बसवराज बोम्मई बने कर्नाटक के 23वें सीएम

Basavaraj Bommai

राज्यपाल थावरचंद गहलोत ने दिलाई शपथ

बैंगलुरू। बसवराज बोम्मई ने आज सुबह 11 बजे कर्नाटक के 23वें मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली। इससे पूर्व सोमवार को विधायक दल की बैठक में अपना इस्तीफा देने वाले पहले मुख्यमंत्री बी.एस. येदियुरप्पा ने ही मंगलवार को बोम्मई के नाम का प्रस्ताव रखा था। जिसे सर्वसम्मति से पास कर दिया गया। कर्नाटक राजभवन के ग्लास हाउस में राज्यपाल थावरचंद गहलोत ने बुधवार सुबह उन्हें पद एवं गोपनीयता की शपथ दिलाई। इस अवसर पर पूर्व मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा भी मौजूद थे। इसके साथ ही भारतीय जनता पार्टी के कई केंद्रीय और राज्य के वरिष्ठ नेता भी मौजूद रहे। बसवराज बोम्मई लिंगायत समुदाय से आते हैं। इनके पिता एसआर बोम्मई भी 1988 में 281 दिन के लिए मुख्यमंत्री रहे थे।

येदियुरप्पा के करीबी माने जाते हैं बसवराज बोम्मई

बसवराज बोम्मई येदियुरप्पा के चहेते और उनके शिष्य हैं। बताया जा रहा है कि येदियुरप्पा ने इस्तीफा देने से पहले ही बोम्मई का नाम भाजपा आलाकमान को सुझा दिया था। दरअसल, लिंगायत समुदाय के मठाधीशों के साथ हुई बैठक में येदियुरप्पा ने अपनी तरफ से इस नाम को उन सबके बीच रखा था। 28 जनवरी, 1960 को जन्मे बोम्मई सदर लिंगायत समुदाय से हैं और येदियुरप्पा के करीबी माने जाते हैं। बसवराज बोम्मई ने अपने राजनीतिक जीवन की शुरूआत जदयू के साथ की और बाद में 2008 में भाजपा में शामिल हो गए। दो बार एमएलसी और तीन बार विधायक रहे बोम्मई 2008 के कर्नाटक राज्य चुनावों में हावेरी जिले के शिगगांव निर्वाचन क्षेत्र से कर्नाटक विधानसभा के लिए चुने गए थे। बोम्मई मैकेनिकल इंजीनियरिंग से ग्रेजुएट हैं।

भाजपा ने एक चाल से हल की तीन समस्याएं

दरअसल, भारतीय जनता पार्टी को कर्नाटक में तीन कोण साधने थे। पहला पूर्व मुख्यमंत्री बी.एस. येदियुरप्पा, दूसरा लिंगायत समुदाय और तीसरा राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ। दरअसल, येदियुरप्पा लिंगायत समुदाय से हैं। संघ की पृष्ठभूमि के भी हैं, लेकिन भ्रष्टाचार के आरोप लगने पर उनके भाजपा से निष्कासित होने पर संघ के शीर्ष नेतृत्व से उनके संबंध मधुर नहीं रहे थे। बताया जा रहा है कि संघ नहीं चाहता था कि येदियुरप्पा भाजपा में वापसी करें, लेकिन 2013 के चुनाव में येदियुरप्पा के बिना भारतीय जनपा पार्टी को बुरी तरह से हार का मुंह देखना पड़ा। लिहाजा भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व ने येदियुरप्पा को वापस बुला लिया।

100 सीटों पर लिंगायत प्रभावी

कर्नाटक की कुल जनसंख्या में लिंगायत समुदाय की संख्या 17% के आसपास है। राज्य की 224 विधानसभा सीटों में से तकरीबन 90-100 सीटों पर लिंगायत समुदाय हार और जीत तय करता है। ऐसे में भाजपा के लिए येदियुरप्पा को हटाना आसान न था। उनको हटाने का मतलब था, इस समुदाय के वोट खोने का खतरा मोल लेना। इसलिए येदियुरप्पा की सहमति से उनके चहेते नेता को सीएम बनाकर उसने नुकसान की आशंकाओं पर पूर्ण विराम लगा दिया।

 

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