Artificial Intelligence : आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की दुनिया में रहने की तैयारियां

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शिक्षा की महत्वपूर्ण भूमिका: पीओके को हासिल करने के लिए हमें कुछ ज्यादा करने की जरूरत नहीं पड़ेगी || Artificial Intelligence 

राजीव गुप्ता। ज्ञानिक खोज प्रौद्योगिकी और नवाचार मानव जीवन में उथल-पुथल लाती है। व्यक्ति के सोचने और कार्य करने के तौर-तरीकों में बदलाव लाती है। खगोल विज्ञान, चिकित्सा से लेकर पहिए, मोटर गॉड़ी और कंप्यूटर के आविष्कार तक मानव के आविष्कारों ने इस बात को सिद्ध किया है। वर्ष 2016 में हॉलीवुड की फिल्म ‘हिडन फिगर्स’ में एक अश्वेत महिला जॉन ग्लेन का वर्णन किया गया है जो नासा के लिए कार्य करती है तथा जिन्होंने अमरीका के मानव युक्त अंतरिक्ष उडान में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी थी। इस बात की कल्पना करना कठिन है कि आधुनिक कंप्यूटरों के आविष्कार से पूर्व अंतरिक्ष यात्रा के लिए अपेक्षित जटिल और लंबी गणनाओं को व्यक्तियों द्वारा किया जाता था और इसलिए फिल्म में दर्शायी गई इन तीन महिलाओं को मानव कंप्यूटर कहा गया। हम जानते हैं कि इलेक्ट्रोनिक कंप्यूटर के आविष्कार से घर के बजट से लेकर जटिल वैज्ञानिक गणनाओं के तरीकों में पूर्ण बदलाव आया है। एक ऐसी दुनिया में शिक्षा की भूमिका को पूर्णत: स्वीकार किया जाना चाहिए जहां पर आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस (Artificial Intelligence) आज इंटरनेट की तरह अनिवार्य हो जाएगी इसलिए शिक्षा के तीन महत्वपूर्ण अवयवों पर विचार किया जाना चाहिए जिनमें पाठयक्रम का डिजाइन, पाठ्य वस्तु का निर्धारण और मूल्यांकन और इन तीनों पहलुओं पर विचार किए जाने की आवश्यकता है। पाठ्यक्रम शिक्षा प्रणाली का अत्यंत महत्वपूर्ण भाग है। यदि पाठ्यक्रम छात्रों और समाज की आवश्यकताओं के अनुरूप न हो तो यह महत्वपूर्ण नहीं रह जाता है कि इसे कितने प्रभावी ढंग से पढाया जाता है।
अतीत में पाठ्यक्रम में मोटे तौर पर तथ्यों, दृष्टिकोणों और विभिन्न कार्यकलापों को करने की विधियों तक सीमित रहना था और अधिकतर मामलों में तथ्य, दृष्टिकोण और विधियां पुरानी हो जाती थी क्योंकि समाज में नए बदलाव आ जाते हैं। पाठ्यक्रम का उद्देश्य छात्रों में विचार करने और सीखने की क्षमता का विकास करना है। इस क्षमता का तात्पर्य है कि छात्रों की भूमिका सूचना प्राप्त करने वालों के स्थान पर शिक्षण प्रक्रिया में सहयोगी और साझीदारी की बन गयी। इसी तरह अध्यापकों की भूमिका भी बदल गयी है। अब उनकी भूमिका ज्ञान के भंडार के बजाय ऐसे व्यक्ति के रूप में हो गयी है जो छात्रों की सर्वोत्तम क्षमताओं का विकास कर सके।
इसके अलावा साफ्ट स्किल्स पर बल दिए जाने की आवश्यकता है। जिस पर आज अधिक ध्यान नहीं दिया जा सकता है। इन साफ्ट स्किल में क्रिटिकल थिंकिंग स्किल, कप्यूनिकेशन, कोलोबोरेशन आदि शामिल हैं। क्रिटिकल थिंकिंग स्किल प्रश्न पूछने, विश्लेषण करने, व्याख्या करने और निर्णय करने की क्षमता है। आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस (Artificial Intelligence) के माध्यम से तथ्यों तक पहुंच आसान हो जाएगी इसलिए सूचना का विश्लेषण और उपयोग करने की क्षमता का विकास करने की आवश्यकता है।
आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस के विकास करने वाले चाहे कोई भी दावा करें, किए जाने वाले कार्यों के बारे में जिनमें निर्णय निकट भविष्य में भी मानव प्रयासों से ही किए जाएंगे। संप्रेषण कौशल लोगों को अपने विचार व्यक्त करने के लिए आवश्यक है। किंतु शिक्षा में वर्तमान नेतृत्व इन छात्रों में इन कौशलों के विकास में शिक्षा की भूमिका को नहीं देख पाते हैं जिसमें बदलाव लाया जाना चाहिए। जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में लोगों के समक्ष समस्याएं और जटिल बन गयी है इसलिए आवश्यक हो गया है कि हम अन्य लोगों के साथ सहयोग करना सीखें तथापि हमारी शिक्षा प्रणाली में व्यक्तिगत कार्य निष्पादन और विकास पर बल दिया जाता है इसलिए आवश्यक कौशल के विकास में अंतर रह जाता है और इस अंतर को दूर किए जाने की आवश्यकता है।
शिक्षा का दूसरा महत्वपूर्ण क्षेत्र जिस पर ध्यान दिया जाना चाहिए वह सामग्री को उपलब्ध कराना है। परंपरागत रूप से अध्यापकों को सभी सूचनाओं का स्रोत मााना जाता था जहां पर अध्यापक व्याख्यान देते और छात्र कक्षाओं में निष्क्रिय होकर सीखते। शिक्षा के इस मॉडल मे छात्र सक्रिय साझीदार नहीं होते और पाठ्यक्रम समाप्त होने के बाद छात्र पाठ्य वस्तु को भूल जाते थे। इस बात के र्प्याप्त साक्ष्य हैं कि यदि छात्र अपनी सीखने की प्रक्रिया के दौरान भागीदारी करते हैं तो वे पाठ्य सामग्री को लंबे समय तक याद रखते हैं। इसका तात्पर्य है कि अध्यापकों की भूमिका सर्वज्ञ गुरू से बदलकर ऐसे व्यक्ति के रूप में होनी चाहिए जो छात्रों के साथ संवाद करे और उन्हें सीखने में मदद करे।
शिक्षा का तीसरा महत्वपूर्ण तत्व मूल्यांकन है। पिछले कुछ दशकों में मूल्यांकन की दिशा में कुछ प्रगति हुई है। सत्र के अंत में परीक्षा के माध्यम से एकल मूल्यांकन का स्थान अब आवधिक मूल्याकनों ने ले लिया है और इसके लिए प्रतियोगिताएं, असाइनमेंट, प्रोजेक्ट आदि का सहारा लिया जाता है किंतु इसमें और प्रगति की आवश्यकता है। मूल्यांकन अभी भी मूलत: किसी विशेष कार्य के पूर्ण होने पर उसमें दक्षता पर आधारित है। छात्रों की क्षमताओं के मूल्यांकन के लिए बेहतर विधियों की आवश्यकता है जो उनके कार्य स्थल पर उनके लिए उपयोगी सिद्ध हों।
हमारी शिक्षा प्रणाली में ग्रेड और मूल्यांकन गहरे समाए हुए हैं और इसमें बदलाव के लिए एक दूरदृष्टि नेतृत्व की आवश्यकता है। तथापि भावी छात्रों के लिए आवश्यक है कि वे नई चुनौतियों का सामना करने के लिए अपने में क्षमताएं विकसित करें। इस लेख का उद्देश्य भावी दुनिया के लिए छात्रों को तैयार करने हेतु वर्तमान शिक्षा प्रणाली के कुछ पहलुओं में बदलाव की आवश्यकता पर बल देना है जिसमें आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस (Artificial Intelligence) की महत्वपूर्ण भूमिका होगी। शिक्षा प्रणाली में बडे बदलाव लाने में समय लगता है इसलिए हमें अभी से शुरूआत करनी चाहिए। (यह लेखक के अपने विचार हैं)।