Indian Nepal: क्या नेपाल बन सकता था भारत का राज्य? 75 साल पहले आया था राजा त्रिभुवन का प्रस्ताव

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Indian Nepal: क्या नेपाल बन सकता था भारत का राज्य? 75 साल पहले आया था राजा त्रिभुवन का प्रस्ताव

नेपाल (सच कहूँ/अनु सैनी)। Indian Nepal: आज से लगभग साढ़े सात दशक पहले दक्षिण एशिया का नक्शा और राजनीति दोनों ही पूरी तरह बदल सकते थे। यह वह दौर था जब दुनिया द्वितीय विश्व युद्ध के बाद नई शक्तियों के उदय को देख रही थी। 1949 में चीन में कम्युनिस्ट क्रांति हुई और उसके ठीक अगले साल चीन ने तिब्बत पर कब्जा कर लिया। यह घटनाएं पड़ोसी देशों के लिए खतरे की घंटी थीं। नेपाल भी उस समय राजनीतिक अस्थिरता से गुजर रहा था।

ऐसे हालात में नेपाल के राजा त्रिभुवन बीर बिक्रम शाह ने भारत के प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू को एक चौंकाने वाला प्रस्ताव दिया। प्रस्ताव था—नेपाल का भारत में विलय कर दिया जाए।

राजा त्रिभुवन की चिंता और प्रस्ताव का कारण | Indian Nepal

नेपाल में 1846 से 1951 तक राणा शासकों का शासन रहा। यह शासन पूर्णत: निरंकुश था और नेपाल लगभग पूरी दुनिया से अलग-थलग पड़ा हुआ था। 1947 में भारत की आजादी और 1949 में चीन की क्रांति के बाद नेपाल में भी राजनीतिक हलचल तेज हुई। 1951 में राजा त्रिभुवन विदेश से लौटकर नेपाल के सिंहासन पर बैठे और संवैधानिक राजतंत्र की नींव रखी।

लेकिन पड़ोसी चीन की आक्रामक नीति और नेपाल की आंतरिक राजनीतिक अस्थिरता ने राजा त्रिभुवन को भविष्य के खतरों का अंदेशा दे दिया था। उन्हें लग रहा था कि छोटे से देश के लिए अपनी संप्रभुता बनाए रखना मुश्किल होगा। इसी कारण उन्होंने नेहरू से सुझाव दिया कि नेपाल को भारत का एक प्रांत बना दिया जाए।

नेहरू का स्पष्ट और कूटनीतिक रुख | Indian Nepal

इतिहासकारों और नेताओं के अनुसार, अगर नेहरू चाहते तो वे इस मौके का फायदा उठा सकते थे। लेकिन उन्होंने इसे ठुकरा दिया। उनका तर्क था कि नेपाल की पहचान एक स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में बनी रहनी चाहिए। नेहरू लोकतंत्र के समर्थक थे और चाहते थे कि नेपाल लोकतांत्रिक शासन की ओर बढ़े।

नेहरू ने इस प्रस्ताव को यह कहते हुए अस्वीकार किया कि नेपाल को अपनी आजादी और संप्रभुता खुद तय करनी चाहिए। उन्होंने नेपाल को अंतरराष्ट्रीय मंच पर एक अलग राष्ट्र के रूप में जगह दिलाने की रणनीति अपनाई।

प्रणब मुखर्जी की किताब में उल्लेख

भारत के पूर्व राष्ट्रपति और वरिष्ठ कांग्रेस नेता प्रणब मुखर्जी ने अपनी आत्मकथा “द प्रेसिडेंशियल इयर्स” में इस घटना का जिक्र किया है। उन्होंने लिखा कि हर प्रधानमंत्री का काम करने का अपना अलग तरीका होता है।

प्रणब दा ने माना कि अगर उस समय नेहरू की जगह इंदिरा गांधी होतीं, तो शायद वे इस मौके को हाथ से नहीं जाने देतीं। उन्होंने उदाहरण दिया कि इंदिरा गांधी ने सिक्किम के मामले में ऐसा ही कदम उठाया था और 1975 में सिक्किम भारत का हिस्सा बना।

अगर विलय होता तो क्या होता?

इतिहासकार मानते हैं कि अगर नेपाल भारत का राज्य बन गया होता, तो दक्षिण एशिया की राजनीति पूरी तरह अलग होती। भारत को भौगोलिक और रणनीतिक दोनों ही दृष्टिकोण से मजबूती मिलती। हिमालयी इलाकों पर चीन का दबाव कम होता और नेपालियों को भी राजनीतिक अस्थिरता से बचाया जा सकता। लेकिन नेहरू के फैसले ने नेपाल को अपनी स्वतंत्र पहचान बनाए रखने का मौका दिया।

नेपाल की मौजूदा राजनीतिक स्थिति | Indian Nepal

आज नेपाल फिर से अस्थिरता के दौर में है। पिछले 17 सालों में वहां 14 प्रधानमंत्री बदले गए हैं। माओवादी आंदोलन के बाद जनता को लगा था कि लोकतंत्र से स्थिरता और विकास आएगा, लेकिन भ्रष्टाचार और राजनीतिक अवसरवाद ने उम्मीदों को कमजोर कर दिया।

हाल ही में प्रधानमंत्री केपी ओली का इस्तीफा इस बात का सबूत है कि जनता और नेताओं के बीच का विश्वास लगातार टूट रहा है।

राजा त्रिभुवन का भारत को दिया गया प्रस्ताव दक्षिण एशिया की राजनीति की सबसे दिलचस्प घटनाओं में से एक है। अगर नेहरू उस समय अलग फैसला लेते, तो आज नेपाल भारत का हिस्सा होता और भू-राजनीतिक समीकरण पूरी तरह बदल जाते। लेकिन नेहरू के फैसले ने नेपाल को स्वतंत्र पहचान और लोकतांत्रिक प्रयोग का रास्ता दिया।

कोई सबूत नहीं मिला

नेपाल के भारत में पूर्व राजदूत लोकराज बरल के मुताबिक एक रिपोर्ट में कहा ​गया है कि यह बात अफवाह थी। मुझे नहीं लगता कि राणा नेपाल का भारत में विलय चाहते थे। हमें ऐसा कोई सबूत नहीं मिला है।