बुद्धिजीवी बोले, देश की संस्कृति को रखें सहेज कर

Debate, Indian, Culture 

परिचर्चा। संस्कृति और आधुनिकता आमने-सामने

सच कहूँ/देवीलाल बारना
कुरुक्षेत्र। हिंदूस्तान में विशेष दिनों की बड़ी महत्ता है। कभी दीपावली के दीपों में पूरा हिंदूस्तान जगमग हो जाता है तो कभी ईद के मौके पर पूरा हिंदूस्तान आपस में गले मिलता है। कभी राखी का एक धागा भाई-बहन के प्रेम को मजबूत करने काम करता है तो कभी होली के पर्व पर सभी एक हो जाते हैं। हिंदूस्तान के अनेक पर्व ऐसे हैं जो प्रेम रूपी भाईचारे की जड़ों को ओर गहरा करने का कार्य करते हैं। वहीं आजकल वैलेंटाईन डे भी काफी प्रचलन में आ रहा है।

वैलेंटाईन-डे को भारतीय संस्कृति के मुताबिक सही नहीं ंमाना जाता। अंग्रेजी बोलने वाले देशों में ये एक पारंपरिक दिवस है, जिसमें प्रेमी एक-दूसरे के प्रति अपने प्रेम का इजहार वैलेंटाइन कार्ड़ भेजकर या फूल देकर करते हैं। ये दिन प्रेम पत्रों के वैलेंटाइन के रूप में पारस्परिक आदान-प्रदान के साथ गहरे से जुड़ा हुआ है। भारत की यदि बात करें तो यहां के लोगों को मानना है कि भारत की संस्कृति इस त्योहार को मनाने की इजाजत नहीं देती। वैलेंटाईन डे को लेकर विभिन्न क्षेत्रों में काम कर रहे बुद्धिजीवियों से जब बात की गई तो उन्होंने इस प्रकार अपनी प्रतिक्रिया दी।

कोई स्थान ऐसा नहीं जहां प्रेम न हो: डा. हुड्डा

शिक्षिका डॉ. प्रीतिका हुड्डा का कहना है कि दुनिया में कोई स्थान व प्राणी ऐसा नहीं जो प्रेम व स्रेह से रहित हो। हम ईश्वर से, देश से, माता-पिता से, अपने सगे संबंधियों से सबसे प्रेम करते हैं। स्वाभाविक है कि पुरुष व स्त्री के बीच भी प्रेम रहता है। प्रेम को मात्र विपरीत लिंग से जोड़ने की बजाय प्रेम के विस्तृत रूप को समझ कर हम बात करें तो यह समझ आता है कि प्रेम सबसे करें, प्रेम में न कोई अपेक्षा हो न तनाव, प्रेम के लिए जिएं लेकिन मरें नहीं।

पश्चिमी सभ्यता को हिंदूस्तान में न पसारने दें पांव: मलिक

75 वर्षीय हुकम चंद मलिक का कहना है कि आज हिंदूस्तान में पश्चिमी सभ्यता पांव पसारती जा रही है, जोकि देश की संस्कृति के लिए खतरनाक है। भारतीय संस्कृति इससे बिल्कुल अलग है। आज जो वैलेंटाईन डे मनाया जा रहा है। युवा इसे बेशक मनाएं लेकिन अपने माता-पिता व गुरुजनों से प्रेम जताकर। मलिक ने युवाओं से आह्वान किया कि वे देश की संस्कृति को जिंदा रखने का प्रयास करें व पश्चिमी सभ्यता को देश में पांव न पसारने दें।

पता नी कित तै आया वैलेंटाईन-डे: रामकरण शर्मा

वैलेंटाईन डे पर अपने विचार सांझा करते हुए शांति नगर निवासी रामकरण शर्मा ने ठेठ हरियाणवी में अपनी राय देते हुए कहा कि पता नी कित आया यू वैलेंटाईन डे। म्हारे उरै तो होली, दिवाली, सक्रांत अर तीज जिसे त्योहार होवैं सैं। इन त्योहारां नै मना कै देश मै भाईचारा अर प्रेम जागृत होवै सै। वैलेंटाईन नाम का यू विदेशी त्यौहार भारत मै मनाने का कोई औचित्य नही है।

देश के साथ प्रम करें युवा: कश्यप

आकाशवाणी कुरुक्षेत्र में युववाणी कार्यक्रम की प्रस्तुतकर्ता कविता कश्यप का कहना है कि आज जरूरत है कि हर युवा देश से प्रेम करे। जब हमारे अंदर देश प्रेम जागृत होगा तो हम देश को बहुत आगे ले जा सकते हैं।

आधुनिकता की दौड़ में संस्कृति को न छोड दें पीछे: आरडी शर्मा

80 वर्षीय आर.डी शर्मा ने कहा कि आज देश की संस्कृति को जीवित रखना बेहद जरूरी है। वैलेंटाईन जैसे त्योहारों के देश में आ जाने से देश की संस्कृति को काफी क्षति हुई है। उन्होने कहा कि जब हम पढ़ा करते थे तो हमे तो वैलेंटाईन नामक दिन का पता भी नही था। आधुनिकता की इस दौड में कभी हम अपनी संस्कृति को ही न पीछे छोड दें।

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