15 अगस्त को सच्ची आजादी का जश्न मनाएं

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हर बार, बार-बार, साल दर साल यह दिन आता है और हम आजादी के वीरों को याद करके, तिरंगा झंडा फहराकर एक तरह से अपनी जिम्मेदारी पूरी हुई मान लेते हंै। देश इस बार भी 15 अगस्त का राष्ट्रीय पर्व धूमधाम से मनाएगा किन्तु इस बीच यह गहन चिंतन का विषय है कि बदलते दौर में हमारे लिए आजादी के क्या मायने रह गए हैं। आखिर, सिर्फ तिरंगा लहरा देने से तो हम आजादी के असल लक्ष्य को प्राप्त हुआ नहीं मान सकते न।

हालाँकि, देश में काफी चीजें सकारात्मक ढंग से हम सबने मिलकर हासिल की हैं जिसमें हमारे महानगरों की चकाचौंध ने विश्व स्तर के शहरों को मात दी है तो विकास और ताकत में हम आने वाले दिनों की सुपर-पॉवर गिने जा रहे हैं। इकॉनमी में हम अमेरिका और चीन के बाद तीसरा स्थान रखते हैं तो आने वाले दिनों में इसमें और छलांग लगने की भी उम्मीद है। ऐसे में अगर हम चाहें तो इन बातों को लेकर अवश्य ही खुश हो सकते हैं पर कुछ और बातें हैं, जिन पर विचार किया जाना उतना ही आवश्यक है।

कश्मीर समस्या हम सब से कोई छुपी नहीं है और जिस तरह दिन-ब-दिन यहाँ हिंसा होती है, उससे हमारे कश्मीरी भाई-बहनों का पीड़ा झेलना स्वाभाविक ही है। हालांकि, कई कश्मीरी पाकिस्तानी एजेंटों के बहकावे में आ जाते हैं तो कश्मीरियों के वेश में खुद कई पाकिस्तान परस्त लोग घाटी का माहौल बिगाड़ने में सक्रिय रहते हैं।

ऐसे में सरकारों द्वारा ठोस कदम उठाये जाने की जरूरत सालों से महसूस की जाती रही है और इन ठोस कदमों में कश्मीरी पंडितों की सुरक्षित वापसी के लिए कदम उठाया जाना सबसे बड़ा कदम होगा। इसके बाद हमारे देश के पूर्व सैनिकों की वहां कालोनी बनाए जाने की बात थी, जिसे जमीन पर अवश्य ही उतारा जाना चाहिए। इस समस्या से अगर हम थोड़ा नीचे उतरते हैं तो हमारे यहाँ आज भी जातीय कट्टरता जड़ जमाए बैठी है, जिसकी जितनी भी निंदा की जाए, कम ही है। ऐसे में धार्मिक टकराव, जातीय टकराव आए दिन होते रहते हैं और दु:ख की बात यह है कि राजनेता और राजनीतिक पार्टियां ऐसे मसलों पर रोटी सेंकती दिखती हैं।

ऐसी ही समस्याओं में महिला अपराधों में वृद्धि पर ही हम सबका ध्यान अवश्य ही जाना चाहिए। रेप जैसे कुकृत्यों में बढ़ोत्तरी से भी अगर हमारा प्रशासन और समाज नहीं जगा तो फिर इससे बड़ी दूसरी बिडम्बना और क्या हो सकती है। ऐसे में, यह कहना गलत नहीं होगा कि इस देश का आम नागरिक अपनी जिम्मेदारियों को सरकार और प्रशासन के ऊपर डाल कर खुद चैन की साँस तो लेना चाहता है किन्तु साफ-सफाई, गलत कार्यों के विरोध की अपनी बारी आती है तो फिर वह आलस कर जाता है, हिचक जाता है।

आखिर, देश को बेहतर बनाने के लिए सिर्फ सरकारों के ऊपर हम किस प्रकार निर्भर रह सकते हैं। स्वतंत्रता दिवस के इस अवसर पर हमें इस बात को आत्मसात करना ही होगा कि बिना हमारे जिम्मेदारी निभाये परिवर्तन बेहद मुश्किल काम है, शायद नामुमकिन की हद तक। इसी कड़ी में थोड़ा और आगे बढ़ते हैं तो देखते हैं कि आये दिन आतंकवाद और आतंकी वारदातों में वृद्धि हो रही है तो नक्सलवाद के हाथों आम जनता के साथ-साथ पुलिस बल के जवान भी शहीद हो जा रहे हैं।

उम्मीद की जानी चाहिए कि इस स्वतंत्रता दिवस को मनाते हुए हम सभी अपनी छोटी-छोटी जिम्मेदारियों का भी उतना ही ध्यान रखेंगे जितना अपने व्यक्तिगत कार्यों के प्रति हम सचेत दिखते हैं। हालांकि, और भी कई बड़ी बातें की जा सकती हैं किन्तु नींव तो छोटे-छोटे टुकड़ों से ही भरी जाती है। साफ जाहिर है कि अगर हमें राष्ट्रीय चरित्र को मजबूत करना है तो छोटी-छोटी बातों पर दृढ़ता से कायम रहना होगा। जब हम इन कार्यों में सक्षम हो जायेंगे तो निश्चित रूप से आगे बढ़ने की प्रेरणा भी प्राप्त करेंगे, साथ ही साथ अपनी खूबियों को संजोते हुए समस्याओं से निपटने का व्यवहारिक रास्ता भी तलाश लेंगे।

-मिथिलेश कुमार सिंह

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