परंतु व्यावहारिक तौर पर यह दबंग देशों की दादागिरी का शिकार हो गई। यदि विकासशील देशों में उद्योग तथा व्यापार बंद होंगे तो आतंकवाद सहित उन सारी समस्याओं से निपटना मुश्किल होगा जिनसे अमेरिका व विश्व आज जूझ रहा है।