हिमाचल सरकार की नई पहल जैविक कृषि

Organic Agriculture

हिमाचल सरकार ने कृषि को नई दिशा प्रदान करने के लिए एक अहम मुद्दा उठाया है। सरकार ने राज्य के 50 हजार एकड़ रकबे को जहर मुक्त कृषि अधीन लाने का निर्णय लिया है। इसके तहत 100 गांवों को केन्द्रीय मापदंडों के तहत जैविक कृषि के लिए चुना जाएगा। यह निर्णय इस कारण भी महत्वपूर्ण है कि पंजाब और हरियाणा जैसे राज्य जहां कीटनाशकों और खादों का धड़ाधड़ इस्तेमाल कर रहे हैं, वहीं जैविक कृषि के लिए सरकारी स्तर पर प्रयास बहुत की कम हैं। खादों और कीटनाशकों ने फसलों के उत्पादन में बढ़ोतरी तो की है लेकिन जमीन की उपजाऊ शक्ति बहुत ही कम हो गई है। यही कारण है कि पंजाब कैंसर का गढ़ बन गया है।

राज्य के शहरों में अस्पतालों का निर्माण धड़ाधड़ हो रहा है। फिर भी मरीजों की भरमार है। आम आदमी के बजट का बड़ा हिस्सा बीमारी और ईलाज पर खर्च हो रहा है। ऐसी परिस्थितियों में चाहिए तो यह था कि मैदानी राज्य कृषि को जहर मुक्त करने के लिए कोई ठोस कदम उठाते लेकिन इन्होंने सारा जोर ही फसलों का उत्पादन बढ़ाने और किसानों को असरदार कीटनाशक मुहैया करवाने पर लगाया हुआ है। किसानों की यह शिकायतें आम हैं कि उनको डीलर ने नकली कीटनाशक दे दिये। सुविधा सम्पन्न किसान महंगे से महंगे कीटनाशक खरीदकर अधिक से अधिक उत्पादन प्राप्त करने की होड़ में लगे हुए हैं। यह चलन बेहद खतरनाक और खर्चीला भी है। वास्तविकता में सरकारों को चाहिए कि वह कृषि नीतियों के साथ स्वास्थ्य नीतियों की तरफ ध्यान दें और तालमेल बिठाएं।

 एक विभाग केवल अनाज उत्पादन में बढ़ोत्तरी को ही सरकार की उपलब्धि मानता है और वहीं दूसरा विभाग बीमारियों के ईलाज, अस्पताल खोलने, कैंप लगाने और दवाईयां बांटने पर जोर दे रहा है। अगर खाद्य पदार्थ ही शुद्ध और जहर रहित होंगे तब स्वास्थ्य क्षेत्र का बजट भी कम हो जाएगा। कृषि को जहर मुक्त कर एक तीर से दो निशाने साधे जा सकते हैं। किसानों को भी चाहिए कि कम से कम वह अपने पारिवारिक सदस्यों के लिए जहर मुक्त सब्जियां, फल और अनाज पैदा करें। महज मुफ्त ईलाज हमारा आदर्श नहीं होना चाहिए बल्कि शुद्ध खाद्य पदार्थ, शुद्ध पर्यावरण और रोग रहित रहना भी हमारे लिए बहुत आवश्यक है। नि:संदेह कीटनाशकों, खादों के प्रयोग कम होने से उत्पादन का ग्राफ गिरेगा लेकिन सरकारें जैविक कृषि के लिए किसानों को विशेष वित्तीय सहायता देकर उनका उत्साह बढ़ा सकती हैं।

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